आपने माँस ख़रीदते समय ‘हलाल’ और ‘झटका’ शब्दों के बारे में ज़रूर सुना होगा। हाल ही में इसे लेकर विवाद भी हुआ था, जब प्रसिद्ध फ़ूड-चेन मैकडॉनल्ड्स ने बताया कि वह सिर्फ़ हलाल मीट ही उपलब्ध कराता है। कई लोगों ने सवाल खड़ा किया कि जो ‘झटका’ मीट खाना चाहें, उनके लिए क्या? इसपर आगे बात करेंगे लेकिन पहले बात ‘वेज हलाल’ की। जी हाँ, अगर आप समझते हैं कि ‘हलाल’ का प्रयोग सिर्फ मीट इंडस्ट्री तक ही सिमित है तो आप शायद इस बात से अनजान हैं कि शाकाहारी उत्पादों को भी ‘हलाल’ सर्टिफिकेट दिया जाता है। इस सम्बन्ध में ऑपइंडिया ने ‘हलाल इंडिया’ से भी बातचीत की।
ताज़ा विवाद शुरू हुआ एक ट्वीट के साथ। एक महिला ने ट्वीट के माध्यम से इसे प्रकाश में लाया। उन्होंने एक भारतीय ग्रोसरी स्टोर से एक उत्पाद ख़रीदा, जिसपर ‘हलाल इंडिया’ का ठप्पा लगा हुआ था। इसका अर्थ यह कि ये प्रोडक्ट ‘हलाल सर्टिफाइड’ है। इसमें मुस्लिमों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है, जो ‘हराम’ हो। लेकिन, सवाल यह है कि एक मैदे के पैकेट पर ‘हलाल सर्टिफिकेट’ का क्या तुक? क्या सिर्फ़ माँस ही नहीं बल्कि शाकाहारी चीजें भी ‘हलाल सर्टिफाइड’ होती हैं? इसका उत्तर है- हाँ। कोई भी वस्तु, चाहे वो शाकाहार हो या माँसाहार- वो ‘हलाल सर्टिफाइड’ हो सकता है।
I bought this from an Indian Grocery store in Box Hill. What exactly is the compulsion behind selling Maida that is a ‘Product of India’ with Halal certification? pic.twitter.com/TBHtUyldUH
— Puneri Melbournekar?? ?? (@dhanashree0110) October 13, 2019
इस सम्बन्ध में हमने ‘हलाल इंडिया’ के उच्चाधिकारी से बात की। उन्होंने अपनी बातचीत में हमारे सवालों का जवाब दिया। उन्होंने ‘हलाल सर्टिफाइड मैदा’ को लेकर ‘हलाल इंडिया’ का पक्ष रखते हुए ऑपइंडिया को बताया कि ‘हलाल’ का अर्थ होता है ‘Permissible’, अर्थात वो चीज जिसका सेवन करने की अनुमति हो। उन्होंने कहा कि लोग ऐसा समझते हैं कि ‘हलाल’ सिर्फ़ जबह करने की प्रक्रिया से ही जुड़ी हुई चीज है जबकि यह एक ग़लतफ़हमी है। उन्होंने कहा कि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए जो भी चीज नुक़सानदेहक न हो, उसे ‘हलाल सर्टिफिकेट’ दिया जाता है। अर्थात, वो चीजें जिन्हें खाने-पीने से शरीर को कोई हानि न पहुँचे।
लेकिन, यहाँ सवाल यह है कि ऐसा कौन तय करता है? क्या आयुर्वेदिक नियमों के अनुसार ऐसा तय किया जाता है या फिर वैज्ञानिक आधार पर इसका मूल्यांकन होता है कि कौन सी वस्तु ‘हलाल सर्टिफाइड’ होनी चाहिए या नहीं अथवा उसके सेवन से शरीर को हानि होगी या नहीं। अपनी संस्था का पक्ष रखते हुए ‘हलाल इंडिया’ के अधिकारी ने बताया कि यह सब इस्लामिक क़ानून के हिसाब से तय किया जाता है। उन्होंने साफ़ कर दिया कि ‘हलाल’ एक अरबी शब्द है, जिससे यह साफ़ हो जाना चाहिए कि यहाँ चीजें ‘शरिया क़ानून’ के नियमों के आधार पर तय की जाती है। अर्थात, ‘इस्लामिक शरिया क़ानून’ तय करता है कि कौन सा खाद्य पदार्थ शरीर के लिए हानिकारक है और कौन सा नहीं।
‘हलाल इंडिया’ के अधिकारी ने आगे अपनी बात को समझाने के लिए ‘हल्दीराम’ का उदाहरण दिया। ‘हल्दीराम’ कम्पनी के प्रोडक्ट्स की बात करते हुए उन्होंने दावा किया कि कम्पनी क़रीब 600 उत्पाद बनाती है लेकिन लोगों को उसके कुछेक उत्पादों के बारे में ही जानकारी होती है। उन्होंने बताया कि ‘हल्दीराम’ के सारे उत्पाद ‘हलाल इंडिया’ से मान्यता प्राप्त है। जैसे, ‘हल्दीराम’ चिप्स बनाने के लिए आलू का उपयोग करती है। आलू खेतों में उगाया जाता है, वहाँ से वह फैक्ट्री में जाता है और उसमें तमाम तरह की अन्य सामग्रियाँ मिला कर चिप्स बनाई जाती है। फिर, इसमें ‘हलाल सर्टिफिकेशन’ का क्या किरदार?
‘हलाल इंडिया’ के अधिकारी ने कहा कि ऐसे चिप्स प्रोडक्ट्स में ‘कलर इंग्रेडिएंट्स’ भी मिलाए जाते हैं, जो इन्हें एक ख़ास रंग देते हैं। ये ‘कलर इंग्रेडिएंट्स’ सिंथेटिक हो सकते हैं या फिर ऐसी जगह से लाए गए हो सकते हैं, जो ‘हलाल’ के नियम-क़ायदों के अनुसार सही नहीं माने जाते हों। अधिकारी ने कहा कि फ्लेवर देने के लिए ‘फ्लेवरिंग एजेंट्स’ भी मिलाए जाते हैं, हो सकता है कि वो भी ऐसे ही हों। ‘हलाल इंडिया’ मानती है कि हिन्दुओं और मुस्लिमों, दोनों के लिए ही सूअर का माँस खाना मना है, इसीलिए जिस भी उत्पाद में जरा सा भी पॉर्क (सूअर का माँस) हो, उसे कभी भी ‘हलाल सर्टिफिकेट’ नहीं दिया जा सकता है।
संस्था का यह भी मानना है कि सूअर का माँस या उससे निकाले गए उत्पाद वगैरह किसी अन्य खाद्य पदार्थ को बनाने में इस्तेमाल किए जा सकते हैं, इसीलिए उन खाद्य पदार्थों को भी ‘हलाल’ का सर्टिफिकेट नहीं दिया जा सकता है। शाकाहारी खाद्य पदार्थों को ‘हलाल सर्टिफिकेट’ देने की प्रक्रिया के बारे में बताते हुए ‘हलाल इंडिया’ के अधिकारी ने बताया कि उनके अधिकारी फैक्ट्रियों तक जाते हैं और ये भी पता करते हैं कि रॉ-मैटेरियल्स कहाँ से आते हैं। यहाँ हमारा सवाल था कि जो लोग पॉर्क खाते हैं, उनका क्या? भारत में विभिन्न धर्मों, समुदायों और जनजातियों के लोग रहते हैं और उनके अलग-अलग खान-पान के तरीके हैं।
उत्तर-पूर्व के बारे में बड़ा दावा करते हुए ‘हलाल इंडिया’ के अधिकारी ने बताया कि उत्तर-पूर्व के लोग साँप-बिच्छू और यहाँ तक कि कुत्ते को भी खा जाते हैं। उन्होंने बताया कि सप्तभगिनी राज्यों के लोगों के खान-पान को लेकर ‘हलाल इंडिया’ विचार नहीं करता क्योंकि ‘वो लोग कुछ भी खा लेते हैं’। उन्होंने कहा कि सूअर के माँस से तेल निकाल कर दवाओं में भी इस्तेमाल किया जाता है लेकिन उन्हें भी ‘हलाल’ का सर्टिफिकेट नहीं दिया जा सकता। आयुर्वेदिक उत्पादों के बारे में ‘हलाल इंडिया’ के अधिकारी ने बताया:
“पतंजलि भी अपने उत्पादों के लिए ‘हलाल सर्टिफिकेशन’ प्राप्त करने हेतु हमारे पास आया था लेकिन कुछ चीजों के कारण बाबा रामदेव की ‘पतंजलि’ को ये सर्टिफिकेट नहीं दिया जा सका। उसके प्रोडक्ट्स सही हैं लेकिन एक-दो प्रोडक्ट्स को लेकर हमें आपत्तियाँ थीं। इस्लामिक नियम-क़ायदें कहते हैं कि किसी भी जानवर के पेशाब अगर किसी उत्पाद में हो तो उसे ‘हलाल सर्टिफिकेट’ नहीं दिया जा सकता। पतंजलि के कुछ उत्पादों में गोमूत्र मिला हुआ था और इसीलिए ‘हलाल इंडिया’ ने उन्हें मान्यता नहीं दी। अगर वो लोग गोमूत्र वाले प्रोडक्ट्स की प्रोसेसिंग अलग फैक्ट्री में करें तो बाकि प्रोडक्ट्स को ‘हलाल सर्टिफिकेट’ दिया जा सकता है।”
साथ ही ‘हलाल इंडिया’ के अधिकारी ने यह भी बताया कि ऊँट के मूत्र वाले प्रोडक्ट्स को भी ‘हलाल सर्टिफिकट’ नहीं दिया जा सकता। फिर सवाल यह उठता है कि मुस्लिमों की भावनाओं का ख्याल रखने के लिए ही ‘हलाल इंडिया’ काम करता है? इस सवाल के जवाब में संस्था के अधिकारी ने बताया कि भारत में जैन धर्म के लोग भी रहते हैं और खान-पान को लेकर उनके भी कई नियम-क़ानून हैं। उन्होंने कहा कि जैन लोग प्याज-लहसुन नहीं खाते और इस चीज को ध्यान में रख कर भी खाद्य पदार्थों को सर्टिफाय करने के लिए अलग ‘रेगुलेशन अथॉरिटी’ है। बकौल अधिकारी, ऐसे ही ‘हलाल इंडिया’ मुस्लिमों के लिए करता है।
‘Buying Halal, not Jhatka, discriminatory: McDonald’s India gets legal notice by @Ish_Bhandari on behalf of a consumer.’
— Sanjay Dixit ಸಂಜಯ್ ದೀಕ್ಷಿತ್ संजय दीक्षित (@Sanjay_Dixit) October 9, 2019
Good job. Halal certification is economic monopolisation and indirectly promoting jihad through zakat. Halal is poison too. https://t.co/qCU2aa7LoS
‘हलाल इंडिया’ सारी प्रक्रिया ‘शरिया बोर्ड’ की निगरानी में पूरी करता है। उसका कहना है कि अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ भी उसके द्वारा मान्यता प्राप्त खाद्य पदार्थों व उत्पादों को अपने-अपने देशों में मान्यता देती है। सिंगापुर, दुबई और सऊदी सहित कई देशों के साथ ‘हलाल इंडिया’ का MoU (करार) है। यह अपनेआप को भारत सरकार से सम्बद्ध संस्था बताता है।
‘हलाल इंडिया’ भले ही तमाम तरह के दावे करता हो कि वो ‘स्वास्थ्य’ को देख कर, खाद्य पदार्थों से शरीर को हानि होती है या नहीं ये देख कर या फिर अन्य नुक़सानदेहक कारणों को देख कर ‘हलाल’ की मान्यता देता है लेकिन उसके दावे एक जगह आते ही फुस्स हो जाते हैं। अगर कोई वस्तु हानिकारक नहीं हो लेकिन इस्लामिक नियम-क़ायदें उसे हराम मानते हों, तो क्या होगा? इसके सीधा उत्तर है- ‘हलाल इंडिया’ उसे मान्यता नहीं देगा। भले ही वो उत्पाद लाभदायक हो, अन्य धर्मों के लोग उसका इस्तेमाल करते हों लेकिन इस्लाम के अनुसार ही यह तय किया जाएगा कि वो ‘हलाल’ है या फिर ‘हराम’।
ऑपइंडिया ने पतंजलि से भी संपर्क किया। पतंजलि के दफ्तर में फोन करने पर एक महिला अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की कि वे ‘हलाल सर्टिफिकेट’ के लिए ‘हलाल इंडिया’ के पास गए थे। उन्होंने कहा कि उनके जिन भी प्रोडक्ट्स में गोमूत्र का इस्तेमाल होता है, उसपर साफ़-साफ़ लिख दिया जाता है। ऑपइंडिया ने इसी मुद्दे पर ‘डॉक्टर झटका’ से भी विस्तृत बातचीत की थी, जिसमें उन्होंने बताया था कि व्यावहारिक बराबरी तो दूर की बात, सैद्धांतिक रूप से भी सरकार झटका माँस के साथ सौतेला व्यवहार करती है।