मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर बेंच ने एक बलात्कारी की सज़ा आजीवन कारावास से बदल कर 20 साल की जेल कर दी। हाईकोर्ट ने कहा कि कम से कम उसमें इतनी दया तो थी कि उसने पीड़िता को ज़िंदा छोड़ दिया। उक्त अपराधी ने मात्र 4 साल की बच्ची का निर्मम बलात्कार किया था। जस्टिस सुबोध अभयंकर और जस्टिस एसके सिंह की पीठ ने ये फैसला सुनाया। पीठ ने कहा कि दोषी करार दिए जाने में कोई गलती नहीं है, लेकिन सज़ा घटाए जाने की माँग भी सही है।
हाईकोर्ट ने कहा, “ऐसी परिस्थितियों में हम ट्रेल कोर्ट द्वारा सबूतों को देख कर सुनाई गई इस सज़ा में कोई खोट नहीं देखते हैं। याचिकाकर्ता ने एक शैतानी घटना को अंजाम दिया ऐसा लगता है कि एक महिला की प्रतिष्ठा के प्रति उसके मन में कोई सम्मान नहीं है। उसने 4 साल की बच्ची का बलात्कार कर के अपनी प्रवृत्ति दिखाई। अतः, हम इस सज़ा को उसके द्वारा अब तक भोगी गई सज़ा की अवधि तक नहीं घटा सकते हैं।”
लेकिन, अदालत ने आगे कहा कि चूँकि उसमें इतनी दयालुता थी कि उसने बच्ची की हत्या नहीं की और बलात्कार के बाद उसे ज़िंदा छोड़ दिया, इसीलिए न्यायालय का विचार है कि आजीवन कारावास की सज़ा को घटा कर 20 वर्ष किया जा सकता है। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसने इस मामले में झूठा फँसाया गया है। उसने दावा किया कि फॉरेंसिक रिपोर्ट को रिकॉर्ड में नहीं प्रस्तुत किया गया और ये ऐसा मामला नहीं है कि उसे सज़ा मिले।
— Live Law (@LiveLawIndia) October 22, 2022
हालाँकि, पुलिस ने कहा कि बलात्कारी दया का पात्र नहीं है और उसके मामले को ख़ारिज किया जाए। हालाँकि, FSL रिपोर्ट को रिकॉर्ड में न पेश किए जाने को अदालत ने पुलिस की घोर लापरवाही करार दिया। हालाँकि, हाईकोर्ट ने माना कि बाक़ी सभी सबूत बताते हैं कि उस व्यक्ति ने इस अपराध को अंजाम दिया है। इस मामले में प्रत्यक्षदर्शी गवाह के अलावा मेडिकल सबूत भी उसके खिलाफ पाए गए। हाईकोर्ट ने कहा कि बिना किसी शक के अपराध साबित होता है।