जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दायर की है। अपनी याचिका में जमीयत ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वो 9 नवंबर को सुनाए गए फ़ैसले की समीक्षा करे। इतना ही नहीं, हिन्दुओं के पक्ष में आए उस फ़ैसले पर स्टे लगाने का भी आग्रह किया गया है। पुनर्विचार याचिका में जमीयत ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि हिन्दुओं द्वारा इस स्थल पर 1934, 1949 और 1992 में गैर कानूनी काम किए गए, इसीलिए फ़ैसले पर स्टे लगाया जाए। याचिका में कहा गया है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने इन कृत्यों की निंदा की है, ये ज़मीन हिन्दू पक्ष को कैसे दे दी गई?
बता दें कि 40 दिन की नियमित सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बहुचर्चित अयोध्या विवाद का फ़ैसला हिन्दुओं के पक्ष में सुनाया था। मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिमों को अयोध्या में कहीं और 5 एकड़ ज़मीन उपलब्ध कराने के निर्देश भी केंद्र सरकार को दिए थे। जमीयत ने इसे शरीयत के ख़िलाफ़ बताया था। मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि एक बार जिस जगह पर मस्जिद बन गई, क़यामत तक वहाँ सिर्फ़ मस्जिद ही रहती है। जमीयत ने अपनी याचिका में कहा है कि मुस्लिम पक्ष ने मस्जिद के लिए कहीं और जमीन नहीं मॉंगी थी। लेकिन, फैसले में संतुलन बनाने के इरादे से ऐसा आदेश सुनाया गया।
अपनी समीक्षा याचिका में जमीयत ने दावा किया है कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए मुस्लिम पक्ष मानता है कि काफ़ी दिनों से चले आ रहे इस विवाद का जल्द से जल्द अंत हो। हालाँकि, पूरे जजमेंट को चुनौती नहीं दी गई है। जमीयत ने रामलला को नाबालिग मानने की बात पर आपत्ति दर्ज की। जमीयत ने कहा है कि इतिहास में हुई ग़लतियों को कोर्ट सुधार नहीं सकता। जमीयत ने दावा किया है कि मंदिर को गिरा कर मस्जिद बनाए जाने के अभी तक कोई सबूत नहीं मिले हैं।
जमीयत ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि प्राचीन काल में आए पर्यटकों घुमंतुओं द्वारा रचित वृत्तांतों पर भरोसा करना सही नहीं है और उन्हें काफ़ी बारीकी से पढ़ा जाना चाहिए। जमीयत ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को त्रुटिपूर्ण करार दिया है। इस पुनर्विचार याचिका में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में ’14 गलतियाँ’ गिनाई गई हैं और दावा किया गया है कि समीक्षा का आधार भी यही है।