केंद्र की मोदी सरकार ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 18 वर्ष से 21 साल किए जाने वाले प्रस्ताव को आज (दिसंबर 16, 2021) पारित कर दिया। साल 2020 में 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण के दौरान इस बाबत संकेट दिए थे। अब सरकार ने इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए बाल विवाह निषेध कानून, स्पेशल मैरिज एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन का रास्ता साफ किया है।
सरकार द्वारा प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद लग रहा था कि शायद इस फैसले के अंतर्गत मुस्लिम पर्सनल लॉ न आए या नया संशोधन इस लॉ पर प्रभावी न हो। लेकिन ऑपइंडिया को सूत्रों ने बताया कि हर पर्सनल लॉ पर ये संशोधन प्रभावी होगा और हर समुदाय की लड़कियों की शादी के लिए 21 साल की उम्र अनिवार्य होगी।
मालूम हो कि बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 ‘बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (पीसीएमए)’ में संशोधन का प्रस्ताव करता है ताकि पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए विवाह की उम्र 21 वर्ष के बराबर की जा सके जो वर्तमान में पुरुषों के लिए 21 वर्ष है और महिलाओं के लिए 18 वर्ष। विवाह की आयु से संबंधित यही बदलाव संबंधित कानूनों में भी होगा। ये कानून ‘भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872’ ; ‘पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936’ ; ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937’ ; ‘विशेष विवाह अधिनियम, 1954’ ; ‘हिंदू विवाह अधिनियम, 1955’; और ‘विदेशी विवाह अधिनियम, 1969’ हैं। इनके अलावा ‘हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956’; और ‘हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956’ भी इस संदर्भ में आते हैं।
बता दें कि कैबिनेट द्वारा बुधवार को दी गई मँजूरी दिसंबर 2020 में जया जेटली की अध्यक्षता वाली केंद्र की टास्क फोर्स द्वारा नीति आयोग को सौंपी गई सिफारिशों पर आधारित है। इसका गठन मातृत्व की उम्र से संबंधित मामलों, मातृ मृत्यु दर को कम करने की आवश्यकता, पोषण में सुधार से संबंधित मामलों के लिए किया गया था।
क्यों मुस्लिम पर्सनल लॉ को लेकर उठ रहे थे सवाल?
वैसे तो बाल विवाह को लेकर बनाया गया कानून हर समुदाय पर लागू होता है लेकिन मुस्लिम पर्सनरल लॉ को लेकर इसकी स्थिति अब तक स्पष्ट नहीं रही है। ल्ली हाईकोर्ट ने 2012 में एक 15 साल की लड़की की अपनी मर्जी से शादी को वैलिड मानते हुए कहा था कि इस्लामिक कानून के मुताबिक लड़की मासिक धर्म शुरू होने के बाद अपनी इच्छा के मुताबिक शादी कर सकती है।
वहीं गुजरात हाई कोर्ट ने 2015 में कहा था कि बाल विवाह निषेध कानून 2006 के दायरे में समुदाय विशेष वाले भी आते हैं। अक्टूबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एमबी लोकुर और दीपक गुप्ता ने समुदाय विशेष के अलग विवाह कानून को पीसीएमए के साथ मजाक बताया था। सितंबर 2018 में पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा था कि समुदाय विशेष पर यह कानून लागू नहीं होता। अदालत का कहना था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ स्पेशल एक्ट है, जबकि पीसीएमए एक सामान्य एक्ट है।