पूर्व मुस्लिमों पर शरिया कानून लागू होना या नहीं? अब सुप्रीम कोर्ट इस बड़े मुद्दे पर सुनवाई करने वाला है। सवाल है कि या Ex Muslims 1937 के शरीयत कानून के तहत ही प्रशासित किए जाते रहेंगे या फिर उन पर भारत का धर्मनिरपेक्ष कानून लागू होगा? खासकर, संपत्ति और वसीयत के संबंध में। केरल की एक महिला द्वारा दायर रिट याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस भी जारी किया। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस DY चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाले 3 सदस्यीय पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की।
साफिया पीएम ने ये याचिका दायर की है। ‘एक्स मुस्लिम्स ऑफ केरल’ संगठन की जनरल सेक्रेटरी सफिया ने सुप्रीम कोर्ट से ये आदेश पारित करने का निवेदन किया है कि इस्लाम मजहब छोड़ चुके जो लोग शरीयत की जगह भारत के सेक्युलर कानून के अंतर्गत आना चाहें, उन्हें इसकी अनुमति दी जाए। यानी, संपत्ति एवं वसीयत के मामले में उन्हें इंडियन सक्सेशन एक्ट, 1925 के अंतर्गत आया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इसे महत्वपूर्ण मसला बताते हुए अटॉर्नी जनरल से कहा कि वो एक कानूनी अधिकारी को नियुक्त करे, जो सुप्रीम कोर्ट की सहायता करे।
पहले तो सुप्रीम कोर्ट की पीठ इस मामले को सुनने से हिचक रही थी, साथ ही ये भी कहा कि जब तक अपनी वसीयत बना रहा शख्स ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लिकेशन एक्ट’, 1937 के सेक्शन-3 के तहत खुद घोषणा न की हो तब तक ये कानून लागू होगा। एडॉप्शन में भी शरिया ही लागू होगा। अगर घोषणा नहीं की गई तो फिर पर्सनल लॉ के तहत ही चीजों का फैसला होगा। पीठ में जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस JB पार्डीवाला भी शामिल थे।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने साफिया के वकील प्रशांत पद्मनाभन से सहमति जताते हुए कहा, “यहाँ एक समस्या है। क्योंकि, अगर आप घोषणा नहीं करते हैं तो तब भी यहाँ एक शून्य है क्योंकि सेक्युलर लॉ अप्लाई होगा ही नहीं। जब हमने पढ़ना शुरू किया तो कहा कि ये भला किस तरह की याचिका है। अब जब आप इसके भीतर घुस चुके हैं, ये एक महत्वपूर्ण बिंदु है। हमलोग नोटिस जारी करेंगे।” याचिकाकर्ता का कहना है कि उसका जन्म इस्लाम में हुआ था, उसके अब्बा एक नॉन-प्रैक्टिसिंग मुस्लिम हैं।
VIDEO | Here's what advocate Prashant Padmanabhan said on the Supreme Court agreeing to consider a plea seeking a declaration that Sharia Law won't apply to non-believer Muslims.
— Press Trust of India (@PTI_News) April 29, 2024
"As of now, for those persons who are born as Muslims, Sharia law is applicable in all their… pic.twitter.com/wm9LQejMPL
याचिका के मुताबिक, उसके मुस्लिम अब्बा ने आधिकारिक रूप से मजहब नहीं छोड़ा है, ऐसे में वो अपनी बेटी के अधिकारों को सुरक्षित रखने में समस्या का सामना कर रहे हैं। वो चाहती है कि उस पर शरिया न लागू हो, लेकिन कानून में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है। यानी, एक शून्य है जिस पर न्यायपालिका ही कुछ कर सकती है। अगर वो नो-रिलिजन या नो-कास्ट सर्टिफिकेट ले ले, तब भी भारत के धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत विरासत और वसीयत का अधिकार उसे नहीं मिलेगा।