मेरे पिता को ठगा गया। बेवकूफ बनाया गया। इस बात को मैंने जिस दिन समझा उसी दिन मेरा मन इससे (ईसाई) उचट गया। मैंने प्रण किया है कि जिस सरना को इन्होंने (कैथोलिक संस्था) अपवित्र किया, वह इनसे वापस लूँगा और वहीं अपने पुरखों के धर्म में लौटूँगा। देखता हूँ आखिर कब तक इनसे लड़ पाता हूँ।
यह कहना है 56 साल के क्लेमेंट लकड़ा का। लकड़ा पिछले 30 साल से जशपुर की कैथेलिक संस्था से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। यह लड़ाई लड़ते-लड़ते उनके पिता 2000 में दुनिया छोड़कर चले गए। इन सालों में लकड़ा के पक्ष में अदालत से फैसला भी आया। लेकिन उनकी जमीन छोड़ने की बजाए कैथोलिक संस्था उनके पूरे परिवार को प्रताड़ित करने में जुटी है।
दो बेटियों के पिता क्लेमेंट अपने परिवार के साथ छत्तीसगढ़ की कुनकुरी विधानसभा क्षेत्र के दुलदुला में रहते हैं। उनकी पत्नी सुषमा लकड़ा दुलदुला की सरपंच हैं। उनके घर की दीवारों पर लगी तस्वीरें बताती हैं कि यह परिवार धर्मांतरित होकर ईसाई बन चुका है। लेकिन घर के कोने में एक टेबल पर पड़ी दस्तावेजों में वह दर्द अंकित है, जिसे धर्मांतरण के बाद इस परिवार ने भोगा है।
क्लेमेंट की करीब 10 एकड़ जमीन पर कैथोलिक संस्था का कब्जा है। इस जमीन पर चर्च है। स्कूल है। फादर और नन के रहने के लिए घर बने हुए हैं। खाली पड़ी जमीनों पर संस्था के ही लोग खेती करते हैं। यह जमीन क्लेमेंट के पिता भादे उर्फ वशील उरांव ने ईसाई बनने के बदले खोई थी।
क्लेमेंट लकड़ा ने ऑपइंडिया को बताया कि उनके पिता का धर्मांतरण 1957-58 में हुआ था। एक पादरी ने उनसे सरना पूजा छोड़कर ईसाई बनने को कहा था। यह वह समय था जब उनके पिता की पहली पत्नी की मृत्यु हुई थी। क्लेमेंट के अनुसार फादर ने उनसे कहा था, “आप धर्मांतरित हो जाओ। यहाँ चर्च बैठने दो। आपके सरना में क्रुस गाड़ देंगे। प्रभु आपके घर में आशीष देगा। घर में बरकत आएगा। घर से भूत-प्रेत भागेगा।” वे कहते हैं, “पिता जी अपनी पत्नी की मौत के बाद से डरे हुए थे और उनकी बातों में आ गए।”
इसके बाद भादे की दूसरी शादी हुई, जिससे क्लेमेंट पैदा हुए। क्लेमेंट के अनुसार जमीन के बदले उनके पिता को कोई पैसा नहीं मिला था। उस समय उन्हें कुछ अनाज दिया गया था और भविष्य के लिए प्रलोभन दिए गए। भूत-प्रेत को भगाने का वादा किया गया, जिसके कारण उनके पिता संकट में थे। वे कहते हैं, “सबसे दुख की बात है कि हमारे सरना को अपवित्र किया गया। उसे काटकर क्रूस गाड़ दिया गया।”
क्लेमेंट के अनुसार शुरुआत में उनकी जमीन एक स्थानीय फादर थेदोर लकड़ा के नाम से की गई। उसके बाद इसे कैथेलिक संस्था ने अपने नाम कर लिया। यह भू राजस्व कानून की धारा 170 (ख) का स्पष्ट उल्लंघन है। इस कानून के बारे में हम अपनी पिछली रिपोर्ट में आपको विस्तार से बता चुके हैं।
1992 में अविभाजित मध्य प्रदेश की सरकार ने अनुसूचित जनजाति वर्ग की जमीनों से कब्जा हटाने के लिए सर्वे करवाया। भादे की जमीन पर कब्जे का मामला भी उसी समय सामने आया था। फिर यह मामला कोर्ट में गया। कुनकुरी एसडीएम की अदालत ने भादे के पक्ष में फैसला सुनाया। कैथोलिक संस्था को खाली जमीन लौटाने और जिस जमीन पर निर्माण हो चुका था, उसके बदले मुआवजा देने का निर्देश दिया। इस आदेश के खिलाफ कैथोलिक संस्था ने सिविल कोर्ट में अपील की। लेकिन वहाँ भी फैसला लकड़ा परिवार के पक्ष में ही आया। अदालती आदेशों की कॉपी ऑपइंडिया के पास हैं।
क्लेमेंट ने ऑपइंडिया को बताया कि अदालत के आदेश के बाद जब जमीन उन्होंने अपने नाम पर करवाने की कोशिश की तो कैथोलिक संस्था अतिरिक्त जिला सत्र न्यायालय चली गई। अपना पक्ष कमजोर देख संस्था ने बाद में याचिका वापस ले ली और लकड़ा परिवार पर अलग-अलग तरह से दबाव बनाने लगा। इसके बाद जनवरी 2022 में जमीन अपने नाम करवाने के लिए क्लेमेंट तहसलीदार कोर्ट गए। जवाब में कैथोलिक संस्था ने दोबारा उसी सिविल कोर्ट में सूट दायर कर दिया जो पहले ही लकड़ा के पक्ष में फैसला सुना चुकी है।
कानूनी लड़ाई से इतर क्लेमेंट का दावा है कि कैथोलिक संस्था के अधिकारी और उनके साथी उनके परिवार को प्रताड़ित कर रहे हैं। दुलदुला पंचायत के विकास कार्यों में रोड़ा अटकाया जा रहा है। उनकी पत्नी से कहा जाता है कि अपने पति से केस वापस लेने के लिए कहो। ऐसी ही एक घटना का जिक्र करते हुए क्लेमेंट ने ऑपइंडिया को बताया, “फरवरी 2022 में चर्च में एक मीटिंग बुलाई गई। इस मीटिंग में मुझसे कहा गया कि यदि केस वापस नहीं लोगे तो तुम्हें समाज से बाहर कर देंगे। फिर तुम्हारी बेटियों से कौन शादी करेगा।”
वे कहते हैं, “एक आदिवासी के लिए उसकी जमीन ही सब कुछ है। भले वह छोटा टुकड़ा हो या बड़ा। हमलोग खेती-बाड़ी करने वाले लोग हैं। खेती से ही परिवार पालते हैं। जब हमारी जमीन ही नहीं रहेगी तो धर्म से क्या मतलब।” क्लेमेंट के कहना है कि उनकी इस लड़ाई में दिवंगत दिलीप सिंह जूदेव, अखिल भारतीय जनजातीय सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत जैसे लोगों और हिंदुवादी संगठनों ने काफी मदद की है। अपने समाज में अलग-थलग पड़ने के बाद भी इनलोगों की मदद से ही वे इस लड़ाई को लड़ पा रहे हैं।
ऐसा भी नहीं है कि ईसाई संस्था से प्रताड़ित क्लेमेंट इकलौते हैं। ऐसे कई और क्लेमेंट ईसाई मिशनरियों से लड़ रहे हैं, जिनके पुरखों को पहले प्रलोभन देकर धर्मांतरित किया गया और बाद में उन्हें उनकी जमीन से बेदखल कर दिया गया। पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि ईसाई मिशनरियों से प्रताड़ित इनलोगों को आखिर न्याय कब मिलेगा? कब वे अपनी जमीनों पर लौट पाएँगे?