Sunday, September 15, 2024
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सौंदर्य सामग्री पर ₹60000 और ब्रांडेड कपड़ों पर ₹50000 महीना खर्च: महिला ने अलग रह रहे पति से भरण-पोषण में माँगा ₹6 लाख प्रतिमाह, कोर्ट बोला- खुद कमाओ

इस पर न्यायाधीश कन्नेगांती ने कहा कि न्यायालय कोई बाजार नहीं है, जहाँ मुकदमेबाज मोल-तोल करने आएँ। अदालत ने कहा, "आपका मुवक्किल समझ नहीं रही है, लेकिन आपको उसे समझना चाहिए। यह मोल-तोल करने की जगह नहीं है। आप उसके वास्तविक खर्चों के बारे में अदालत को बताइए। हम आपको एक आखिरी मौका देंगे, अन्यथा इसे हम खारिज कर देंगे।"

कर्नाटक में एक महिला ने अलग रह रहे अपने पति से भरण-पोषण के लिए 6 लाख रुपए की माँग की है। हाई कोर्ट ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। अदालत ने कहा कि यदि महिला अपने ऊपर वास्तव में इतना खर्च करना चाहती है तो उसे खुद कमाना चाहिए। अदालत ने कहा कि उसे ना तो अपने बच्चों को पालना है और ना ही उस पर कोई दायित्व है, फिर खर्च के लिए इतने पैसों की माँग सही नहीं है।

इस मामले की सुनवाई कर्नाटक हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति ललिता कन्नेगांती की अदालत ने 21 अगस्त 2024 को की। सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने महिला को अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने को लेकर भी चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि वह इस मामले का उपयोग उन सभी वादियों को कड़ा और स्पष्ट संदेश देने के लिए करेंगी, जो सोचते हैं कि वे कानून का दुरुपयोग कर सकते हैं।

महिला न्यायाधीश ने कहा, “वह खर्च के रूप में 6,16,300 रुपए चाहती है? हर महीने? उसे सिर्फ़ उसके पति की कमाई के आधार पर भरण-पोषण नहीं दिया जाएगा। उसकी आवश्यकताएँ क्या-क्या हैं? पति की कमाई 10 करोड़ रुपए होगी तो क्या कोर्ट उसे भरण-पोषण के रूप में 5 करोड़ रुपए देगा? एक अकेली महिला खुद पर हर महीने इतना खर्च करेगी? अगर वह खर्च करना चाहती है तो वह कमाए।”

दरअसल, अदालत एक महिला द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा थी। याचिका में निचली अदालत द्वारा उसे दिए गए भरण-पोषण भत्ते में वृद्धि की माँग की गई थी। पारिवारिक न्यायालय ने उसे 50,000 रुपए मासिक भरण-पोषण भत्ता दिया था। महिला ने हाई कोर्ट जाकर दावा किया कि उसका मासिक खर्च 6 लाख रुपए से अधिक है। इसलिए उसे यह राशि दी जाए।

महिला के वकील आकाश कनाडे ने कोर्ट में तर्क दिया कि याचिकाकर्ता महिला को पौष्टिक भोजन की आवश्यकता है। उसे बाहर का खाना खाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। उसके खाने का खर्च ही हर महीने 40,000 रुपए है। वकील ने कहा कि महिला का अलग रह रहा पति हर दिन अलग-अलग ब्रांडेड कपड़े पहनता है। उसके टी-शर्ट की कीमत 10,000 रुपए है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, महिला के एडवोकेट ने अदालत ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता महिला को पुराने कपड़े एवं ड्रेस पहनने के लिए मजबूर किया गया। इस प्रकार उसे कपड़ों और सामान के लिए 50,000 रुपए हर महीने की जरूरत है। इसके अलावा, उसके चिकित्सा एवं सौंदर्य प्रसाधन के लिए 60,000 रुपए की आवश्यकता है।

इस पर न्यायाधीश कन्नेगांती ने कहा कि न्यायालय कोई बाजार नहीं है, जहाँ मुकदमेबाज मोल-तोल करने आएँ। अदालत ने कहा, “आपका मुवक्किल समझ नहीं रही है, लेकिन आपको उसे समझना चाहिए। यह मोल-तोल करने की जगह नहीं है। आप उसके वास्तविक खर्चों के बारे में अदालत को बताइए। हम आपको एक आखिरी मौका देंगे, अन्यथा इसे हम खारिज कर देंगे।”

वहीं, महिला के पति की ओर से पेश वकील आदिनाथ नारदे ने तर्क दिया कि महिला के बैंक स्टेटमेंट के अनुसार उसके पास शेयरों में 63 लाख रुपए निवेश हैं। हालाँकि, बाद में याचिकाकर्ता महिला के वकील ने कहा कि भरण-पोषण का दावा उसका वास्तविक व्यय नहीं, बल्कि अनुमानित व्यय है। तमाम तर्कों को सुनने के बाद जज ने तर्कसंगत व्यय को न्यायालय के समक्ष पेश करने के लिए कहा है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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