स्वरा भास्कर के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने की माँग को लेकर भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल के समक्ष एक याचिका दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि कथित विचारक ने माननीय न्यायालय के खिलाफ लोगों को विद्रोह के लिए उकसाने के इरादे से बयान दिया था।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि स्वरा भास्कर ने 01 फरवरी 2020 को मुंबई में ‘सांप्रदायिकता के खिलाफ कलाकार’ (Artists against communalism) नामक एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए अयोध्या फैसले को लेकर कहा था कि अदालत तय नहीं कर पा रही है कि वो संविधान में यकीन करती है या नहीं।
याचिका के अनुसार, स्वरा भास्कर ने कहा था, “हम एक ऐसे देश में रह रहे हैं, जहाँ सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि बाबरी मस्जिद विध्वंस गैरकानूनी था और उसी फैसले में मस्जिद को गिराने वाले लोगों को पुरस्कृत किया गया।”
याचिका में स्वरा भास्कर पर यह आरोप लगाया गया है कि उनका बयान न केवल सस्ती लोकप्रियता का स्टंट था, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ जनता को विद्रोह करने के लिए जान-बूझकर किया गया प्रयास भी था।
एडवोकेट अनुज सक्सेना, उषा शेट्टी, प्रकाश शर्मा और महेश माहेश्वरी की ओर से दायर इस याचिका में कहा गया है कि कथित विचारक के बयान माननीय न्यायालय की कार्यवाही और सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों की विश्वसनीयता के संबंध में जनता के बीच अविश्वास की भावना पैदा करने की क्षमता रखता है।
उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत की 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गत वर्ष 9 नवंबर को अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करते हुए सर्वसम्मति से फैसला सुनाया था और केंद्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए पाँच एकड़ भूमि आवंटित करने का निर्देश दिया था। इस फैसले के बाद श्रीराम मंदिर निर्माण की प्रक्रियाओं ने जोर पकड़ा और इसी माह की 5 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर का भूमिपूजन किया।
स्वरा भास्कर के खिलाफ याचिका ऐसे समय में डाली गई है जब सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशांत भूषण को अवमानना मामला में दोषी करार दिया है।