सदियों के इंतजार के बाद अब अयोध्या 5 अगस्त को राम मंदिर भूमि पूजन के लिए तैयार हो गया है। रामजन्मभूमि के लिए कुछ कारसेवकों ने अपने प्राणों को भी रामलला के लिए दाँव पर लगा दिया था। उस वक़्त आंदोलन का नेतृत्व करने वाले और प्राण न्योछावर करने वाले लोगों की बस एक ही चाहत थी कि राम लला मंदिर में विराजमान हों।
अपने ही देश में भगवान राम को न्याय दिलाने के लिए हिंदुओं की पीढ़ियों द्वारा लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष का समापन होने जा रहा है। उनका संकल्प अब पूरा होने जा रहा है। उसी आंदोलन के दौरान के ऐसे व्यक्ति ने इसमें हिस्सा लिया, जिन्होंने राजनीतिक दबावों के बीच अपने करियर को दाँव पर लगा कर राम मंदिर बनवाने का सपना देखा और प्रयास किया।
वह शख्स थे कंडांगलथिल करुणाकरण नायर, जिसे केके नायर के नाम से जाना जाता है। केके नायर का जन्म 11 सितंबर, 1907 को केरल में हुआ था। वह भारतीय सिविल सेवा अधिकारी थे और भारत के गणतंत्र बनने से पहले ही हिंदुओं की पूजा के मौलिक अधिकार की रक्षा करने में सबसे आगे थे।
उनका जीवन केरल के अलप्पुझा के कुट्टनाड गाँव से शुरू हुआ। केरल में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, नायर उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड गए और 21 वर्ष की आयु में भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा उत्तीर्ण की। परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें 1 जून, 1949 को अयोध्या (फैजाबाद) के उपायुक्त सह जिला मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किया गया था।
अयोध्या का वह दौर उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया था। नायर को राम जन्मभूमि मुद्दे पर एक रिपोर्ट करने के लिए उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार की तरफ से एक पत्र मिला था। उस मुद्दे पर रिपोर्ट को प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने अपने सहायक गुरु दत्त सिंह को भेजा। जिसके बाद 10 अक्टूबर, 1949 को सिंह ने अपनी रिपोर्ट में, उस स्थान पर एक राजसी राम मंदिर के निर्माण की सिफारिश की। सिंह ने स्थल का दौरा कर यह देखा कि उस स्थल के लिए हिंदू और मुस्लिम आपस में लड़ रहे थे।
उन्होंने लिखा, “हिंदू समुदाय ने इस आवेदन में एक छोटे के बजाय एक विशाल मंदिर के निर्माण का सपना देखा है। इसमें किसी तरह की परेशानी नहीं है। उन्हें अनुमति दी जा सकती है। हिंदू समुदाय उस स्थान पर एक अच्छा मंदिर बनाने के लिए उत्सुक है, जहाँ भगवान रामचंद्र जी का जन्म हुआ था। जिस भूमि पर मंदिर बनाया जाना है, वह नजूल (सरकारी भूमि) है।”
नेहरू का निर्देश, फिर भी नहीं झुके केके नायर
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निर्देश पर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने राम मंदिर से हिंदुओं को बेदखल करने की कोशिश की। हालाँकि, केके नायर ने उन्हें वहाँ से भेजने से इनकार कर दिया और आदेश को लागू नहीं करने का फैसला किया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि हिंदू उस स्थल पर पूजा कर रहे हैं। उन्होंने मूर्तियों को साइट से हटाने से भी इनकार कर दिया। जिसके बाद नायर को गोविंद वल्लभ पंत ने जिला मजिस्ट्रेट के पद से निलंबित कर दिया।
इन सब के बाद केके नायर ने तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार के खिलाफ अदालत का रुख किया। अदालत ने मामले पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया। नायर को वापस अपना आईसीएस अधिकारी का पद मिल गया। लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया। यह फैसला उन्होंने नेहरू के खिलाफ बढ़ती नाराजगी को मद्देनजर रखते हुए लिया।
नायर ने नेहरू के सामने झुकने से इनकार कर दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री की खुली अवहेलना और लाखों हिंदुओं को न्याय दिलाने के उनके दृढ़ संकल्प की वजह से लाखों लोग उन्हें पसंद करने लगे थे। उनके व्यवहार की वजह से लोग उन्हें ‘नायर साहब’ कहते थे।
आईसीएस से इस्तीफा देने के बाद, उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में अभ्यास करना शुरू कर दिया। केके नायर और उनका परिवार अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए जनसंघ में शामिल हो गए। उनकी पत्नी शकुंतला नायर चुनाव लड़ीं और 1952 में उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य बनीं।
नायर और उनकी पत्नी दोनों 1962 में लोकसभा के सदस्य बने। दिलचस्प बात यह है कि उनके ड्राइवर को भी उत्तर प्रदेश की विधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया था। वहीं प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के कहने पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद द्वारा घोषित राष्ट्रीय आपातकाल के काले दिनों के दौरान नायर और उनकी पत्नी को गिरफ्तार भी किया गया था।
7 सितंबर 1977 को केके नायर का निधन हो गया। उन्होंने अपना जीवन जनसंघ और राम मंदिर के लिए समर्पित कर दिया। उत्तर प्रदेश राज्य में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति होने के बावजूद उन्हें अपने गृह राज्य केरल में भी बहुत सम्मान और पहचान मिली।
केरल में राष्ट्रवादियों ने अपने गाँव में विश्व हिंदू परिषद द्वारा दान की गई भूमि पर उनका स्मारक बनाने का फैसला भी किया है। इसके अलावा केके नायर मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम से एक ट्रस्ट भी स्थापित किया गया है। कल्याणकारी गतिविधियों के अलावा, ट्रस्ट छात्रों के लिए सिविल सेवा उम्मीदवारों और छात्रवृत्ति के लिए प्रशिक्षण प्रदान करता है।
केके नायर द्वारा चलाए गए राम जन्मभूमि आंदोलन को लालकृष्ण आडवाणी, अशोक कुमार, कल्याण सिंह, विनय कटियार और उमा भारती जैसे बड़े नेताओं ने बाद में जारी रखा। 2019 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ऐतिहासिक फैसले के बाद, उसी स्थल पर राजसी राम मंदिर बनाने के लिए एक ट्रस्ट का गठन किया गया है, जिसके लिए नायर ने अपने करियर को भी समर्पित कर दिया था। यद्यपि केके नायर इस दुनिया में नहीं हैं, फिर भी आने वाले वर्षों में आंदोलन में किए गए उनके योगदान को याद रखा जाएगा।