कोरोना से हर किसी का हाल बेहाल है। ऐसे में ऑपइंडिया की टीम निकली मजनू का टीला स्थित पाकिस्तान से आए उन हिन्दू शरणार्थियों का हाल-चाल लेने कि किस तरह से उन्होंने पूरा लॉकडाउन काटा, कौन सी मुसीबतें झेलीं? अभी के क्या हालात हैं और वहाँ ज़िन्दगी कितनी पटरी पर आई है? क्या किसी ने उनकी इस संकट के समय सुध ली, मदद की या नहीं? कैसे वह इस महामारी के समय खासतौर से दिल्ली में कोरोना की विकट परिस्थितियों के समय अपना जीवन चला रहे हैं?
हमें इसकी आवश्यकता इसलिए भी पड़ी कि हालिया कुछ रिपोर्टों और वीडियो में यह बात सामने आई थी कि कुछ NGO के लोग वहाँ सिर्फ बिस्कुट या किलो दो किलो चावल लेकर जाते हैं। मदद के नाम पर फोटो और तस्वीरें खिंचाते हैं फिर पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों के नाम पर अपनी दुकान चलाने के बावजूद भी उनकी जमीनी स्तर पर कोई मदद नहीं करते हैं। सोचने का विषय यह भी है कि ऐसे लोग कहाँ से इतनी कठोरता लेकर आते हैं कि जो खुद असहाय है उसको भी अपने मतलब के लिए इस तरह से इस्तेमाल करते हैं।
ऐसा नहीं है कि इस तरह की हरकतों का उन शरणार्थियों को कुछ पता न हो वो जानते हैं। लेकिन बहुत हद तक खुद की मेहनत पर भरोसा रखने वाले उन पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों ने ऑपइंडिया को बताया कि कौन लोग हैं जो वास्तव में न सिर्फ इस कोरोना काल बल्कि जब से वह यहाँ बसे हैं तब से उनकी भरपूर मदद कर रहे हैं।
ऑपइंडिया ने लगभग 150 परिवार के करीब 650 पाकिस्तानी हिन्दुओं वाले इस शरणार्थी शिविर का जायजा लिया कि किस तरह से वहाँ लोग अभी रह रहे हैं। ज़्यादातर लोग अपनी झुग्गियों में थे तो कुछ यहाँ वहाँ भटकते और खाते हुए भी मिले। वहाँ के हालात उनकी बेबसी की कहानी खुद ही बयान कर रहे थे।
इस बाबत ऑपइंडिया ने यहाँ के प्रधान धर्मवीर सोलंकी से बात की। वो पाकिस्तान से भारत तीर्थ यात्रा के बहाने अपने बाकी कुटुंब के साथ 2013 में आए थे। उन्होंने हमसे बात करते हुए बताया कि कोरोना के दौर में बड़ी मुश्किल से सभी का समय बीता। हालाँकि, शुरू से ही आरएसएस और सेवा भारती के लोग हमारी मदद करते रहे हैं तो कोरोना और लॉकडाउन के दौरान भी आरएसएस और सेवा भारती ने उनकी मदद की।
उन्होंने हमें बताया कि पाकिस्तान से आने के कुछ समय बाद जब सरकार से कागज मिला तब से दूसरे के यहाँ मजदूरी करके इस आस में किसी तरह जीने का संघर्ष करने लगे कि एक दिन वो भारत के हैं और भारत के ही हो जाएँगे। CAA कानून बन जाने के बाद उनकी उम्मीद जगी थी लेकिन अभी उनकी नागरिकता पर मुहर लगना बाकी है। जिसकी ख़ुशी और दर्द दोनों उन्होंने ऑपइंडिया से साझा किया। धर्मवीर जी ने कहा कि अब तो और भी विकट परिस्थिति है, क्योंकि लोग कोरोना के डर की वजह से काम भी नहीं दे रहे हैं। इसकी वजह से वहाँ रह रहे लोगों की स्थिति और भी ख़राब होती जा रही है।
उन्होंने आरएसएस और सेवा भारती से जुड़ें कुछ नाम भी गिनाए जो न सिर्फ उनकी बल्कि गोशाला के जानवरों की भी मदद कर रहे हैं। दिल्ली में जबकि बीजेपी की सरकार नहीं है फिर भी आरएसएस के लोग सेवा भावना से भरकर लगातार उनकी मदद को तैयार हैं। वहीं जब हमने धर्मवीर जी से दिल्ली सरकार से मिलने वाली मदद के बारे में सवाल किया तो उनका साफ़ कहना था कि केजरीवाल सरकार से जुड़ा कोई व्यक्ति जब इतने सालों में मदद को नहीं आया तो कोरोना में क्या कहें? उन्होंने कहा कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार उनकी नहीं सुन रही। उन्होंने यह बी बताया कि केजरीवाल के लोग यहाँ 5-6 साल पहले आए थे। इसके बाद नहीं आए। उस समय उन्होंने बिजली लगाने का वादा किया था, लेकिन कुछ भी नहीं किया। जैसे-तैसे सोलर लैंप और और जुगाड़ से वो लोग बिजली का काम चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को दिल्ली सरकार की तरफ से राशन भी नहीं मिला।
यह पूछे जाने पर कि आरएसएस और सेवा भारती के लोग उनकी और किस तरह से सेवा करते हैं तो उन्होंने बताया कि जैसे ही उन्हें पता चलता है कि कोई बीमार है, उनकी गाड़ी आती है और मरीज को डॉक्टर के पास ले जाकर दवाइयाँ दिलवा देते हैं। इस तरह से भी सेवा भारती ने काफी मदद किया। उन लोगों ने गायों के लिए कम से कम 50,000 रुपए का चारा दिया। सेवा भारती के लोगों ने मास्क, दवाई और राशन को लेकर भी काफी मदद की।
पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी बस्ती के हालात जानने के लिए हमने सोना दास से भी बात की। उन्होंने बताया कि विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस के लोग यहाँ पर उनकी मदद के लिए आते हैं, मगर वो अपनी आजीविका चलाने के लिए मेहनत भी कर रहे हैं। वो लोग जब भी काम मिलता है मजदूरी, रेहड़ी-पटरी पर दुकान लगाकर अपनी आजीविका चला रहे हैं। लेकिन कोरोना के समय उन्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि सरकार को इनकी मदद के लिए आगे आना चाहिए।
मजनू का टीला स्थित पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी शिविर में हमारी पड़ताल में हमें एक बार फिर से निस्वार्थ भाव से सेवा कार्यों में लगे आरएसएस और उसकी सेवा विंग सेवा भारती के स्वयं सेवक ही मिले। जिस समय हम वहाँ रिपोर्टिंग करने गए थे तो गौशाला के लिए चारा लेकर भी आरएसएस का एक स्वयं सेवक वहाँ आया था। जब हमने उनसे कैमरे पर कुछ बोलने के लिए कहा तो उनका कहना था हमारा काम सेवा करना है। बयान के लिए आप इस क्षेत्र के सेवा भारती इंचार्ज से बात कीजिए।
जैसा कि ऑपइंडिया ने पहले भी रिपोर्ट किया है और यहाँ भी वही बात सामने आई कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काफ़ी समय से जरूरतमंदों के लिए बेहतरीन काम कर रहा है और लगातार जनसेवा में लगा हुआ है। न सिर्फ मजनू का टीला बल्कि संघ के संगठन ‘सेवा भारती’ ने पूरी दिल्ली में ग़रीबों को खाना खिलाने से लेकर बेसहारा लोगों को ज़रूरी संसाधन मुहैया कराने के लिए दिन-रात एक किया हुआ है। इसी कड़ी में सेवा भारती ने मजनूँ का टीला स्थित पाकिस्तानी हिन्दू रिफ्यूजी कैंप में रह रहे हिन्दू शरणार्थियों का भी भरपूर सहयोग किया।
बता दें कि पिछले साल भी कोरोना काल में सेवा भारती ने जरूरतमंदों की बढ़-चढ़ कर मदद की थी। पश्चिम दिल्ली के हस्तसाल नगर में जोमी चर्च (Zomi Church) से जुड़े 50 परिवारों के लगभग ढाई सौ सदस्य राशन और खाद्य सामग्री से परेशान थे। इस चर्च में ज्यादातर नार्थ-ईस्ट के लोग थे, खासकर मिजोरम के निवासी थे। जानकारी मिलने पर सेवा भारती संगठन के कार्यकर्ता इस चर्च के जरूरतमंद लोगों के पास पहुँचे और उन्होंने राशन तथा अन्य चीजें उपलब्ध करवाईं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े इस संगठन ने कोरोना वॉरियर्स के लिए सहयोग राशि देने का भी ऐलान किया था। संगठन ने कहा था कि सफाईकर्मी, स्वास्थ्यकर्मी और पत्रकार ऐसी विपरीत परिस्थितियों में अपना दायित्व निभा रहे हैं और समाज की मदद करने के लिए अपनी जान खतरे में डाल रहे हैं। ऐसे में संगठन ने फैसला लिया कि अगर गैर सरकारी सफाईकर्मी, स्वास्थ्यकर्मी (अनुबंधित) या कोई पत्रकार कोविड-19 से प्रभावित हैं तो उनकी भी मदद की जाएगी।
रेलवे स्टेशनों से लेकर बस स्टेशनों तक फँसे लोगों की मदद की गई। सबसे बड़ी बात कि दिल्ली के रेडलाइट एरिया में रहने वाली 986 महिलाओं तक लगातार राशन-सामग्री पहुँचाई गई। इसके अलावा घुमंतू लोगों का भी ध्यान रखा गया, जिनके पास सरकार भी नहीं पहुँच पाती है।