Saturday, April 20, 2024
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दिल्ली हाई कोर्ट में वक्फ एक्ट को चुनौती, अदालत ने केंद्र से 4 हफ्ते में माँगा जवाब: अश्विनी उपाध्याय ने बताया गैर मुस्लिमों से होता है भेदभाव

कोर्ट ने इस मामले में गृह मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और भारत के विधि आयोग को नोटिस जारी कर उन्हें 4 सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए कहा।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने वक्फ अधिनियम (एक्ट) 1995 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर 20 अप्रैल 2022 को एक नोटिस जारी किया है। मामले में याचिका अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई थी। अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा कि वक्फ अधिनियम भारत में धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति नवीन चावला की खंडपीठ ने इस मामले में गृह मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और भारत के विधि आयोग को नोटिस जारी कर उन्हें 4 सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए कहा।

कोर्ट ने सेंट्रल वक्फ बोर्ड को भी नोटिस जारी किया है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने वक्फ अधिनियम को चुनौती देने के बावजूद वक्फ बोर्ड की पैरवी नहीं की है। पीठ ने केंद्रीय वक्फ बोर्ड को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया और उपाध्याय को मामले में उन्हें एक पक्ष बनाने के लिए कहा।

बता दें कि मामले में अगली सुनवाई 28 जुलाई को निर्धारित की गई है।

अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने वक्फ अधिनियम 1995 को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका (PIL) दायर की थी। जनहित याचिका में कहा गया है कि अधिनियम वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन की आड़ में बनाया गया है, लेकिन अन्य धर्मों के अनुयायियों के लिए समान कानून नहीं हैं। जनहित याचिका में इस अधिनियम के तहत विभिन्न प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी गई है। उपाध्याय ने दलील दी कि यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता, एकता और राष्ट्र की अखंडता के खिलाफ है। उन्होंने याचिका में इस बात का भी उल्लेख किया है कि संविधान में कहीं भी वक्फ का उल्लेख नहीं है।

वहीं अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने अदालत में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने अदालत से कहा कि यह याचिका काफी महत्वपूर्ण सवाल उठाती है।

न्यायमूर्ति नवीन चावला ने याचिका और भारत सरकार द्वारा उसी पर प्रतिक्रिया सुनी। याचिकाकर्ता ने वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 4, 5, 6, 7, 8, 9, 14 की वैधता को चुनौती दी है और केंद्र सरकार या भारत के विधि आयोग को ट्रस्ट-ट्रस्टियों और चैरिटी के लिए एक समान कोड का मसौदा तैयार करने के निर्देश देने की अपील की है।

अपनी याचिका में, अश्विनी कुमार उपाध्याय ने कहा था, “यदि अनुच्छेद 29-30 के तहत गारंटीकृत अधिकारों की रक्षा के लिए अधिनियम बनाया गया है, तो इसमें सभी अल्पसंख्यकों यानी जैन धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म, यहूदी धर्म, बहाईवाद के अनुयायियों, पारसी धर्म, ईसाई धर्म भी को शामिल करना होगा न कि केवल इस्लाम।” याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वक्फ बोर्डों द्वारा जारी वक्फ की सूची में शामिल होने से उनकी संपत्तियों को बचाने के लिए हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों, सिखों और अन्य समुदायों के लिए कोई सुरक्षा नहीं है। इसलिए, हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, बहाई, ईसाई और पारसी के साथ भेदभाव किया जाता है।

अश्विनी कुमार उपाध्याय ने बताया कि कैसे सरकार वक्फ बोर्ड पर सरकारी धन खर्च करती है लेकिन कोई राजस्व एकत्र नहीं करती है, और हिंदू मंदिरों से धन एकत्र करती है लेकिन उन पर कुछ भी खर्च नहीं करती है। याचिका में कहा गया है कि वक्फ बोर्ड में मुस्लिम विधायक, सांसद, आईएएस अधिकारी, नगर योजनाकार, अधिवक्ता और विद्वान इसके सदस्य हैं, जिन्हें सरकारी खजाने से भुगतान किया जाता है, इस तथ्य के बावजूद कि केंद्र मस्जिदों या दरगाहों से कोई पैसा नहीं लेता है।

उपाध्याय ने अपनी याचिका में यह भी तर्क दिया, “दूसरी ओर, राज्य चार लाख मंदिरों से लगभग एक लाख करोड़ रुपए इकठ्ठा करती है, लेकिन हिंदुओं के लिए समान प्रावधान नहीं हैं। इस प्रकार, अधिनियम अनुच्छेद 27 का उल्लंघन करता है।”

याचिका में केंद्र सरकार या भारत के विधि आयोग को अनुच्छेद 14 और 15 की भावना में ‘ट्रस्ट-ट्रस्टी और चैरिटी-चैरिटेबल संस्थानों के लिए एक समान कोड’ का मसौदा तैयार करने और इसे सार्वजनिक बहस और प्रतिक्रिया के लिए प्रकाशित करने का निर्देश देने की भी माँग की गई है।

गौरतलब है कि वक्फ संपत्तियों से संबंधित विवादों का फैसला वक्फ अधिनियम के अनुसार वक्फ ट्रिब्यूनल द्वारा किया जाता है। वहीं जनहित याचिका इस प्रावधान को भी चुनौती देती है और यह निर्देश देने की माँग करती है कि धार्मिक संपत्तियों से संबंधित विवाद का निर्णय सिविल कोर्ट द्वारा केवल सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 9 के तहत किया जाए।

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 की भावना में ‘ट्रस्ट-ट्रस्टी और चैरिटी-चैरिटेबल संस्थानों के लिए समान कोड’ का मसौदा तैयार करने के लिए केंद्र सरकार या भारत के विधि आयोग को निर्देश देने की माँग वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि वह संसद को ऐसा कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकती।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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