Friday, November 22, 2024
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केरल वक्फ बोर्ड ने 3 गाँवों की 400 एकड़ जमीन पर ठोका दावा, 600 परिवारों पर मंडराया संकट: विरोध में उतरा चर्च, कानून में जल्द बदलाव के लिए केंद्र से किया आग्रह

बीजेपी ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया है, जिससे यह विवाद राजनीतिक रंग ले रहा है। पार्टी का कहना है कि यह केवल एक भूमि विवाद नहीं, बल्कि एक साजिश का हिस्सा है जिसमें चरमपंथी तत्व शामिल हैं।

केरल में कोच्चि के उपनगरीय इलाकों मुनम्बम और चेराई गाँवों 400 एकड़ जमीन को लेकर गंभीर विवाद उभर आया है, जहाँ लगभग 600 परिवारों की जमीन पर वक्फ बोर्ड ने अवैध दावा कर दिया है। यह मामला धीरे-धीरे राज्य की सीमाओं को पार कर अब राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है। इस विवाद में मुख्य रूप से मुनम्बम, चेराई, और पल्लिकाल द्वीप के इलाके शामिल हैं, जो कई दशकों से इन परिवारों की संपत्ति रही है। अब यह इलाका वक्फ बोर्ड की नज़र में है, जिससे इन परिवारों को अपनी जमीन खोने का डर सताने लगा है।

वक्फ बोर्ड का दावा और विरोध की शुरुआत

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, करीब पाँच साल पहले साल 2019 वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि मुनम्बम, चेराई और पल्लिकाल के इलाके उनकी संपत्ति हैं। यह इलाका न केवल केरल के 600 से अधिक परिवारों का घर है, बल्कि यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं, जिनके पास 1989 से जमीन के वैध कागजात हैं। इसके बावजूद, वक्फ बोर्ड ने इस इलाके पर अपना दावा ठोक दिया। इन परिवारों ने अपनी जमीन को वैध रूप से खरीदा था, लेकिन अब उन्हें जबरन खाली करने के आदेश दिए जा रहे हैं, जो उनके संवैधानिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है।

केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल (KCBC) और सायरो-मालाबार पब्लिक अफेयर्स कमीशन (SMPAC) ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए लोकसभा सचिवालय के सामने रखा है। दोनों संगठनों ने सरकार से वक्फ कानूनों में संशोधन की मांग की है, ताकि इस प्रकार के अवैध दावे भविष्य में न हों। इन संगठनों के प्रमुखों कार्डिनल बासेलियोस क्लेमिस और आर्कबिशप मार एंड्रूज़ थाझाथ ने अपने पत्रों में कहा, “किसी भी नागरिक के संपत्ति के अधिकार और गरिमा का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। यह समिति की जिम्मेदारी है कि वह कानून को निष्पक्ष और न्यायपूर्ण तरीके से लागू करे।”

साल 1902 तक जाती है विवाद की जड़

विवाद की जड़ 1902 में जाती है, जब त्रावणकोर के राजा ने गुजरात से आए एक किसान अब्दुल सत्तार मूसा हाजी सेठ को 404 एकड़ जमीन और 60 एकड़ जल क्षेत्र पट्टे पर दिया था। उस समय, यह जमीन मछुआरों के लिए अलग रखी गई थी, जो वहाँ कई वर्षों से रह रहे थे। 1948 में सेठ के उत्तराधिकारी सिद्दीक सेठ ने यह जमीन पंजीकृत करवा ली थी। इस जमीन का एक बड़ा हिस्सा समुद्री कटाव के कारण खो गया, और 1934 की भारी बारिश ने पांडरा समुद्र किनारे की जमीन को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। लेकिन सिद्दीक सेठ द्वारा पंजीकृत जमीन में मछुआरों के रहने वाले इलाके भी शामिल हो गए।

1950 में सिद्दीक सेठ ने यह जमीन फरोख कॉलेज को उपहार स्वरूप दे दी, लेकिन शर्त यह थी कि कॉलेज केवल शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए ही इसका उपयोग करेगा। अगर कभी कॉलेज बंद हो जाता है, तो जमीन वापस सेठ के वंशजों को लौटाई जाएगी। लेकिन दस्तावेजों में गलती से या जानबूझकर ‘वक्फ’ शब्द लिख दिया गया, जिससे अब यह विवाद खड़ा हो गया है।

वक्फ बोर्ड ने साल 2019 में किया जमीनों पर दावा

हालाँकि, वक्फ बोर्ड ने पहली बार 2019 में इस जमीन पर दावा किया, जब उन्होंने कहा कि यह जमीन वक्फ संपत्ति है। लेकिन इस दावे से पहले किसी भी कानूनी प्रक्रिया के तहत स्थानीय निवासियों को कोई जानकारी नहीं दी गई थी। KCBC के सोशल हार्मनी और विजिलेंस कमीशन के सचिव फ्र. माइकल पुलिकल ने बताया, “पहले ही निवासियों ने इस जमीन पर अपने अधिकार प्रमाण पत्र तालुक कार्यालय से प्राप्त कर लिए थे, जिससे उन्हें बिजली और पानी जैसी सुविधाएँ प्राप्त होती थीं। लेकिन अचानक वक्फ बोर्ड का दावा उनके लिए संकट बन गया।”

इस मामले ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। 27 सितंबर को मुनम्बम के वंची स्क्वायर में एक बड़े प्रदर्शन का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए। इसके साथ ही, भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस विवाद में चर्च और स्थानीय निवासियों का समर्थन करने की घोषणा की है। बीजेपी नेता शौन जॉर्ज ने कहा, “मुनम्बम भू-समरक्षण समिति द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन को हमारी पार्टी का पूरा समर्थन रहेगा।”

बीजेपी का कहना है कि यह मामला केवल जमीन के अधिकारों का नहीं है, बल्कि इससे बड़ी साजिश का हिस्सा है, जिसमें ‘चरमपंथी’ तत्वों का हाथ हो सकता है। बीजेपी जिला अध्यक्ष के.एस. शैजू और प्रवक्ता के.वी.एस. हरिदास ने कहा कि यह मुद्दा न केवल स्थानीय निवासियों का है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर इसे उठाया जाना चाहिए। पार्टी ने यह भी माँग की कि वक्फ बोर्ड द्वारा किए गए दावे की जाँच होनी चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि इसमें किन-किन चरमपंथी तत्वों की भूमिका है।

बीजेपी की राज्य इकाई ने केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल और सायरो-मालाबार चर्च द्वारा वक्फ एक्ट संशोधन के समर्थन का स्वागत किया है। बीजेपी नेताओं ने कहा कि यह मामला केवल ईसाई समुदाय का नहीं है, बल्कि इससे अन्य धर्मों के लोग भी प्रभावित हो सकते हैं। पार्टी ने संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (UDF) और वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) से भी इस पर अपना रुख स्पष्ट करने की माँग की है।

इस विवाद को लेकर राजनीतिक और धार्मिक संगठनों के बीच एक अनूठा गठजोड़ बनता दिख रहा है। बीजेपी के नेताओं का मानना है कि अगर वक्फ एक्ट में उचित संशोधन नहीं किया गया, तो इससे भविष्य में और भी कई ऐसे विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। दूसरी ओर, चर्च और ईसाई संगठन भी इस मुद्दे पर सक्रिय हो गए हैं, जिससे यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर गर्म हो चुका है।

दिल्ली में बीजेपी नेता अनूप एंटनी जोसफ ने कहा, “आज जब पूरे देश में वक्फ बिल पर चर्चा हो रही है, तो लोगों को यह जानना जरूरी है कि केरल में 600 से ज्यादा परिवारों के साथ बड़ा अन्याय हो रहा है।”

जैसे-जैसे यह मामला गरमा रहा है, राज्य और केंद्र सरकार दोनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है कि वे इस विवाद का समाधान निकालें। एक तरफ, बीजेपी और चर्च की एकजुटता ने इस मामले को नया आयाम दिया है, वहीं दूसरी ओर, स्थानीय निवासियों का भविष्य अधर में लटक गया है। वक्फ बोर्ड और स्थानीय प्रशासन के बीच संवादहीनता ने इस विवाद को और जटिल बना दिया है। वक्फ एक्ट में संशोधन की माँग जोर पकड़ रही है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस पर क्या कदम उठाती है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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