Wednesday, November 20, 2024
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योगी सरकार के प्रयासों से इंसेफ्लाइटिस चाइल्ड डेथ पर पाया गया कंट्रोल, 2,817 से 234 पर आया आँकड़ा

साल 2019 में सरकार द्वारा दिए गए आँकड़ों के अनुसार, बच्चों की मौत के कारण विवादों में रहे गोरखपुर का बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ही साल 2016 में 2,817 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें 426 की मौत इस बीमारी के कारण हुई। इसके बाद साल 2017 में करीब 2,998 बच्चे अस्पताल में भर्ती हुए, जिनमें से मरने वाले बच्चों की संख्या 380 रही। ऐसे ही साल 2018 में ये आँकड़ा और कम हुआ। इस बार सिर्फ़ 1,289 केस अस्पताल में आए।

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार को सत्ता संभालते हुए 3 साल पूरे होने वाले हैं। इन तीन सालों के पूरे होने के बीच में योगी सरकार ने कई ऐसे काम किए हैं जिन्हें आने वाली सरकारें हमेशा याद रखेंगी और शायद उनसे सीख भी लें। इन्हीं कार्यों में से एक कार्य गोरखपुर इंसेफ्लाइटिस चाइल्ड डेथ पर कंट्रोल पाना भी हैं।

दरअसल, आज से 3 वर्ष पहले योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक व धार्मिक कर्मभूमि रहा गोरखपुर जापानी इंसेफेलाइटिस की चपेट में था। उस समय पूरे प्रदेश में हजारों की संख्या में बच्चों की मौतें होती थीं। मगर 2017 में जब योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री के रूप में उत्तर प्रदेश की सत्ता संभाली, तब उन्होंने इस समस्या को बड़ी चुनौती के रूप में लिया।

पिछली सरकारों की निष्क्रियता के कारण सालाना मृत बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही थी। उस वर्ष भी करीब 500 से अधिक बच्चे अपनी जान गँवा चुके थे और गोरखपुर व आसपास के 14 जिले इस बीमारी की चपेट में थे। इसके बाद 2017 में गोरखपुर के अस्पताल में कई बच्चों की मौत होने से ये मामला बहुत बड़ा राजनीतिक मुद्दा भी बन गया।

बस फिर क्या…. योगी आदित्यनाथ ने इस बीमारी से निपटने के लिए बड़े स्तर पर योजनाएँ तैयार कीं। इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन (WHO) और UNICEF जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ साझेदारी की और उनके साथ मिल कर एक एक्शन प्लान पर काम शुरू किया।

इस समस्या से निपटने के लिए एक बड़ा और व्यापक टीकाकरण अभियान शुरू किया गया। स्वास्थ्य व सफाई को लेकर जागरूकता फैलाने के तहत एक बड़ा अभियान चलाया गया। प्रभावित क्षेत्रों से सूअरों को अलग किया गया। फॉगिंग के लिए त्वरित प्रतिक्रिया टीम को लगाया गया।

बच्चों के माता-पिता को घर-घर जाकर यह समझाया गया कि वे अपने बच्चों को मिट्टी की पुताई वाली जमीन पर न सोने दें। पीने का पानी के लिए इंडिया मार्क-2 वाटर पाइप का और हैंड पंप का प्रयोग करने की सलाह दी गई।

इस बीमारी से जुड़े लक्षणों के बारे में हर परिवार को बताया गया और किसी भी आपात स्थिति में 108 एम्बुलेंस नंबर पर कॉल करने को कहा गया। इन सभी कार्यों के परिणाम भी अच्छे मिले। जापानी इंसेफेलाइटिस के कारण हुई मौतों में एक वर्ष के भीतर दो तिहाई की कमी आई। जहाँ 2017 में इस बीमारी से 557 जानें गई थीं, 2018 में यह आँकड़ा 187 रहा।

साल 2019 में सरकार द्वारा दिए गए आँकड़ों के अनुसार, बच्चों की मौत के कारण विवादों में रहे गोरखपुर का बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ही साल 2016 में 2,817 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें 426 की मौत इस बीमारी के कारण हुई। इसके बाद साल 2017 में करीब 2,998 बच्चे अस्पताल में भर्ती हुए, जिनमें से मरने वाले बच्चों की संख्या 380 रही। ऐसे ही साल 2018 में ये आँकड़ा और कम हुआ। इस बार सिर्फ़ 1,289 केस अस्पताल में आए। इनमें मृत बच्चों का दर गिरके 125 रह गया और साल 2019 आते-आते सरकार के प्रयासों ने इस बुखार के प्रकोप को खत्म तो नहीं किया लेकिन काफी हद तक कम कर दिया। क्योंकि पिछले साल केवल 234 बच्चे अस्पताल में भर्ती हुए जिनमें सिर्फ़ 22 बच्चों को नहीं बचाया जा सका। बाकी बच्चों को बचाने में अस्पताल सफल रहा।

आज अगर हम 2016 से 2019 तक के ये घटते आँकड़े देखें। तो मालूम पड़ेगा कि योगी सरकार से पहले तक बच्चों का इस बीमारी से ग्रस्त होना एक रूटीन प्रक्रिया हो गई थी। लेकिन प्रशासन ने अपने प्रयासों से इस पर काबू पाया और लगातार बीमार होने वाले बच्चों की संख्या में गिरावट आई। अब उम्मीद है कि आने वाले कुछ सालों में प्रदेश से इस बुखार का प्रकोप खत्म हो जाएगा और संसाधन-सुविधाएँ इतनी होंगी कि किसी नवजात को इससे पीड़ित न होना पड़े।

बता दें, योगी सरकार की इस कामयाबी के लिए पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कार्यक्रम के दौरान उनकी खूब तारीफ की थी और कहा था कि कुछ स्वार्थी थे जिन्होंने योगी आदित्यनाथ के काम को नकार दिया और निर्दोष लोगों की मौत के लिए उन्हें दोषी ठहराया। मगर अब एक बीमारी जो दूषित वातावरण के कारण फैल रही थी वो अब खत्म होने की कगार पर है। पीएम मोदी ने इस दौरान बताया था कि संसद का एक भी सत्र ऐसा नहीं जाता था जब योगी आदित्यनाथ सबके समक्ष इस मुद्दे को नहीं उठाते थे और सबको इस बात से अवगत नहीं कराते थे कि आखिर कैसे प्रदेश में बच्चों की मृत्यु की संख्या बढ़ रही है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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