Saturday, November 23, 2024
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‘अल्लाह-हू-अकबर बोल कर मचाई तबाही, 35 लाख लोग मरे’ : मनोज मुंतशिर ने फिर साधा मुगलों पर निशाना, राम सेतु को बताया प्रेम प्रतीक

मुंतशिर ने कहा कि प्रेम की निशानी ही जानना है तो चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास जानो, जहाँ माता पद्मिनी ने राजा रतन सिंह के वियोग में खुद को जलती लपटों में झोंक दिया। राजा रामचंद्र ने माता सीता के लिए समुद्र का सीना चीरते हुए उस पर पुल बना दिया। प्रेम की निशानी ताजमहल नहीं है।

मशहूर गीतकार मनोज मुंतशिर (Manoj Muntashir) ने एक बार फिर मुगलों (Mughal) पर निशाना साधते हुए कहा कि जब देश में गरीबी से लोग मर रहे थे, तब मुगल आक्रांता शाहजहाँ ताजमहल बनवा रहा था। इस ताजमहल को प्रेम की निशानी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि प्रेम की असली निशानी राजा रामचंद्र द्वारा माता सीता के लिए समुद्र चीर कर बनाया या पुल है। प्रेम की निशानी चित्तौड़गढ़ का किला है, जहाँ राजा रतन सिंह के वियोग में माता पद्मिनी ने खुद को जलती चिता में झोंक दिया।

मुगलों को लुटेरा बताते हुए प्रख्यात कवि मुंतशिर ने कहा कि अल्लाह-हू-अकबर बोलते हुए देश में तबाही मचाई गई, मंदिरों को तोड़ा गया। उन्होंने कहा कि जब देश भूखमरी से दौर से गुजर रहा था, लोग मर रहे थे तब शाहजहाँ ने ताजमहल बनवाने के लिए 9 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। इस दौरान 35 लाख लोग मर गए। अगर इन पैसों को जनता में खर्च किया जाता तो लोगों की गरीबी मिट सकती थी।

उन्होंने कहा कि यह भारत का दुर्भाग्य है कि इसने ऐसे लुटेरों को देखा। भारत के लोगों को बताया कि अगर शेरशाह सूरी, अकबर, खिलजी नहीं होते तो भारतीय पत्ते लपेटकर नाच रहे होते। इन इतिहासों को गर्व से पढ़ाया गया। उन्होंने कहा कि इन मूर्खों को कौन बताए कि इनके पहले मोहन जोदाड़ो था। आज जो शहरों में व्यवस्थाएँ देखने को मिलती हैं वो उसी काल की देन है।

उन्होंने कहा कि इतिहासकारों ने ताजमहल को प्रेम की निशानी बताकर जनता के प्रेम का मजाक उड़ाया। प्रेम की निशानी ही जानना है तो चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास जानो, जहाँ माता पद्मिनी ने राजा रतन सिंह के वियोग में खुद को जलती लपटों में झोंक दिया। प्रेम का मतलब जानना हो तो राजा रामचंद्र को जानो, जिन्होंने माता सीता के लिए समुद्र का सीना चीरते हुए उस पर पुल बना दिया।

मध्य प्रदेश के उज्जैन के एक आयोजन में बोलते हुए मनोज मुंतशिर ने कहा कि वे गौरवान्वित हैं कि मंगल ग्रह की जन्मभूमि उज्जैन में वे खड़े हैं। यह भूमि महाकवि कालिदास की कर्मभूमि है, श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थली है और राजा विक्रमादित्य की नगरी है। उन्होंने कहा कि उज्जैन दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग महाकाल और समुद्र मंथन के दौरान छलके अमृत की नगर अवंतिका है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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