दिल्ली की एक अदालत ने पिछले साल दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगों के दौरान हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या के मामले में एक आरोपित द्वारा दायर जमानत याचिका को शुक्रवार (जनवरी 08, 2021) को रद्द कर दिया।
रिपोर्टों के अनुसार, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने दिल्ली के चाँद बाग इलाके की निवासी तबस्सुम की जमानत याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसके कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स (CDRs) से पता चला है कि वह दिल्ली दंगों के कई सह-अभियुक्तों के साथ लगातार संपर्क में थी। न्यायाधीश ने आगे कहा कि आवेदक के खिलाफ लगाए गए आरोप गंभीर थे।
न्यायाधीश ने कहा, “अपराध के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, मुझे आवेदक को जमानत देने के लायक मामला नहीं लगता। इसलिए जमानत की अर्जी खारिज कर दी गई है।”
दिल्ली की अदालत के फैसले से यह साबित होता है कि संसद द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित किए जाने के बाद दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगे न सिर्फ भारत को अस्थिर करने के लिए था, बल्कि हिंदू आबादी को निशाना बनाने के लिए पहले से रची गई साजिश थी।
दंगा-अभियुक्तों की जमानत को खारिज करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि यह साफ तौर पर स्पष्ट है कि प्रदर्शनकारियों और आयोजकों ने भीड़ में व्यक्तियों को प्रेरित किया था और कुछ असामाजिक तत्वों ने अपराध स्थल को घेर लिया था। और वो पत्थर, लाठी, धारदार हथियार एवं दूसरे तरह के हथियारों से लैस थे।
न्यायाधीश ने तीखी टिप्पणी की, “यहाँ तक कि बुर्का पहने महिलाएँ स्पष्ट रूप से पुलिस पार्टी पर हाथों में लाठी और अन्य सामग्री से हमला करती हुई दिखाई देती हैं। यह भी रिकॉर्ड में आया है कि भीड़ में से कुछ लोगों ने 25 फूटा रोड पर ऊँची इमारतों की छतों पर कब्जा कर लिया था, जिनके पास बंदूक आदि कई अन्य दंगा करने का सामान था।”
हिंदू-विरोधी दंगे एक अच्छी तरह से रची गई साजिश थी: दिल्ली कोर्ट
न्यायमूर्ति यादव ने उल्लेख किया कि यह सब प्रथम दृष्टया इंगित करता है कि सब कुछ एक अच्छी तरह से रची साजिश के तहत किया जा रहा था। उन्होंने कहा कि वज़ीराबाद रोड को अवरुद्ध कर दिया गया था और पुलिस द्वारा विरोध करने पर बल का प्रयोग कर किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थे।
दिल्ली पुलिस ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए आरोप लगाया है कि तबस्सुम सरकार के खिलाफ मुस्लिम भीड़ को उकसाने के लिए अन्य दंगाइयों के साथ मंच साझा करती थी जिसके कारण 24 फरवरी, 2020 को हिंसा हुई, जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली के उत्तर पूर्वी जिले में हेड कांस्टेबल रतन लाल समेत 50 से अधिक लोग मारे गए।
पुलिस ने यह भी कहा कि भीड़ के हमले के दौरान भीड़ ने दिल्ली पुलिस के अधिकारियों पर हमला किया, जिसके कारण पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) शाहदरा, अमित शर्मा, अनुज कुमार, एसीपी गोकलपुरी और 51 अन्य पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए। दो वरिष्ठ अधिकारियों अमित शर्मा, अनुज कुमार को गंभीर चोटें आईं, जबकि कांस्टेबल रतन लाल को उन्मादी भीड़ ने मार डाला।
अपने आवेदन में, आरोपित तबस्सुम ने कबूल किया कि उसने विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था, हालाँकि, दावा किया कि कुछ कानूनों का विरोध करना उसका ‘कानूनी और मौलिक अधिकार’ था, जिसे उससे दूर नहीं किया जा सकता था। उसका कहना था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (सीएए) और नागरिकों के लिए राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) एक विशेष धर्म के खिलाफ थे।
दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों के दौरान रतन लाल की हत्या
फरवरी में पूर्वोत्तर दिल्ली में भड़की हिंसा के दौरान हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या के संबंध में दायर चार्जशीट में कहा गया है कि रतन लाल की हत्या राष्ट्रीय राजधानी में सांप्रदायिक दंगों को बढ़ाने के लिए एक गहरी साजिश का हिस्सा थी। पुलिस ने इस मामले में 1100 पन्नों की चार्जशीट दायर की।
पुलिस ने चार्जशीट में खुलासा किया कि इससे 2 दिन पहले 22 फ़रवरी को ही 50 लोगों के एक समूह ने बैठक की थी, जहाँ हिंसा की पूरी साज़िश रची गई। दंगाइयों ने अपने घर के बच्चों व बुजुर्गों को पहले ही घर के भीतर रहने को बोल दिया था और ख़ुद हथियार लेकर निकले।
पुलिस की चार्जशीट में ये भी कहा गया कि रतनलाल की हत्या एक गहरी साजिश का हिस्सा थी। 24 फरवरी को मौजपुर क्रॉसिंग के पास हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच झड़प से दोपहर 12 बजे के क़रीब हिंसा भड़क उठी थी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 5000 लोग वहाँ जुट गए थे और पत्थरबाजी भी हो रही थी। 1 बजे एक बड़ी भीड़ ने चाँदबाग में डीसीपी और अन्य पुलिस अधिकारियों पर हमला बोल दिया, जिसमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल थे।
दिल्ली पुलिस की मानें तो चाँदबाग में जिस तरह से सीएए विरोधी प्रदर्शन में लोगों को भड़काया गया और धरने पर बिठाया गया, उसका दंगे फैलाने में अहम रोल था। रतन लाल की हत्या भी साज़िश का हिस्सा थी।
ये लोग 23 फरवरी को भी हंगामे के लिए निकले थे, लेकिन उस दिन ज्यादा कुछ नहीं किया गया और ये सभी वापस आ गए। 24 फरवरी को सारे उपद्रवी एक बार फिर से घर से बाहर निकले और हिंसा शुरू कर दी। शाहदरा के डीसीपी अमित शर्मा, एसपी अनुज शर्मा और हेड कांस्टेबल रतनलाल गंभीर रूप से घायल हो गए थे। बाद में इलाज के दौरान रतनलाल की मौत हो गई थी।