Saturday, July 27, 2024
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बंजर भूमि को खेती लायक बनाया, अब ‘छीन’ रही KCR सरकार: तेलंगाना में भूमिहीनों को आवंटित जमीन पर पैदा होंगे प्रोजेक्ट्स

सिर्फ हैदराबाद के बाहर ही नहीं, बल्कि वारंगल जैसे टियर टू शहरों में काकतीय शहरी विकास प्राधिकरण (KUDA) ने 27 गाँवों में लगभग 21,510 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करने का प्रस्ताव रखा था, जिनमें से अधिकांश भूमि आवंटित गई है। बाद में विरोध को देखते हुए इसे रदद् कर दिया गया।

तेलंगाना (Telangana) की के चंद्रशेखर राव सरकार (K Chandra Shekhar Rao Government) ने सरकारी प्रोजेक्ट के नाम पर लगभग 50 साल पहले भूमि सुधार अधिनियम के तहत दलितों और आदिवासियों को दी गई जमीनों का अधिग्रहण करने की करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इन बंजर जमीनों को खेती योग्य बनाने में इन किसानों ने अपना जीवन खपा दिया, लेकिन विकास के नाम पर सरकार ने इन परिवारों को तबाही के मुहाने पर लाकर छोड़ने वाली है।

1970 के दशक में तत्कालीन आंध्र प्रदेश राज्य में भूमि सुधार अधिनियम के तहत लाखों लोगों को भूमि आवंटित की गई थी। तेलंगाना में लगभग 1 करोड़ 50 लाख एकड़ खेती की जमीन है, जिनमें से कम-से-कम 30 लाख एकड़ जमीन भूमिहीन गरीबों को आवंटित की गई है। वर्तमान में हैदराबाद मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (HMDA) की सीमा से लगी हजारों एकड़ जमीन का सर्वेक्षण राजस्व विभाग द्वारा किया जा रहा है। राज्य सरकार यहाँ कई रियल एस्टेट सहित विभिन्न प्रोजेक्ट स्थापित करने की योजना बना रही है।

द न्यूज मिनट के अनुसार, राजस्व अधिकारी यह सर्वेक्षण हैदराबाद के नए प्रस्तावित छह-लेन के एक रिंग रोड के लिए कर रहे हैं। यह रिंग रोड 300 किलोमीटर लंबा है, जो हैदराबाद शहर के आसपास के 20 से अधिक कस्बों और 200 गाँवों से होकर गुजरेगा। परियोजना के पहले चरण में संगारेड्डी से शुरू होने वाले और नरसापुर, थूपरान, गजवेल, जगदेवपुर और भोंगिर सहित विभिन्न कस्बों से होकर गुजरने वाले 158 किलोमीटर की सड़क को सरकार ने अनुमोदित किया गया है।

ऐसे एक दलित किसान हैं इस्लामपुर के रहने वाले चेरलापल्ली बलिया। इनकी जमीन का भी सरकारी अधिकारियों ने सर्वे किया है। इनका कहना है, “हमें यह जमीन मिलने से पहले मेरे माता-पिता गाँव के जमींदार रेड्डी के लिए जीतगल्लु (नौकर जो न्यूनतम मजदूरी पर घरेलू और कृषि कार्य करते हैं) के रूप में काम करते थे। मेहनत के हिसाब से फसल उगाने से पहले हमारे परिवार को इस जमीन पर कम से कम 20 साल तक मेहनत करनी पड़ी और दो कुएँ खोदने पड़े।”

जब ये जमीनें भूमिहीनों को आवंटित की गई थीं, तब इनमें से अधिकांश बंजर और चट्टानों से भरे पड़े थे। जिन लोगों को ये जमीनें आवंटित की गई, उन्होंने मेहनत करके इसे खेती योग्य बनाया और चार दशक के बाद अब सरकार उन्हें इन जमीनों से बेदखल करने जा रही है।

इस्लामपुर में आवंटित भूमि वाले 200 किसानों में से 60% से अधिक मडिगा जाति के हैं, जो पहले अछूत थे। बाकी लोग पिछड़ा वर्ग (बीसी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समूह के हैं। उस दौरा प्रत्येक परिवार को एक से चार एकड़ भूमि के बीच भूमि आवंटित की गई थी।

सिर्फ हैदराबाद के बाहर ही नहीं, बल्कि वारंगल जैसे टियर टू शहरों में काकतीय शहरी विकास प्राधिकरण (KUDA) द्वारा भूमि को अधिग्रहण करने के लिए एक अधिसूचना जारी की गई थी। KUDA के अधिकारियों ने 27 गाँवों में लगभग 21,510 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करने का प्रस्ताव रखा था, जिनमें से अधिकांश को भूमि आवंटित गई है। बाद में विरोध को देखते हुए इसे अधिसूचना को रदद् कर दिया गया।

दरअसल, 1970 के दशक के उत्तरार्ध में जब आंध्र प्रदेश भूमि सुधार (कृषि जोत की सीमा) अधिनियम, 1973 को लागू करने और भूमि वितरित किया गया था। इससे भूमि के मालिक रेड्डी, वेलामा और कापू जाति नाराज हो गए थे। उस समय इनके सहयोग के बिना सरकार चलाना मुश्किल था। तब सरकार ने कहा था कि यह अस्थायी प्रावधान है। इसमें भूमिहीनों को आवंटित की गई जमीनों को उनके द्वारा बेचने या किसी को देने से रोकने का प्रावधान किया गया था।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस अधिनियम ने इन लाभार्थियों को केवल ‘किसान’ में बदलने का काम किया है, उन्हें इसका अधिकार नहीं सौंपा गया है। हालाँकि, साल 2007 और 2017 के कानूनी संशोधनों में इन जमीनों को बेचने का अधिकार इन्हें मिल गया है। कोई भी व्यक्ति जो ढाई एकड़ से कम आर्द्रभूमि या पांच एकड़ शुष्क भूमि का मालिक है, उसे यहां ‘भूमिहीन गरीब व्यक्ति’ माना गया है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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