Wednesday, November 20, 2024
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कश्मीर में गैर-मुस्लिमों की ‘हत्याओं’ ने कुरेदे 1990 के जख्म, रिपोर्ट्स में दावा- 500 लोग पलायन को तैयार

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिकू ने पीटीआई को बताया कि 500 के करीब या ज्यादा ने बड़गाम, अनंतनाग और पुलवामा के अलग-अलग इलाकों से निकलना शुरू कर दिया है।

जम्मू-कश्मीर में गैर-मुस्लिमों की हत्याओं ने एक बार फिर 90 के दशक की भयावह तस्वीर लोगों के जहन में ताजा कर दी है। मृतकों के घरों में जहाँ मातम का माहौल है, वहीं अन्य गैर-मुस्लिम या तो घर में बंद हो गए हैं या फिर घाटी छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। शेखपुरुरा में दर्जनों कश्मीरी पंडित अपने घरों को छोड़ जाते दिखे। वहीं कुछ इलाकों में कश्मीरी पंडित घर से बाहर कदम रखने से भी कतरा रहे हैं।

कुछ तो ऐसे हैं जिन्होंने 30 साल पहले भी अपने घर को नहीं छोड़ा था लेकिन हालिया घटनाओं ने उन्हें भयभीत कर दिया है। दूसरी ओर बाजार पर भी इस खौफ का असर दिखा। दो शिक्षकों की हत्या के बाद शाम को मार्केट पूरा बंद था। जिन्होंने हिम्मत करके दुकान खोली वो भी शाम तक बंद करके चले गए।

घाटी के हिंदुओं और अन्य गैर-मुस्लिमों में पसरे डर को देखते हुए प्रशासन ने 10 दिन का अवकाश दिया है, ताकि वह हालात सामान्य होने तक या तो अपनी कालोनियों में रहें या फिर कश्मीर से बाहर जम्मू या किसी अन्य शहर में अपने परिजनों के साथ रहें। पुलिस हर स्कूल और विभाग से गैर मुस्लिम कर्मचारीयों को निकाल रही है और उन्हें सुरक्षित जगह पहुँचाने का इंतजाम हो रहा है।

ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले गैर-मुस्लिम कर्मचारियों को आर्मी केंट या अन्य सुरक्षित स्थानों पर भेजा जा रहा है। पूरे कश्मीर में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। हर जगह तलाशी हो रही है। गैर-मुस्लिम फील्ड ड्यूटी से हटा दिए गए हैं। हर विभाग को इस संबंध में सूचना भेजी गई है और निर्देश दिए गए हैं कि गैर-मुस्लिम अपने घर में ही रहें।

दैनिक जागरण की रिपोर्ट 23 परिवारों के कश्मीर से जम्मू पहुँचने का दावा कर रही है। मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए प्रो हरि ओम ने कहा कि कश्मीर 1990 जैसा ही नजर आने लगा है। करीब दो दर्जन परिवार कश्मीर से बीती रात लौट आए हैं। इनमें कई सरकारी कर्मचारी भी हैं। उनके हिसाब से यह कश्मीर से गैर मुस्लिमों को फिर से खदेड़ने की साजिश है।

पिछले दिनों हुई घटनाओं के संबंध में जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व महानिरीक्षक अशकूर वानी ने कहा कि इस समय कश्मीर में कश्मीर हिंदुओं की संपत्ति पर कब्जे छुड़ाने में प्रशासन सक्रिय हो रखा है। ऐसे में आतंकियों ने 4 अल्पसंख्यकों को मारा। ऐसा करके उन्होंने कश्मीर में लौटाने के इच्छुक विस्थापितों को रोकने का प्रयास किया है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, कश्मीरी पंडितों के संगठन ने बताया कि संगठन के कर्मचारी जिन्हें 2010-11 में रिहेबिलेशन पैकेज के तहत जॉब दी गई थी वो चुपचाप जम्मू जा रहे हैं। उनका कहना है कि प्रशासन उन्हें सुरक्षित माहौल नहीं दे पा रहा।

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिकू ने पीटीआई को बताया, “500 के करीब या ज्यादा ने बड़गाम, अनंतनाग और पुलवामा के अलग-अलग इलाकों से निकलना शुरू कर दिया है। इनमें कुछ कश्मीरी पंडित नहीं भी थे जिन्होंने जगह छोड़ने का फैसला किया। ये 1990 को दोहराया जा रहा है…ये भले दिख न रहा हो लेकिन पलायन चल रहा है और मुझे इसकी आशंका थी। हमने राज्यपाल कार्यालय में अपॉइंटमेंट माँगी लेकिन वो हमें अभी तक नहीं मिली।”

51 साल की कश्मीरी पंडित ने शोपियाँ अपने परिवार के साथ छोड़ते हुए कहा- “हमने 90 के बुरे दौर में भी घाटी नहीं छोड़ी लेकिन अब अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों ने पलायन को मजबूर कर दिया है।” वहीं आतंकियों के हाथ मारे गए दीपक चंद के भाई विकी मेहरा ने घाटी को उन लोगों के जहन्नुम कहा और बताया कि अब 90 के हालात वापस आ रहे हैं। सरकार अल्पसंख्यकों को बचाने में विफल हो रही है।

उल्लेखनीय है कि अभी हाल में जम्मू-कश्मीर में आतंकियों ने पहचान पत्र देखने के बाद दो गैर-मुस्लिम शिक्षकों की हत्या की थी। उससे पहले भी उन्होंने मंगलवार को आमजन को अपना निशाना बनाया था। लगातार हुई इन आतंकी घटनाओं ने स्थानीयों में गुस्सा और डर भर दिया है। सबके सवाल बस यही हैं कि क्यों वो आज भी घाटी में सुरक्षित नहीं हैं?

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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