14 सितंबर 1989 यानी आज से ठीक 31 साल पहले कश्मीर में टीका लाल टपलू नामक कश्मीरी पंडित की हत्या को अंजाम दिया गया था। पंडित टीका लाल टपलू कश्मीरी पंडितों के बीच सबसे जाना-माना चेहरा थे। उनकी हत्या के बाद ही कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार का सिलसिला शुरू हुआ था।
पंडित टपलू को मारने के लिए बड़ी ही बारीकी से आतंकियों ने साजिश रची थी। मगर, फिर भी टपलू को इसका आभास हो चुका था, शायद इसीलिए उन्होंने सबसे पहले अपने परिवार को दिल्ली पहुँचाया और फिर दोबारा 8 सितंबर को कश्मीर लौट आए। उनकी निर्मम हत्या कश्मीरी पंडितों को घाटी से भगाने की दिशा में पहला कदम माना जाता है।
8 सितंबर को दिल्ली से कश्मीर लौटने के बाद उनके घर पर 12 सितंबर को एक हमला हुआ था। यह हमला उन्हें डराने के लिए था। लेकिन कश्मीरी पंडितों का नेतृत्व करने की ठान चुके पंडित टीका लाल इससे घबराए नहीं और चिंक्राल मोहल्ले में स्थित अपने आवास पर टिके रहे। नतीजतन मात्र 2 दिन के अंदर उनकी हत्या की वारदात को अंजाम दे दिया गया।
14 सितंबर की सुबह पंडित टीका लाल के लिए सामान्य सुबह थी। उन्होंने अपने आवास के बाहर एक बच्ची को रोते हुए देखा,और वह बिन कुछ सोचे-समझे घर से बाहर निकल आए। बच्ची की माँ से उसके रोने की वजह पूछने पर पता चला कि उसके स्कूल में कोई फंक्शन है और उसके पास पैसे नहीं है, इसलिए वह रो रही है।
यह बात सुन कर पंडित टपलू ने उसे गोद में उठाया और पाँच रुपए देकर चुप करा दिया। मगर, तभी सामने से आतंकवादी आ गए और उन्होंने उनकी छाती गोलियों से छलनी कर दीं। इस वारदात के साथ ही कश्मीरी पंडितों को यह अहसास करवा दिया गया था कि वहाँ पर अब निजाम ए मुस्तफा का राज ही चलेगा।
कश्मीरी लेखक राहुल पंडिता के अनुसार, जिस दिन पंडित टीका लाल को मारा गया, उस दिन उनके पिता उन्हें घर ले आए थे और उन्हें दो दिन तक स्कूल जाने नहीं दिया गया था। यानी साफ है कि आतंकी कश्मीरी पंडितों को जो संदेश देना चाहते थे, वो उन तक पहुँच गया था।
लेखक अपने एक लेख में कश्मीरी पंडितों की आपबीती लिखते हुए जिक्र करते हैं कि पंडित टीका लाल की हत्या के मात्र एक महीने बाद यानी 14 अक्टूबर को उनके पिता ने एक कार्यक्रम में शिरकत की थी, जहाँ से लौटने के बाद उन्होंने बताया कि कार्यक्रम में भीड़ नारे लगा रही थी:
यहाँ क्या चलेगा, निजाम ए मुस्तफा
ला शरकिया ला गरबिया, इस्लामिया इस्लामिया;
जलजला आया है कुफ्र के मैदान में
लो मुजाहिद आ गए हैं मैदान में
मौजूदा जानकारी के अनुसार, पंडित टीका लाल पेशे से वकील थे, लेकिन शुरुआती समय से ही उनका जुड़ाव आरएसएस से था। इसके अलावा घटना के समय वह जम्मू कश्मीर में भाजपा उपाध्यक्ष भी थे। लोग उन्हें लालाजी यानी बड़ा भाई कहकर संबोधित करते थे। अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से वकालत पढ़ने के बावजूद पंडित टपलू ने कभी अपनी पढ़ाई का इस्तेमाल पैसा कमाने के लिए नहीं किया था।
उन्होंने जो भी कमाया, सब विधवा औरतों और उनके बच्चों की पढ़ाई में ही खर्च किया। उन्होंने घाटी में रहते हुए कई मुस्लिम लड़कियों की भी शादी करवाई थी। उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि लोग जात-पात धर्म-मजहब से ऊपर उठ कर उनका सम्मान करते थे।
उनकी यही छवि अलगाववादियों के लिए गले में फँसी हड्डी जैसी थी, जिन्हें अपना अस्तित्व बचाने के लिए कश्मीरी पंडितों को हटाना था। लेकिन पंडित टीका लाल के जीवित रहते उन्हें यह काम असंभव लग रहा था।
कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, पंडित टीका लाल टपलू की मृत्यु के बाद काशीनाथ पंडिता ने कश्मीर टाइम्स में लेख लिख कर अलगाववादियों से पूछा था कि आखिर वह चाहते क्या हैं। जिसके जवाब में उन्होंने बताया था कि कश्मीरी पंडित भारत का समर्थन देना या तो बंद कर दें और अलगाववादी आंदोलन का साथ दें या कश्मीर छोड़ दें।
बता दें, जिस समय पंडित टीका लाल की हत्या को अंजाम दिया गया, उस दौरान जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट अपनी राजनैतिक पैठ बनाने की कोशिशों में जुटा हुआ था। उनकी अंतिम यात्रा के समय में जब केदार नाथ साहनी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे लोग हजारों कश्मीरी पंडितों के साथ श्रीनगर पहुँचे और घटना के विरोध में कश्मीरी हिंदू संगठनों ने बंद का आयोजन किया तो जेकेएलएफ ने आयोजन पर पत्थरबाजी भी करने की कोशिश की। हालाँकि वह अपने इरादों में सफल नहीं हो पाए। मगर, इन सबसे अलगाववादी इरादों की भनक कश्मीरी पंडितों को जरूर लग गई थी।
आज भाजपा नेता पंडित टीका लाल टपलू को उनके राष्ट्रवादी भावना और अदम्य साहस के लिए याद किया जाता है। कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार की बात जब-जब होती है, उसकी पृष्ठभूमि समझने के लिए पंडित टीका लाल की हत्या सबसे पहली घटना बन कर सामने आती है।
आज 14 सितंबर के मौके पर और उनकी निर्मम हत्या के 31 साल बीत जाने पर, अनुपम खेर लिखते हैं, “आज से 31 साल पहले 59 वर्षीय सोशल वर्कर श्री टीका लाल टपलू जी की आतंकवादियों द्वारा 14 सितंबर को श्रीनगर में हत्या कर दी गई थी। और यहाँ से शुरू हुआ था कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार का एक लंबा सिलसिला। ये घाव भले ही भर गए हो। लेकिन भूले नहीं हैं। और भूलने चाहिए भी नहीं।”
आज से 39 साल पहले 59 वर्षीय सोशल वर्कर श्री टीका लाल टपलू जी की आतंकवादियों द्वारा 14 सितंबर को श्रीनगर में हत्या कर दी गई थी।और यहाँ से शुरू हुआ था कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार का एक लंबा सिलसिला।ये घाव भले ही भर गए हो। लेकिन भूले नहीं है।और भूलने चाहिए भी नहीं।🙏 #KPMartyrsDay
— Anupam Kher (@AnupamPKher) September 14, 2020
इसी तरह हरीश चंद्र लिखते हैं, “आज से 31 साल पहले 14 सितम्बर को सामाजिक कार्यकर्ता श्री टीका लाल टपलू की इस्लामी आतंकवादियों द्वारा श्रीनगर में हत्या करके कश्मीर को हिन्दूविहीन बनाने का जिहादी षड्यंत्र प्रारम्भ हुआ। कश्मीर के हिन्दुओं पर जिहादियों द्वारा किया गया अत्याचार भारत भूल नहीं सकता।”
आज से 39 साल पहले 14 सितम्बर को सामाजिक कार्यकर्ता श्री टीका लाल टपलू की इस्लामी आतंकवादियों द्वारा श्रीनगर में हत्या करके कश्मीर को हिन्दूविहीन बनाने का जिहादी षड्यंत्र प्रारम्भ हुआ। कश्मीर के हिन्दुओं पर जिहादियों द्वारा किया गया अत्याचार भारत भूल नहीं सकता।#KPMartyrsDay pic.twitter.com/IWCx4BjLL8
— Harish Chandra Srivastava (@HarishChandraSr) September 14, 2020