अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर के लिए पुजारियों का चयन किया गया है। इसके लिए लोगों से बाकायदा आवेदन माँगे गए थे, जिसमें 3000 लोग शामिल हुए। पुजारियों के लिए कुछ मापदंड भी निर्धारित किए गए थे, साथ ही उन्हें कड़ी चयन प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। इस पूरी प्रक्रिया में 200 आवेदकों का साक्षात्कार हुआ, जिसमें से 50 अभ्यर्थियों को पुजारी पद के लिए चुना गया।
इस बीच, सोशल मीडिया पर खबर तेजी से फैली कि मोहित पाण्डेय को मुख्य पुजारी के तौर पर चुना गया है। वहीं सवाल ये भी उठे कि इस पद के लिए ब्राह्मण का ही चयन क्यों हुआ?
कुछ चर्चित लोगों ने मोहित पाण्डेय का नाम सुनते ही सोशल मीडिया पर एससी और ओबीसी कार्ड खेलना शुरू कर दिया, जिसमें उनके चयन को ब्राह्मणवाद से जोड़ा जाने लगा। मूकनायक जैसे दलित पोर्टल ने पोस्ट किया है कि “राम मंदिर के पुजारी बनेंगे मोहित पांडे!” – क्या दलितों का पुजारी बनना मना है?
"राम मंदिर के पुजारी बनेंगे मोहित पांडे!"
— The Mooknayak (@The_Mooknayak) December 11, 2023
– क्या दलितों का पुजारी बनना मना है? pic.twitter.com/aZRstoJcA0
दिलीप मंडल नाम के वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा, “ये मंदिर भारत सरकार का ट्रस्ट बना रहा है। किसी के बाप की संपत्ति नहीं है। मंदिर मैनेजमेंट में रिज़र्वेशन न दिया गया तो आंदोलन होना चाहिए। दक्षिणा सब देंगे और सिर्फ सारा पैसा एक जाति के लोग निकालेंगे, ये नहीं चलेगा।”
बहुत सही। वैसे भी ये मंदिर भारत सरकार का ट्रस्ट बना रहा है। किसी के बाप की संपत्ति नहीं है। मंदिर मैनेजमेंट में रिज़र्वेशन न दिया गया तो आंदोलन होना चाहिए। दक्षिणा सब देंगे और सिर्फ सारा पैसा एक जाति के लोग निकालेंगे, ये नहीं चलेगा। https://t.co/Rp2qUwV6Be
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) December 11, 2023
सूरज यादव नाम के एक्स यूजर ने तंज भरे अंदाज में लिखा, “हिन्दू है तो चयनित हुआ। दलित, पिछड़े, आदिवासी हिन्दू नहीं हैं, यह ध्यान रहे। शूद्र, अति शूद्र, जाति प्रथा से बाहर लोगों को न तो ट्रस्ट में स्थान है और न ही पूजा स्थल में। और यह उन यादवों के लिए खास तौर से जो मनुवाद या ब्राह्मणवाद के समर्थक हैं।”
हिन्दू है तो चयनित हुआ।
— Dr Suraj Yadav Mandal डॉ सूरज मंडल ڈاکٹر سورج منڈل (@suraj_yadav2005) December 11, 2023
दलित, पिछड़े, आदिवासी हिन्दू नहीं हैं, यह ध्यान रहे।
शूद्र, अति शूद्र, जाति प्रथा से बाहर लोगों को न तो ट्रस्ट में स्थान है और न ही पूजा स्थल में।
और यह उन यादवों के लिए ख़ास तौर से जो मनुवाद या ब्राह्मणवाद के समर्थक हैं। #SC_ST_OBC #ईवीएम_हटाओ… pic.twitter.com/RadVOwhiK9
खास बात ये है कि मोहित पाण्डेय के रामलला मंदिर के पुजारी बनने पर जो लोग उंगली उठा रहे हैं, उन्हें न तो प्रक्रिया का पता है और न ही इस बात की जानकारी है कि मोहित पाण्डेय को किस योग्यता के चलते मुख्य पुजारी के पद चयनित किया गया है।
दरअसल, रामलला के मंदिर में पुजारी बनने के लिए आवश्यक शर्त रखी गई थी कि उम्मीदवार को किसी मान्यता प्राप्त गुरुकुल से वेद, शास्त्र और संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए। उम्मीदवार को रामानंदीय परंपरा में दीक्षित होना चाहिए। ऐसे में सभी पुजारियों के चयन के दौरान हुए साक्षात्कार में वेद, कर्मकांड और वैदिक मंत्रों के ज्ञान पर ध्यान दिया गया। इसके लिए उम्र सीमा अधिकतम 30 वर्ष तय की गई थी।
भले ही उनका चयन मुख्य पुजारी के तौर पर हुआ है, फिर भी मुख्य पुजारी की भूमिका निभाने से पहले उन्हें लंबे प्रशिक्षण से गुजरना होगा, जिसकी अवधि 6 माह है। अब प्रशिक्षण के दौरान उन्हें वेद, कर्मकांड, वैदिक मंत्रों और रामायण के ज्ञान की गहन शिक्षा दी जाएगी। इस प्रशिक्षण के बाद ही पुजारी रामलला की पूजा-अर्चना का कार्य कर सकेंगे।
किस आधार पर हुआ चयन?
अब चूँकि, रामलला की पूजा अर्चना के लिए नियुक्त किए जा रहे पुजारियों के लिए उक्त मापदंड निर्धारित किए गए थे, जिसमें रामनंदीय परंपरा का विद्वान होना जरूरी था, साथ ही उन्हें वेद, शास्त्र और संस्कृत में विशेषज्ञता रखना जरूरी था… ऐसे में जाहिर है कि सभी अभ्यर्थियों की परीक्षा हुई होगी। अब अगर इस परीक्षा में मोहित पाण्डेय उत्तीर्ण हुए तो इसमें जाति-धर्म का कोई मामला कैसे आया, उनका चयन तो काबिलियत के आधार पर हुआ है न।
जानकारी के लिए बता दें कि मोहित पाण्डेय ने गाजियाबाद के दूधेश्वर वेद विद्यापीठ में सात साल तक अध्ययन किया है। उन्होंने तिरुपति स्थित तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम से संबद्ध श्री वेंकटेश्वर वैदिक विश्वविद्यालय से शास्त्री (स्नातक) की उपाधि हासिल की। इसी साल (2023 में ही) उन्होंने सामवेद का अध्ययन करते हुए मास्टर डिग्री हासिल की है। वह रामानंदीय परंपरा के विद्वान भी हैं और उन्हें वेद, शास्त्र और संस्कृत में विशेषज्ञता भी प्राप्त है।
इसी तरह से अन्य चुने गए पुजारियों में उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के युवा शामिल हैं। सभी पुजारी रामानंदीय परंपरा से संबंधित हैं और उन्हें वेद, शास्त्र और संस्कृत में विशेषज्ञता प्राप्त है।
मोहित पाण्डेय के चुनाव पर सही
श्री वेंकटेश्वर वैदिक विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर रानी सदाशिव मूर्ति ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत की और मोहित पाण्डेय के श्रीराम लाल मंदिर के मुख्य पुजारी के पद पर चयन पर प्रसन्नता जताई। उन्होंने कहा, “विश्वविद्यालय के कई छात्र विभिन्न मंदिरों में पुजारी और आचार्य के रूप में काम करते हैं। एक मृदुभाषी व्यक्ति, पाण्डेय के स्वभाव, ध्यान और पढ़ाई के प्रति समर्पण ने उन्हें प्रतिष्ठित अयोध्या राम मंदिर में भगवान राम की सेवा करने का अवसर दिलाया।”
राम लला के मुख्य पुजारी के पद पर चयनित मोहित पाण्डेय की गाजियाबाद से तिरूपति और अब अयोध्या तक की यात्रा उनके समर्पण और कठोर प्रशिक्षण का प्रमाण है। उनके चयन में आध्यात्मिक क्षमताओं वाले व्यक्तित्व को तैयार करने गाजियाबाद के दूधेश्वर वेद विद्यापीठ और श्री वेंकटेश्वर वैदिक विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों ने भी अहम भूमिका निभाई है। ऐसे में जो लोग उनके चयन पर उंगली उठा रहे हैं, वो न सिर्फ संक्रमित मानसिकता के व्यक्तित्व वाले लोग हैं, बल्कि समाज में गलत विचारों का प्रवाह कर उसमें जहर घोलने का काम कर रहे हैं।
खैर, जब उंगली विवाद हो ही रहा है तो यहाँ ये बताना जरूरी है कि भारत के विभिन्न राज्यों में स्थित मंदिरों में न सिर्फ दलित पुजारी हैं, महिला पुजारी हैं, बल्कि दलित महिला पुजारी भी अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं। ऑपइंडिया ने इस पर विशेष लेख प्रकाशित कर बताया था कि किन मंदिरों में महिलाएँ और दलित महिलाएँ पुजारी का दायित्व निभा रही हैं। इस पूरी रिपोर्ट को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
(नोट: मोहित पाण्डेय की मुख्य पुजारी के तौर पर नियुक्ति का श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने खण्डन किया है। आप इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं)