पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बुधवार (11 दिसंबर) को कहा कि आर्थिक मंदी को लेकर वे चिंतित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कुछ चीजें हो रही हैं, जिनका GDP पर प्रभाव दिख रहा है। यूपीए सरकार में वित्त मंत्री के पद पर रहे प्रणब मुखर्जी ने कहा कि सरकारी बैंकों में पूंजी डालने की ज़रूरत है और इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है।
भारतीय सांख्यिकी संस्थान के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “देश में जीडीपी वृद्धि की धीमी दर को लेकर मैं चिंतित नहीं हूँ। कुछ चीजें हो रही हैं जिनके अपने प्रभाव होंगे।”
Former President Pranab Mukherjee at Indian Statistical Institute (IIS), Kolkata: I am not very much worried over the slow Gross Domestic Product (GDP) growth because certain things happened, which had its impact. (11.12.19) pic.twitter.com/gI2zoIbIcw
— ANI (@ANI) December 11, 2019
उन्होंने कहा कि 2008 में आर्थिक संकट के दौरान भारतीय बैंकों ने लचीलापन दिखाया था। उन्होंने कहा, “तब मैं वित्त मंत्री था, सार्वजनिक क्षेत्र के एक भी बैंक ने धन के लिए मुझसे सम्पर्क नहीं किया।” इसके आगे उन्होंने कहा कि अब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बड़े पैमाने पर पूंजी की ज़रूरत है और इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है।
पूर्व राष्ट्रपति ने संवाद को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि लोकतंत्र में संवाद बेहद ज़रूरी है, इसके साथ छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर डेटा के साथ छेड़छाड़ होती है, तो इसका असर विपरीत पड़ेगा। ख़बर के अनुसार, योजना आयोग के देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान को लेकर उन्होंने कहा, “मुझे ख़ुशी है कि नीति आयोग भी उसकी कुछ नीतियों को आगे बढ़ाने में काम कर रहा है।”
भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान देश की GDP बढ़त के अनुमान को 6.1 फ़ीसदी से घटाकर 5 फ़ीसदी कर दिया है। इससे पहले रिजर्व बैंक ने अक्टूबर महीने में नीतिगत समीक्षा में यह अनुमान ज़ाहिर किया था कि वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी बढ़त 6.1 फ़ीसदी हो सकती है, लेकिन अब रिजर्व बैंक ने कहा है कि जोखिम पर संतुलन बनने के बावजूद जीडीपी ग्रोथ अनुमान से कम रह सकती है। इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 6 साल के निचले स्तर 4.5 फ़ीसदी तक पहुँच गई थी।
लोकसभा से लेकर राज्यसभा और सोशल मीडिया पर तक कॉन्ग्रेसी नेता और उनके चमचे (ज्यादातर मीडिया गिरोह वाले) GDP को लेकर केंद्र सरकार को कोसते नजर आते हैं। और अगर BJP का कोई नेता GDP को एकमात्र इंडिकेटर नहीं कहकर कुछ बताना चाहता है तो यही गिरोह उन्हें अर्थव्यवस्था का ज्ञान देने लगते हैं। प्रणब मुखर्जी की छवि आर्थिक मामलों में मजबूत रही है। देखना दिलचस्प होगा कि अब यही गिरोह उन्हें कैसे घेरता है!
बता दें कि कॉन्ग्रेस के लिए हमेशा एक संकटमोचक की भूमिका रहे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से पार्टी ने काफ़ी दूरी बना ली है। इस बात का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि जब मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था तो उस दौरान गाँधी परिवार से एक भी सदस्य वहाँ मौजूद नहीं था। ऐसे में यह सवाल सबकी ज़ुबान पर था कि यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गाँधी या पूर्व कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी इस समारोह से नदारद क्यों थे?
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