दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों के दौरान फरवरी 2020 के अंतिम हफ्ते में उत्तर-पूर्वी इलाके के जिन हिस्सों को निशाना बनाया गया था, उनमें शिव विहार भी शामिल था। वहाँ के राजधानी पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल के किस्से तो आपने भी सुने होंगे, जिसके मालिक फैसल फारूक का इन दंगों में बड़ा रोल सामने आया था और उसकी गिरफ़्तारी भी हुई थी, लेकिन उसे दिसंबर 2020 में जमानत भी मिल गई। यही स्कूल दंगों के समय इस्लामी भीड़ का अड्डा बना था।
इसी स्कूल की छत पर एक बड़ा सा गुलेल पाया गया था, जहाँ से पास में स्थित शिव मंदिर को भी निशाना बनाने की कोशिश की गई थी। वहाँ से भारी मात्रा में पत्थर, पेट्रोल बम और गुलेल बरामद हुए थे। बगल में स्थित DRP पब्लिक स्कूल को जला दिया गया था। हालाँकि, अब एक साल बाद दोनों ही स्कूलों में जनवरी से कक्षाएँ चल रही हैं, लेकिन आसपास के लोगों का कहना है कि जुमें के दिन अभी भी तनाव का माहौल पैदा हो जाता है।
आसपास का यातायात चालू है और माहौल शांतिपूर्ण है, लेकिन लोगों के मन से अभी भी वो मंजर ठीक से निकला नहीं है। पहले उन्हीं सड़कों पर मलबे और ईंट-पत्थर पड़े हुए थे। इसी स्कूल के बगल में एक पार्किंग एरिया स्थित था, जहाँ बड़ी संख्या में पार्क गाड़ियों में पहले जमकर लूटपाट की गई फिर तोड़फोड़ के साथ वहाँ भी आग लगाया गया था। भारी नुकसान हुआ था। अब इस हादसे के एक वर्ष बाद इस पार्किंग एरिया के मालिक गजेंद्र परिहार ने ऑपइंडिया से बातचीत की।
इस दौरान उन्होंने कहा कि अब तक उन्हें 50,000 रुपए के अतिरिक्त कोई भी मुआवजा नहीं मिला है और उन्हें उम्मीद भी नहीं है कि उन्हें हुए नुकसान के एवज में उन्हें कुछ मिलेगा। उलटा वो खुद के ही रुपए लगा कर अपने कारोबार को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। गजेंद्र ने बताया कि जिनकी गाड़ियाँ टूटी थीं, वो भी अपनी गाड़ियाँ ले गए और उन्हें भी कोई मुआवजा नहीं मिला। गजेंद्र का कुल 13 लाख रुपए का नुकसान हुआ था।
उन्होंने बताया कि अब वो पार्किंग भी नहीं चलाते हैं, क्योंकि फिर से दंगों का डर बना हुआ है। वो छोटे-छोटे कार्यक्रमों के आयोजन के लिए जगह देते हैं। बकौल परिहार, उन्होंने इसे शादी-विवाह की जगह के रूप में विकसित किया है, ताकि नुकसान की कुछ हद तक भरपाई हो सके और ज़िन्दगी पटरी पर लौट आए। उन्होंने जुमें के दिन तनावपूर्ण माहौल होने की पुष्टि करते हुए कहा कि गणतंत्र दिवस के दिन लाल किले में हुई हिंसा के समय भी उन्हें डर लगा था कि कहीं भीड़ यहाँ न आ जाए।
हालाँकि, उन्हें अभी तक कोई धमकी नहीं मिली है लेकिन उनके पार्किंग एरिया को जलाने वालों को वो अब भी पहचानने से इंकार करते हैं। कारण पूछने पर उन्होंने दावा किया कि भीड़ में दंगाइयों की संख्या 2000-2500 थी और अधिकतर ने मास्क लगाए हुए थे। उन्होंने बताया कि लोग तलवार-डंडों सहित कई हथियारों से लैस थे। फरवरी 24, 2021 को शाम 5 बजे के करीब ज़बरदस्त हिंसा शुरू हुई थी और 1 दिन पहले गाड़ियों में लूटपाट हुई थी।
उन्होंने उस मंजर को याद करते हुए कहा कि मुख्य रूप से हुई हिंसा के 1 दिन पहले ही गाड़ियों की शीशे तोड़ डाली गई थीं और उनमें से कीमती सामान लूट लिए गए थे। उन्होंने बताया कि राजधानी स्कूल से गुलेल से पत्थर और हाथों से भी पेट्रोल बम फेंका गया था। गजेंद्र ने बताया कि FIR में उन्होंने डर से कई चीजें नहीं बताई हैं और किसी को निशाना नहीं बनाया है, क्योंकि उन्हें इसी क्षेत्र में रहना है।
इसीलिए, उन्होंने FIR में खुद की संपत्ति को हुए नुकसान की बात को ही प्रमुखता से उठाया है। उन्होंने कहा कि इन सबके लिए कौन जिम्मेदार है, ये वो कह नहीं सकते। उन्होंने बताया कि वो खुद अपनी जान बचा कर यहाँ से भाग निकले थे और 3-4 दिन बाद वहाँ से लौटे। उन्हें खुद को हुए नुकसान और उस मंजर से उबरने के लिए पूरा एक साल लग गया। जनवरी 2021 से उन्होंने अपने काम को फिर से शुरू किया है।
उक्त पार्किंग एरिया के केयरटेकर ने भी उस समय के अपने अनुभव साझा किए और कहा कि फरवरी 23, 2020 की रात को 1 बजे से ही पत्थरबाजी शुरू हो गई थी और वो तब यहीं बैठे हुए थे। उन्होंने बताया कि बोतलों में भर-भर के पेट्रोल बम राजधानी स्कूल और सामने की छत से आ रहे थे, ताकि गाड़ियों में आग लग जाए। साथ ही बच्चों के खेलने वाले कंचे भी गुलेल से मारे जा रहे थे। उन्होंने कहा कि 250-300 लोग भीतर घुस गए थे।
उन्होंने बताया, “कोई बैटरी लूट कर ले गया तो कोई डेक उठा कर ले गया। फरवरी 25 को इसे आग के हवाले कर दिया गया। मुझे भी खासी चोट लगी थी। मुझे अब तक इसका कोई मुआवजा नहीं मिला है। उस समय मेरा बेटा भी मेरे साथ था, जिसकी जान बचाना मेरी प्राथमिकता थी। किसी तरह हम लोग बच कर भागे। मैंने अपने 12 साल के बच्चे को किसी तरह बाहर कूदा दिया। उसे बचाने के लिए ही मुझे भीतर आना पड़ा।”
केयरटेकर ने बताया कि उस घटना को याद करके उन्हें अब भी काफी दुःख और दर्द होता है, इसीलिए वो लोग किसी मीडिया वाले के सामने उस सम्बन्ध में बात भी नहीं करना चाहते। उन्होंने कहा कि माहौल अब ठीक है लेकिन वक़्त का कोई भरोसा नहीं। उन्होंने कहा कि जब तक पुलिस की मौजूदगी है, तब तक कोई दिक्कत नहीं होगी और पहले लोगों का जोर इस पर है कि वो अपने नुकसान की भरपाई करें।
1 साल पहले ऑपइंडिया की ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान स्थानीय लोगों ने बताया था कि उक्त पार्किंग एरिया को उन्हीं मजहबी दंगाइयों ने तबाह किया, जो राजधानी स्कूल को ‘अटैक बेस’ बनाए हुए थे। राजधानी स्कूल में तोड़फोड़ वाली ख़बर मीडिया में ख़ूब चलीं लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कि ये तोड़फोड़ एकदम दिखावटी था। वो स्कूल, जिसके दरवाजे पर ही लिखा हुआ था- “नो सीएए, नो एनपीआर“।
एक खबर के अनुसार तो आसपास ही स्थित दो-तीन पार्किंग क्षेत्रों में कुल 170 गाड़ियों को आग के हवाले किया गया था। कई गाड़ियाँ कबाड़ हो गई थीं। पार्किंग की छत पर पत्थर और बम पड़े हुए मिले थे। कारों को तो छोड़िए, वहाँ स्थित हिन्दुओं के घरों और दुकानों तक को जला डाला गया था। पुलिस अधिकारी तक घायल हुए थे। घरों में दुबके लोगों के पास भी इसका धुआँ पहुँचा था। मंदिर के बाद वाली गली में लोग अपनी बहू-बेटियों की इज्जत बचाने के लिए अड़े रहे थे।