Sunday, December 22, 2024
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गाँव की आबादी 3500 पर एक भी हिंदू नहीं, रामगढ़ के 550 वोटर में 500 मुस्लिमः नो मेंस लैंड में भी बसे, नेपाल बाॅर्डर पर ‘घर दामाद’ से डेमोग्राफी चेंज

"एक परिवार में कई बच्चे होने से आबादी लगातार बढ़ रही है। हमने होश सँभाला तब यहाँ 24 से 25 परिवार थे। हमारे तीन बेटे हैं। अभी ताे एक ही परिवार में हैं। लेकिन मेरे बाद अलग होकर तीन परिवार बन जाएँगे। गाँव में कुछ लोग बाहर से आए हैं। उन्हें घर दामाद कहते हैं।"

गाँव का नाम बिचपटा। आबादी 3500 के करीब। पर इनमें कोई भी हिंदू नहीं है। गाँव का नाम रामगढ़। 550 के करीब वोटर। इनमें 500 से अधिक मुस्लिम हैं। ये गाँव उत्तर प्रदेश से सटे नेपाल बाॅर्डर के करीब हैं। लखीमपुर के चंदन चौकी से बिचपटा करीब एक किलोमीटर दूर है। इसी गाँव से सटा हुआ है रामगढ़। नेपाल की सीमा से सटे इलाकों में हुए डेमोग्राफी चेंज को आप इन गाँवों में आकर समझ सकते हैं। महसूस कर सकते हैं।

ये केवल दो गाँवों तक ही सीमित नहीं है। बहराइच में बाॅर्डर का आखिरी गाँव सीतापुरवा है। यहाँ भी सिर्फ मुस्लिम आबादी है। कोई हिंदू परिवार इस गाँव में नहीं रहता। श्रावस्ती में बाॅर्डर से लगा गाँव है- भरथा रोशनपुरवा। करीब 5 हजार की आबाद वाला ये गाँव नो मेंस लैंड में भी आबाद है। एक छोर भारत में तो दूसरा छोर नेपाल में। बाॅर्डर बताने वाले पिलर तक नजर नहीं आते। नो मेंस लैंड उस भूमि को कहते हैं जिसे दो देशों की सीमाओं के बीच छोड़ दिया जाता है। इस जमीन पर किसी देश का अधिकार नहीं होता। इसमें पिलर या बाड़ लगाकर देश अपनी सीमा का निर्धारण कर लेते हैं।

दैनिक भास्कर के रिपोर्टर रवि श्रीवास्तव नेपाल बाॅर्डर से लगे यूपी के लखीमपुर, बहराइच और श्रावस्ती जिलों के इन गाँवों की पड़ताल की है। वे जानना चाहते थे कि बाॅर्डर के इलाकों में डेमोग्राफी चेंज को लेकर किए जा रहे दावे कितने सही हैं। यूपी सरकार बिना मान्यता के चल रहे मदरसों पर कार्रवाई की तैयारी कर रही है। इन इलाकों के मदरसों की वास्तविक स्थिति क्या है। इस दौरान उन्होंने वह सब कुछ पाया जिन तथ्यों से ऑपइंडिया ने बीते साल अपने सिलसिलेवार ग्राउंड रिपोर्ट में आपको परिचित कराया था।

रवि श्रीवास्तव ने अपनी रिपोर्ट में विस्तार से इन गाँवों की आबादी, मस्जिद-मदरसे, यहाँ रहने वाले लोगों की स्थिति के बारे में बताया है। उन्होंने पाया कि ज्यादा बच्चे पैदा करना और दामाद कल्चर डेमोग्राफी चेंज के मुख्य कारणों में से हैं। चंदन चौकी के शौकत ने उन्हें बताया, “निकाह के बाद बेटियों के शौहर यहीं आकर बसने लगे। कहाँ से आकर बसे ये नहीं पता पर उन्हें घर दामाद कहा जाता है।” रामगढ़ के पूर्व प्रधान मोहम्मद उमर के हवाले दैनिक भास्कर ने कहा है, “एक परिवार में कई बच्चे होने से आबादी लगातार बढ़ रही है। हमने होश सँभाला तब यहाँ 24 से 25 परिवार थे। हमारे तीन बेटे हैं। अभी ताे एक ही परिवार में हैं। लेकिन मेरे बाद अलग होकर तीन परिवार बन जाएँगे। गाँव में कुछ लोग बाहर से आए हैं। उन्हें घर दामाद कहते हैं।”

ऑपइंडिया ने अपनी पड़ताल के पाया था कि बाॅर्डर इलाकों में घरों और दुकानों पर इस्लामी झंडों का लहराना सामान्य है। बलरामपुर जिले में बॉर्डर के 15 किलोमीटर के दायरे में 150 मदरसे चल रहे थे। मस्जिदों की संख्या 200 से अधिक थी। बलरामपुर जिले के ग्राम पंचायत अहलादडीह के ग्राम प्रधान हरीश चंद्र शर्मा ने बताया था कि 10 किमी के दायरे में 20 गाँव मुस्लिम बहुल हैं। डेमोग्राफी चेंज के कारण हिन्दू दब कर त्योहार मनाते हैं।

भारत नेपाल सीमा के इलाकों पर ऑपइंडिया की ग्राउंड रिपोर्ट एक सीरीज के तौर पर प्रकाशित की गई थी। इस पूरी सीरीज को एक साथ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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