जम्मू-कश्मीर में इस्लामी आतंकियों ने राहुल भट नाम के एक कश्मीरी हिंदू की हत्या कर दी। यह घटना 12 मई 2022 को शाम लगभग साढ़े चार बजे अंजाम दी गई। राहुल भट की हत्या के बाद वहाँ रह रहे कश्मीरी हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर सवाल उठे। लगभग 350 सरकारी कर्मचारियों ने सामूहिक इस्तीफा भी दिया। असुरक्षा का यह माहौल अचानक से हुआ? सिर्फ एक हत्या के बाद?
राहुल भट की हत्या आम आतंकी घटना नहीं थी। यह टार्गेटेड किलिंग थी। टार्गेटेड किलिंग इसलिए क्योंकि जिस तहसील ऑफिस में राहुल भट को घुस कर आतंकियों ने मारा, अगर यह आम आतंकी घटना होती तो वहाँ काम करने वाले दूसरे भी मारे जा सकते थे या घायल होते। क्या ऐसा हुआ? नहीं। क्या कारण हो सकता है? सिर्फ और सिर्फ टार्गेटेड किलिंग। भीड़ भरे ऑफिस में घुसना और नाम पूछ कर गोली मारना टार्गेटेड किलिंग नहीं है तो और क्या है?
राहुल भट की हत्या को इस्लामी आतंकी और हिंदुओं की टार्गेटेड किलिंग से जोड़ कर नहीं देखा जाए, इसके लिए अब तरह-तरह के पैंतरे शुरू हो गए हैं। आतंकियों के स्तर से होते हुए नेताओं और मीडिया तक… सब इस लाइन को पकड़ कर चल रहे हैं कि राहुल भट की हत्या हिंदू होने के कारण नहीं बल्कि संघी/बीजेपी एजेंट आदि-इत्यादि के कारण हुई है। पहली बात तो यह कि कोई संघी हो, दक्षिणपंथी हो तो उसकी हत्या क्यों? दूसरी और बहुत जरूरी बात… राहुल भट किसी भी राजनीतिक विचारधारा से बँधे इंसान नहीं थे। यह तथ्य है, इसके प्रमाण हैं।
जाति-धर्म से परे उठ कर राहुल भट ने रोहिंग्या मुस्लिमों के हितों के लिए आवाज उठाई थी। फेसबुक पर अपने प्रोफाइल के साथ उन्होंने रोहिंग्या मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार को रोकने की अपील की थी। यह सितंबर 2017 की बात है। इसके ठीक एक महीने पहले अगस्त 2017 में लगभग 900000 रोहिंग्या मुस्लिमों को म्यांमार से भाग कर जान बचाने के लिए बांग्लादेश में शरण लेनी पड़ी थी। इनमें से कई हजार भारत में भी अवैध ढंग से घुसे। अफसोस यह कि दूसरे देश के मुस्लिमों के लिए आवाज उठाने वाले राहुल भट को शायद यह नहीं पता होगा कि उनकी जान एक दिन इस्लामी आतंकी ही लेंगे।
राहुल भट से जुड़ा यह तथ्य अब आपको उनके फेसबुक प्रोफाइल पर नहीं मिलेगा। यह डिलीट किया जा चुका है। किसने डिलीट किया, इसका सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है और यह मुद्दा भी नहीं है। डिलीट करने से किसका फायदा होगा, यह चर्चा का विषय है।
राहुल भट की हत्या… लेकिन इस्लामी आतंकी पाक-साफ
राहुल भट ने रोहिंग्या मुस्लिमों के हितों की बात की, यह जानकारी उस गैंग के लिए सही नहीं थी, जो इस्लामी आतंकियों और हिंदुओं की टार्गेटेड किलिंग से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े थे या इसमें अपना फायदा देखते थे। इस गैंग का और इनकी मानसिकता का पर्दाफाश करना जरूरी है… वो भी पर्याप्त तर्कों के साथ। सबसे पहले समझना होगा कि इस गैंग का मकसद क्या है और इस गैंग के पार्टनर (बोले तो बड़े-बड़े खिलाड़ी) कौन-कौन हैं।
जम्मू-कश्मीर में इस्लामी आतंकी चुन-चुन कर हिंदुओं की टार्गेटेड किलिंग कर रहे हैं, इसके कई उदाहरण हैं, कई खबरें हैं। राहुल भट की घटना ताजा समाचार है, इसलिए लोग चर्चा कर रहे हैं। सच यह है कि इनके पहले भी दूसरे राज्यों के लोग वहाँ रोजगार के लिए गए हैं, उनकी भी हत्याएँ की गई हैं। गैर-मुस्लिमों के नाम धमकी वाले लेटर भी जारी किए गए हैं। इस तरह की सूचनाएँ जब सार्वजनिक होने लगी हैं, तो अब इस पर राजनीतिक चोला ओढ़ाया जा रहा है। इस चोले के लिए आतंकियों, उनके चाहने वालों से लेकर नेता और मीडिया भी अपना खेल दिखा रही है।
राहुल भट की हत्या… लेकिन वोट-बैंक जरूरी
पहले बात राजनीति की। जम्मू-कश्मीर में इस्लामी आतंकी हिंदुओं को चुन-चुन कर मार रहे हैं, इससे फोकस हटाने के लिए मुख्यमंत्री रह चुके फारूक अब्दुल्ला जैसे लोग ‘द कश्मीर फाइल्स’ का मुद्दा उठाने लगे हैं। उनके अनुसार, “कश्मीर में हिंदुओं पर हो रहे हमलों को रोकना है तो इस फिल्म पर रोक लगानी जरूरी है।” मतलब हत्यारों को पकड़ो या पकड़ने के दौरान अगर आरोपित आतंकी भागने लगे, सुरक्षाबलों पर ही गोली चलाने लगे तो उन पर गोली चलाओ जैसे शब्दों-वाक्यों के बजाय फारूक अब्दुल्ला के मुँह से ‘द कश्मीर फाइल्स’ का मुद्दा निकला।
महबूबा मुफ्ती भी मुख्यमंत्री रही हैं। उनके अनुसार बाबरी मस्जिद को शहीद कर दिया गया है। इससे कश्मीर में डायरेक्ट इम्पैक्ट पड़ा है। लोगों में दूरियाँ और बढ़ गई हैं। इन्होंने भी ‘द कश्मीर फाइल्स’ का जिक्र करते हुए कह दिया कि इसके कारण लोगों के दिलों में नफरत डाल दी गई है। मतलब मुख्यमंत्री रह चुकीं महबूबा मुफ्ती को एक नागरिक की मौत से ज्यादा फिल्म पर बात करना जरूरी लगता है। कारण स्पष्ट है। फारूक अब्दुल्ला हों या महबूबा मुफ्ती… कश्मीरी हिंदू राहुल भट की हत्या इस्लामी आतंकियों ने की है, इस बात को जितना दबाया जा सके, दबाओ। साथ ही कोई दूसरा मुद्दा उछाल दो, जनता को बरगला दो।
राहुल भट की हत्या… लेकिन मीडिया का आतंक-प्रेम
राहुल भट की हत्या के बाद एक लेटर सोशल मीडिया पर वायरल होता है। लेटर में यह लिखा होता है कि कश्मीर में रहने वाले संघियों को चुन-चुन कर मार दिया जाएगा। ऐसे कश्मीरी पंडितों को चुन-चुन कर मार दिया जाएगा, जो कश्मीर में रह कर कश्मीरी मुस्लिमों को मारना चाहते हैं, एक दूसरा इजरायल बनाना चाहते हैं। सोशल मीडिया वाले इस लेटर को सच मान लिया जाए तो मतलब अब आतंकी ही यह मैसेज देना चाह रहे हैं कि वो हिंदुओं को टार्गेट नहीं कर रहे हैं, बल्कि सिर्फ उन हिंदुओं को मारेंगे, जो संघी हैं। सवाल उठता है फिर राहुल भट की हत्या क्यों?
हिंदू हो या संघी… इस्लामी आतंकी किसी को मार भी सकते हैं, यह बात भी इनको चाहने वाले मीडिया गैंग को नहीं पची। सोशल मीडिया पर वायरल लेटर को फैक्ट चेक के नाम पर ऑल्ट न्यूज जैसे प्रोपेगेंडा साइट ने तोड़ा-मरोड़ा। आतंकी संगठन का गलत लोगो, स्पेलिंग सही नहीं, लेटर किसी ने साइन नहीं किया… मतलब हर वो बात लिखी, जिसका एक आतंकी संगठन से कोई लेना-देना नहीं होता है लेकिन इनको उन्हें ‘पाक-साफ’ दिखाना था, उसी मकसद से लिखते गए।
राहुल भट की पत्नी और उनकी बेटी से इस्लामी आतंकियों ने जिंदगी भर की खुशियाँ छीन लीं। इनके साथ खड़े होने, इनको इंसाफ दिलाने के बजाय अब कुछ नेता अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंक रहे हैं। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बोल कर अपने वोट-बैंक को मजबूत कर रहे हैं। मीडिया भी अपने कट्टरपंथी इस्लामी आकाओं के गोद में खेल रही है। इन सब के बीच प्रोपेगेंडा का वो खेल भी खेला जा रहा जिसमें आपसे कहा जाएगा… इस्लामी आतंकी बड़े मानवीय विचार वाले होते हैं, वो हिंदुओं को मार ही नहीं सकते… वो सिर्फ संघियों को मारते हैं/मारेंगे क्योंकि कश्मीर में गैर-मुस्लिम/गैर-कश्मीरियों को बसा कर एक दूसरा इजरायल बनाया जा रहा है।