महिला सुरक्षा के नाम पर सियासत को माथे पर उठा लेने वाले, राजस्थान में रेप की बढ़ती घटनाओं पर चुप हैं। ऐसा लगता है कि अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस शासित इस प्रदेश में महिलाओं की इज्जत-आबरू की सुरक्षा की जिम्मेदारी उनकी खुद की या फिर उनके परिजनों की ही है।
हालिया घटनाओं पर नजर डालने से ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस आम लोगों के लिए नहीं है। यदि आरोपित समुदाय विशेष के हुए तो पुलिस और ढीली दिखाई पड़ती है। ऐसे में यदि आपने एक्टिविस्ट बनने जैसी कुछ चेष्टा की तो न्याय पाने की आस से पहले आप किसी पेड़ से लटके भी मिल सकते हैं।
ऐसे मामलों में पुलिस पहले पीड़ित पक्ष को ही समझाएगी। कथित तौर पर राजीनामा का दबाव बनाएगी। फिर भी नहीं माने, तो आरोपित की गिरफ्तारी के लिए पुलिस को कुछ दिन की मोहलत देनी होगी। मोहलत के इन दिनों में विशेषाधिकार प्राप्त समुदाय का आरोपित दबाव बनाएगा। तब भी राजीनमे की सूरत नहीं बनी तो पीड़ित के लिए कोई न कोई पेड़ की डाली तैयार है।
पहले सबसे ताजा मामले से पड़ताल शुरू करते हैं। अलवर जिले का रामगढ़ थाना क्षेत्र। जानकारी के अनुसार रामगढ़ कस्बे में हिन्दू परिवार की एक बारहवीं क्लास में पढ़ने वाली नाबालिग बालिका से समुदाय विशेष के बालौत नगर निवासी अनीश ने बलात्कार करने की कोशिश की। उसकी छेड़छाड़ की हरकतों से परेशान होकर उसने अपनी 12वीं की पढ़ाई छोड़ दी और कुएँ में कूदकर आत्महत्या करने की कोशिश की।
इसके बाद पीड़िता ने रामगढ़ थाने में अनीश, तौफिक और अंजुम के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई। लेकिन जैसा कि कथित तौर पर समुदाय विशेष के लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कर लेने से प्रशासन को दंगा भड़कने की आशंका रहती है, मामला दर्ज नहीं किया गया।
पुलिस ने आरोपित तीन मुस्लिम युवकों को शांतिभंग के आरोप में जरूर पकड़ा। बाद में जब मामला मीडिया में उछल गया तब पुलिस ने 20 जून की रात मामला दर्ज कर मुख्य आरोपी अनीश खान को पॉक्सो एक्ट में गिरफ्तार कर लिया। लेकिन उसका साथ देने वाले अन्य दो अन्य आरोपित तौफिक और अंजुम को बचाने में भी जुट गई।
पीड़िता के भाई का कहना है कि आरोपित युवक अनीश के परिवार के लोग प्रलोभन और धमकी देकर राजीनामे के लिए दबाव बना रहे हैं और पुलिस भी बदनामी की बात कहकर राजीनामा करने का दबाव बना रही है। स्थानीय भाजपा नेता ज्ञानदेव आहूजा कहते हैं कि इस मामले में पीड़ित परिवार पर राजनैतिक दबाव बनाया जा रहा है। वे आरोप लगाते हैं कि इसमें कॉन्ग्रेस के दो नेता भी शामिल हैं। इस घटना का सबसे दुखद पहलू, कुछ दिनों बाद ही पीड़िता के पिता का घर से 500 मीटर की दूरी पर पेड़ से लटका हुआ शव मिला।
इससे पहले मई महीने में टोंक जिले के पचेवर थाना क्षेत्र के बाछेड़ा गाँव में एक नाबालिग के साथ समुदाय विशेष के चार युवकों नासिर खान, सलमान, जाकिर और एक नाबालिग ने सामूहिक दुष्कर्म किया। दुष्कर्म के बाद उस पर धारदार हथियारों हमलाकर मरणासन्न हालात में छोड़कर भाग गए।
इस मामले में जनप्रतिनिधियों के सामने आने पर पुलिस ने मामला दर्ज किया। लेकिन एक सरकारी महिला चिकित्सक ने पीड़िता के परिजनों पर कोर्ट से बाहर ही मामला ‘सैटल’ करने का दबाव बनाया और पीड़िता को अपमानजनक भाषा में संबोधित किया। यह पुलिस और प्रशासन का पीड़िताओं के साथ कैसा रवैया है?
मई महीने में ही अलवर के भिवाड़ी के यूआईटी फेज थर्ड थाना क्षेत्र के आलमपुर गाँव में 9वीं की छात्रा को अगवा कर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म करने और वीडियो बनाने के बाद उसके सिर को दीवार से मारकर उसे घायल करने का मामला सामने आया था।
प्रवासी परिवार की पीड़िता के साथ हुई घटना की रिपोर्ट पुलिस ने दो दिन बाद दर्ज की। पीड़िता को अस्पताल में भर्ती करने के बाद पुलिस ने इस मामले में तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया। पीड़िता के पिता के अनुसार उसमें 11 मई को यूआईटी फेज थर्ड थाने जाकर घटना के बारे में जानकारी दी, लेकिन यहाँ से पुलिस ने उसे महिला थाने भेज दिया। महिला थाने का चक्कर लगाने के बाद 13 मई को उसकी रिपोर्ट दर्ज की गई। महिला अधिकारों पर आवाज बुलंद करने वाली सरकार में पुलिस संवेदनशीलता की यह पराकाष्ठा है।
अलवर के ही थानागाजी में क्षेत्र में 2019 के अप्रैल महीने में दलित महिला के साथ बहुचर्चित सामूहिक दुष्कर्म का मामला तो पुलिस ने लोकसभा के दूसरे चरण के चुनाव संपन्न होने तक रोके रखा गया था, ताकि राजनैतिक आकाओं को किसी भी तरह का राजनैतिक नुकसान नहीं पहुँच सके।
चुरू के सरदारशहर पुलिस थाने ने तो राज्य के पुलिस और प्रशासन को गहरे कलंक में डूबो दिया था। एक दलित महिला ने थाने के पुलिसकर्मियों पर बलात्कार और बुरी तरह प्रताड़ित करने का संगीन आरोप लगाया। इसी तरह राजधानी जयपुर के वैशाली नगर थाने में एक दुष्कर्म पीडिता ने पुलिस की नाकामी से तंग आकर खुद को आग के हवाले कर दिया था।
उत्तरप्रदेश में बलात्कार की घटनाओं पर पूरी सियासत को सिर पर उठाने वाली उभरती महिला नेत्री को राजस्थान में महिलाओं के खिलाफ होने वाली बलात्कार की घटनाओं पर मानों साँप सूँघ जाता है। महिलाओं के खिलाफ इऩ अमानवीय घटनाओं पर आंदोलन या सरकार को फटकार तो दूर, उनका एक पिद्दी सा ट्वीट भी नजर नहीं आता है। यह दोहरा रवैया क्या कहलाता है?
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2019 में महिलाओं के खिलाफ यौन शोषण के मामलों में 81.45 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2018 की तुलना में राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध 50 फीसदी तक बढ़े हैं। 2019 में राजस्थान में दुष्कर्म के मामले 5997 दर्ज किए गए।
क्या महिला सुरक्षा को लेकर सरकार अपने पुलिस बल को राजनैतिक मानसिकता से मुक्त करवा पाएगी?