केरल के हाईकोर्ट ने चर्चों में ‘होली सेक्रामेंट’ के नाम पर एक ही प्याली से पिलाई जाने वाली शराब जैसी प्रथा के ख़िलाफ़ दायर जनहित याचिका को रद्द कर दिया। कोर्ट का कहना है कि ये आस्था का मामला है, इसलिए वे इसमें दखल नहीं कर सकते।
‘होली सेक्रामेंट’ ईसाई धर्म की एक ऐसी प्रथा है, जिसमें गिरजाघरों में रोटी और शराब बाँटकर यीशु मसीह के ‘लास्ट सपर’ को स्मरण किया जाता है। डॉक्टरों और डेन्टिस्टों के संगठन ‘क्वालिफाइड प्राइवेट मेडिकल प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन’ ने इस प्रथा के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। अपनी याचिका में इन्होंने इस प्रथा, (‘होली सेक्रामेंट’ वितरित किए जाने की प्रथा) को अस्वास्थ्यकर बताया था। साथ ही कहा था कि इस प्रथा से आम जनता के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा है, विशेषकर सहभागियों के लिए।
उल्लेखनीय है कि होली सेक्रामेंट की प्रथा में चर्च में पादरी हर सहभागी के मुँह में एक ही प्याली और चम्मच से शराब परोसते हैं। जिसके आधार पर डॉक्टर और डेंटिस्टों के संगठन का कहना था कि यह प्रक्रिया लार से गंदगी फैलने की आशंका को जन्म देती है, जोकि कई बीमारियों के प्रमुख कारणों में से एक है। उनमें से कुछ बीमारियाँ हवा में लार की बूंदों की मौजूदगी से भी फैल सकती है। लार की गंदगी के कारण बड़ी संख्या में लोगों में संक्रमण फैलने की आशंका होती है। इसलिए लोगों को ऐसी प्रथाओं में शामिल होने से बचना चाहिए।
जानकारी के अनुसार, इस जनहित यााचिका में माँग की गई थी कि चर्च सहित सभी धार्मिक संस्थानों में जहाँ भोजन वितरित होता है, वहाँ स्वच्छता संबंधी मानकों का पालन किया जाए और यह सुनिश्चित हो कि खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के अनुसार केवल सुरक्षित भोजन ही वितरित किया जाए।
मगर, याचिका पर सुनवाई के दौरान और अधिनियम के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए, चीफ जस्टिस एस मानिकुमार और जस्टिस शाजी पी चाली की बेंच ने कहा कि खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण को चर्चों में होली सेक्रामेंट के वितरण या व्यवस्थापन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं दिया गया है।
कोर्ट ने कहा धार्मिक समूह के सदस्यों द्वारा, होली सेक्रामेंट प्राप्त करने की प्रथा, सदस्यों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 21 में संरक्षित किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का हवाला देते हुए, हाईकोर्ट ने इस दौरान कहा कि धर्मावलंबी द्वारा ‘होली सेक्रामेंट’ ग्रहण करना उक्त प्रथा में उस व्यक्ति का विश्वास है और किसी नागरिक का धार्मिक विश्वास उस व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता है। हाईकोर्ट ने इसके बाद याचिका को खारिज करते हुए यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं ने ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिया, जिससे पता चले कि होली सेक्रामेंट वितरित किए जाने से किसी व्यक्ति को कोई संक्रामक रोग हुआ या स्वास्थ्य संबंधी खतरा पैदा हुआ।
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