जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में हॉस्टल मैन्युअल अपडेट किए जाने को लेकर विवाद चल रहा है। इस सम्बन्ध में कुछ बातें हैं, जो आपके लिए जाननी ज़रूरी है। इसे आँकड़ों के माध्यम से समझने की ज़रूरत है। दरअसल, इस यूनिवर्सिटी में सबसे ज्यादा छात्र आर्ट्स, सोशल स्टडीज, लैंग्वेज कोर्स और इंटरनेशनल स्टडीज पढ़ते हैं। जेएनयू में लगभग 8,000 छात्र हैं। इनमें से आधे से ज्यादा आर्ट्स, लैंगवेज, लिटरेचर और सोशल साइंस के हैं। 57% छात्र इन्हीं चार विषयों की पढ़ाई करते हैं। बाकी बचे छात्रों में से 15% इंटरनेशनल स्टडीज में हैं। कुल छात्रों में से 55% एमफिल और पीएचडी कर रहे हैं।
एजुकेशन को लेकर ट्विटर पर अक्सर जानकारी साझा करने वाले अनुराग सिंह ने इन आँकड़ों को ट्वीट किया है। सवाल उठता है कि सरकार जेएनयू पर कितना ख़र्च करती है? अनुराग सिंह ने इस सवाल का जवाब भी दिया है। उन्होंने 2014 से लेकर 2018 तक जेएनयू को हुए वित्तीय लाभ और हानि का विवरण दिया है। ये आँकड़े जेएनयू के एनुअल रिपोर्ट से लिए गए हैं, जो क़रीब 600 पन्नों का है। अनुराग लिखते हैं कि जिन आँकड़ों को पहले पन्ने पर होना चाहिए, वो बीच में कहीं दबे रहते हैं।
जेएनयू को सब्सिडी और सहायता के रूप में सरकार से 352 करोड़ मिलते हैं। जेएनयू प्रतिवर्ष 556 करोड़ ख़र्च करता है। यूनिवर्सिटी के सभी कार्यों को मिला कर सालाना ख़र्च होने वाली रक़म यही है। अब सवाल उठता है कि अगर छात्रों की हिसाब से देखें तो यूनिवर्सिटी प्रति छात्र सालाना कितनी रक़म ख़र्च करता है? छात्रों की संख्या लगभग 8,000 है। कुल ख़र्च 556 करोड़ है। कैलकुलेट करने पर पता चलता है कि जेएनयू हर एक छात्र पर सालाना 6.95 लाख रुपए ख़र्च करता है। अगर हम बाकी चीजों को हटा दें और केवल सरकारी सब्सिडी और ग्रांट्स की बात करें, तब भी आँकड़ा 352 करोड़ होता है। यानी, 4.40 लाख रुपए प्रति छात्र।
अब आपको लगता होगा कि इतनी ज्यादा रक़म ख़र्च हो रही है तो छात्र ज़रूर बेहतर अकादमिक प्रदर्शन करते होंगे? आपको लगता होगा कि काफ़ी उम्दा गुणवत्ता वाले रिसर्च पेपर्स प्रकाशित होते होंगे। दुनिया भर के नामी जर्नल्स में जेएनयू के छात्रों के रिसर्च पेपर्स छपते होंगे और उनकी वाहवाही होती होगी। अनुराग बताते हैं कि ऐसा नहीं है। रिसर्च और प्लेसमेंट के बारे में जेएनयू कुछ स्पष्ट नहीं बताता। अपनी रिपोर्ट्स में वह नहीं बताता कि प्लेसमेंट्स की स्थिति क्या है? फिर भी, उपलब्ध आँकड़ों पर गौर करें तो एमफिल और पीएचडी के छात्रों की संख्या भले ही 4360 हो पर रिसर्च पेपर्स की संख्या 1000 छूने में भी हाँफ जाती है।
अनुराग सिंह ने आगे कैलकुलेट कर के बताया कि प्रतिवर्ष औसतन 4.5 छात्रों में से 1 के ही ‘आर्टिकल’ जर्नल में छप पाते हैं। हर साल 2000 से भी अधिक इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में छात्र हिस्सा लेते हैं। जब रिसर्च पेपर नहीं छप रहे और न कोई पेटेंट्स आ रहे, तो फिर उन कॉन्फ्रेंस से क्या प्राप्त होता है, ये तो भगवान ही जानें। हर साल क़रीब 600 पीएचडी धारक निकलते हैं और न कोई उम्दा रिसर्च पेपर और न कोई पेटेंट।
We see that there are a total of ~8000 students at JNU. Of this, the lion’s share of 57% students is of social sciences, language, literature & arts (4578 students) & International studies 15% ( 1210 students). Almost 55% of the total i.e. 4359 students are doing M.Phil. or Ph.D
— Anurag Singh (@anuragsingh_as) November 19, 2019
तो फिर हंगामा क्यों? फी बढ़ाने का आरोप लगा कर विरोध-प्रदर्शन क्यों? जेएनयू में ट्यूशन फी मात्र 240 रुपए प्रतिवर्ष है। लाइब्रेरी फी के नाम पर प्रतिवर्ष मात्र 6 रुपए लिए जाते हैं। सिक्योरिटी डिपाजिट मात्र 40 रुपए है, जो वापस भी मिल जाते हैं। ये आँकड़े एमफिल और पीएचडी के हैं।
With 4360 students in M.Phil. & Ph.D. courses, there are hardly 1000 research “articles” published in Journals. The university doesn’t name any notable journals while making such claims. This implies that there is just ONE “article” published for every 4.5 students each year.
— Anurag Singh (@anuragsingh_as) November 19, 2019
आईआईटी दिल्ली जेएनयू के बगल में ही स्थित है। वहाँ छात्रों के प्रतिवर्ष 2.25 लाख ख़र्च होते हैं। इसी तरह आईआईएमसी में प्रतिवर्ष 5 से 10 लाख रुपए फी लगते हैं। जब चार्जेज में मामूली बढ़ोतरी की गई है, तब इस सवाल का उठना लाजिमी है कि जेएनयू छात्र संगठन के इस विरोध-प्रदर्शन का औचित्य क्या है? वैसे भी जेएनयूएसयू के विभिन्न पदों पर वामपंथी छात्र संगठन के लोग काबिज हैं।
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