कर्नाटक हिजाब विवाद पर हाई कोर्ट में लगातार सुनवाई हो रही है और हर दिन मामला अनसुलझा रह जाता है। आज (मंगलवार 22 फरवरी 2022) को भी हाई कोर्ट में 8वें दिन की सुनवाई हुई। इस मसले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट में एडवोकेट जनरल ने कहा कि कॉलेजों के कैम्पस के अंदर हिजाब पहनने पर मनाही नहीं है। मनाही तो केवल क्लासरूम में पहनने पर है।
एजी ने कोर्ट में कहा कि हमारे पास शैक्षणिक संस्थानों के तौर पर एक कानून है। वर्गीकरण और पंजीकरण नियम 11 के तहत विशेष टोपी पहनने पर बैन लगाया गया है। इसके साथ ही एजी ने ये भी कहा कि अगर कोई ये कहे कि किसी धर्म विशेष की सभी महिलाएँ एक ही तरह के कपड़े पहनेंगी तो क्या ये सब उस व्यक्ति के आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुँचाएगा।
हाई कोर्ट में एजी ने बताया कि धर्म के आधार पर किसी से भी कोई भेदभाव नहीं हो रहा है। इसके अलावा अल्पसंख्यक संस्थान के यूनिफॉर्म कोड में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं किया जा रहा है। इसका फैसला लेने का अधिकार उन संस्थानों को है।
हिजाब विवाद की सुनवाई सीजे ऋतुराज अवस्थी, जस्टिज जेएम खाजी, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित की बेंच के सामने एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवदगी ने अपनी तमाम दलीलें रखीं।
हिजाब को काउंटर करने वाली य़ाचिका भी हाई कोर्ट में दायर
हिजाब को लेकर मुस्लिम पक्ष द्वारा कर्नाटक हाई कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई चल ही रही थी, लेकिन इसी बीच अब इस याचिका को काउंटर करती हुई याचिका दायर की गई है। ये याचिका एक्टिस्ट संजीव नेवार, पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा और वैज्ञानिक वाशी शर्मा ने एडवोकेट शशांक शेखर झा, अभिमन्यु देवैया, कुंदन चौहान और राजन श्री कृष्णन के जरिए दायर की है।
इसमें बताया गया है कि इस्लाम के पाँच स्तंभ शाहदा, सलात, ज़कात, साम और हज हैं, लेकिन इसमें हिजाब शामिल नहीं है। ऐसे में इस्लाम में हिजाब कोई अनिवार्य अभ्यास नहीं है। इतना ही नहीं अपनी याचिका में हिजाब को इस्लाम का अनिवार्य अंग बताने वाले कुरान को स्त्रोत को भी चुनौती दी है। अपने तर्क को पुख्ता करने के लिए 15 से अधिक छंदों का हवाला देते ये भी बताया गया है कि इस्लाम में किस तरह से बहुदेववादियों, मूर्ति पूजा करने वालों के खिलाफ नफरत फैलाई जा रही है।
याचिका में हिंदू धर्म ग्रंथों का जिक्र करते हुए बताया गया है कि छात्र अपने विद्यालयों में कमंडल और लंबी लाठी भी ले जाते थे। याचिका में कहा गया है, “क्या होगा अगर हिंदू छात्र आवश्यक धार्मिक प्रथाओं के नाम पर शैक्षणिक संस्थानों में इन्हें ले जाने के लिए परमिट की माँग करना शुरू कर दें।”