Sunday, April 28, 2024
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‘लड़ाई जीत ली, पर युद्ध जारी रहना चाहिए’: ISI सरगना और खालिस्तानी के साथ राकेश टिकैत का वीडियो कॉल, PM मोदी को कहा गया ‘खलनायक’

जब टिकैत से इसके बारे में पूछा गया कि किसान यूनियन दलितों के अधिकारों के लिए क्या कर रही तो वो इसके बारे जानकारी से ही इनकार कर गए। टिकैत ने इसके लिए पंजाब के किसान यूनियनों से बात करने की सलाह दे डाली। दरअसल, वो इस सवाल से ही चिढ़ गए थे, क्योंकि ये पंजाब की कॉन्ग्रेस सरकार से जुड़ा था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के एलान के बाद उस पर चर्चा करने के लिए 22 नवंबर 2021 को ‘कौर (कोर) किसान’ नाम के एक संगठन की ओर से अंतरराष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया गया। इसमें BKU के प्रवक्ता राकेश टिकैत के अलावा कई खालिस्तानी भी शामिल हुए।

इस वेबिनार में टिकैत के अलावा खालिस्तानी समर्थक मो धालीवाल, आईएसआई के लिए काम करने वाला पीटर फ्रेडरिक, मोनिका गिल, प्रीत कौर गिल, आसिस कौर, क्लाउडिया वेबबे समेत कई अन्य भी इसमें शामिल रहे। ये सभी यहाँ पर किसान आंदोलन की आड़ में देश विरोधी गतिविधियों को भड़का रहे थे। फिलहाल इस जूम कॉल की कई रिकॉर्डिंग ऑपइंडिया को मिली है।

दरअसल, ‘व्हेयर-इज-प्रूफ’ नाम के एक ट्विटर हैंडल ने जूम कॉल का स्क्रीनशॉट शेयर किया था। जिसकी छानबीन की तो चौंकाने वाला खुलासा हुआ।

आंदोलन को जारी रखने के पक्ष में राकेश टिकैत

जूम मीटिंग में जिस संगठन की ओर से ये मीटिंग आयोजित की गई थी, उस ‘कौर फार्मर्स’ की मेज़बान राज कौर ने टिकैत को एक हीरो के रूप में पेश किया, जिन्होंने 26 जनवरी, 2021 को दिल्ली में हिंसा की घटना के बाद भी आंदोलन को जारी रखा। कृषि कानून के निरस्त होने से खुश हैं या नहीं यह पूछे जाने पर टिकैत ने कहा, “वे कानूनों को निरस्त कर रहे हैं। लेकिन कई मुद्दे अभी भी हैं। कई अन्य मुद्दे हैं जैसे एमएसपी, प्रदर्शनकारियों की मौत और बहुत कुछ, जिसपर सरकार से बातचीत होनी चाहिए। टिकैत अपनी बातों पर अडिग दिखे कि आंदोलन को जारी रखा जाना चाहिए।”

हालाँकि, टिकैत की बात पर हैरान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि कथित किसान नेता ने इससे पहले 5 दिसंबर, 2021 को ये एलान कर दिया था कि आंदलनकारियों का अगला टारगेट बैंकों का निजीकरण होगा। इसके अलावा टिकैत ये भी एलान कर चुके हैं कि 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले किसी भी सूरत में वो आंदोलन को खत्म नहीं होने देंगे। कुल मिलाकर वे सुर्खियों में बने रहने के लिए कोई न कोई बवाल करते ही रहते हैं।

लखीमपुर में भाजपा समर्थकों के मारे जाने का कोई जिक्र नहीं

जूम मीटिंग के दौरान जब टिकैत से लखीमपुर खीरी की घटना के बारे में पूछा गया कि वो मामले की जाँच से संतुष्ट हैं, तो उन्होंने अपनी संतुष्टि जताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में तीन जज लखीमपुर मामले की जाँच कर रहे हैं। इसके अलावा किसानों के यूनियन की भी एक कमेटी है जो इस घटना की अपने स्तर पर जाँच कर रही है। बड़ी बात ये है कि टिकैत ने लखीमपुर खीरी की हिंसा में बेरहमी से मारे गए बीजेपी के कार्यकर्ताओं पर कुछ नहीं बोला। टिकैत के पक्षपात को ऐसे समझा जा सकता है कि क्योंकि संयुक्त किसान मोर्चा ने उसके ही’ आंदोलनजीवी’ योगेंद्र यादव को महज इसलिए संगठन से निलंबित कर दिया था क्योंकि वो मारे गए बीजेपी कार्यकर्ता शुभम मिश्रा के घर चले गए थे।

किसानों की आत्महत्या पर टिकैत का बयान

वेबिनार के दौरान राकेश टिकैत से पूछा गया कि किसान कृषि कानून से पहले भी आत्महत्या करते थे, उसको लेकर किसानों के यूनियन क्या कर रहे हैं? टिकैत ने इस सवाल की कल्पना शायद नहीं की थी, इसलिए वो थोड़े हड़बड़ाए। हालाँकि, बाद में दावा किया कि किसानों को उनकी उपज का उचित लाभ नहीं मिलता था। खर्चे बढ़ने के कारण किसानों को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा और इसी कारण वो आत्महत्या करने के लिए मजबूर हुए। खास बात ये है कि अंधविरोध की बजाए अगर राकेश टिकैत ने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कानून को पढ़ा होता तो वो समझ पाते कि उसमें किसानों की आय को बढ़ाने के बारे में बताया गया था। लेकिन अब तो वो कानून के लिए कदम उठाए गए थे।

महिलाओं के लिए अलग से कुछ नहीं किया गया

मेजबान राज कौर ने टिकैत से जब महिलाओं को लेकर सवाल किया कि महिला किसानों के लिए वो कुछ खास कर रहे हैं? लेकिन, महिलाओं से जुड़े मुद्दों और सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं होने के कारण टिकैत ने हकलाते हुए दावा किया कि सरकार के पास महिलाओं के लिए कोई अलग नीतियाँ नहीं हैं। दरअसल, अपनी राजनीति के चक्कर में राकेश टिकैत मुद्रा ऋण, प्रधानमंत्री आवास योजना, जन धन योजना, उज्ज्वला योजना, शौचालय, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ समेत कई अन्य योजनाओं के बारे में जान ही नहीं पाए। जबकि इन योजनाओं का सीधा लाभ महिलाओं को मिला है।

मतेवरा पर जताई अनभिज्ञता

पिछले साल 2020 में पंजाब सरकार ने क्षेत्र में औद्योगिक कॉरिडोर बनाने के लिए लुधियाना में मतेवरा जंगल के सेखोवाल ग्राम पंचायत में 400 एकड़ की जमीनों का अधिग्रहण किया। इसका अधिकांश भाग यहाँ रहने वाले आदिवासियों दलितों का था। वो दलित 1996 से वहाँ थे। उन्होंने वहाँ की बंजर जमीन को बड़ी मुश्किल से उपजाऊ बनाया और बाद में सरकार ने उस पर कब्जा कर लिया, जिसका स्थानीय लोगों द्वारा विरोध किया गया। लेकिन जब टिकैत से इसके बारे में पूछा गया कि किसान यूनियन दलितों के अधिकारों के लिए क्या कर रही तो वो इसके बारे जानकारी से ही इनकार कर गए। टिकैत ने इसके लिए पंजाब के किसान यूनियनों से बात करने की सलाह दे डाली। दरअसल, वो इस सवाल से ही चिढ़ गए थे।

उल्लेखनीय है कि खुद को किसान बताने वाले टिकैत के पास 13 जगहों पर जमीनें और संपत्तियाँ है और ये सब करीब 80 करोड़ रुपए के आसपास का है। टिकैत ने दावा किया कि गाँवों में जमींदार किसानों और भूमिहीन किसानों के बीच कोई भेदभाव नहीं है। सभी एक-दूसरे की मदद करते हैं।

हालाँकि, भारत सरकार हाशिए पर पड़े किसानों के हालातों को सुधारने की भरसक कोशिश कर रही है। सरकार की कोशिशों का नतीजा यह हो रहा है कि इन किसानों को भूमि का स्वामित्व देने से लेकर नीम लेपित यूरिया और वित्तीय सहायता तक दिया जा रहा है।

ISI के गुर्गे को बता दिया इतिहासकार

ये बड़ी हास्यास्पद बात है कि इस मीटिंग में आईएसआई के गुर्गे पीटर फ्रेडरिक को ‘इतिहासकार और लेखक’ के तौर पर पेश किया गया। फ्रेडरिक ने दावा किया कि किसी ने नहीं सोचा होगा कि किसान आंदोलन मोदी सरकार को पीछे धकेल सकता है। उसने पीएम मोदी को इशारों में खलनायक करार दिया और कहा, “किसानों का विरोध सिर्फ एक अध्याय है। असली खलनायक अभी भी सत्ता पर काबिज है। हमने लड़ाई जीत ली है, लेकिन युद्ध जारी रहना चाहिए।” केंद्र सरकार को फासीवादी करार देते हुए फ्रेडरिक ने मुस्लिमों और ईसाईयों पर हमले किए जाने का दावा करते हुए किसान आंदोलनकारियों से इनका समर्थन करने की अपील की और ‘आज़ादी की ओर बढ़ने’ का आह्वान किया। लेकिन यह समझ से परे है कि वो किस आजादी की बात कर रहा था।

खास बात ये है कि जब फ्रेडरिक ने अपना भाषण खत्म किया तो इस मीटिंग के होस्ट में कहा कि वह (पीटर फ्रेडरिक) दुनिया भर में भाजपा और आरएसएस के खिलाफ प्रचार कर रहा है। उसने ये भी दावा किया कि हिटलर ने RSS से प्रेरणा ली थी।

खालिस्तानी धालीवाल बोला- लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई

खालिस्तानी समर्थक मो धालीवाल को ये पता था कि ये आंदोलन लंबा खिंचने वाला है। उसी ने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की वकालत की थी। इस दौरान धालीवाल ने इस बात का खुलासा किया कि उसका संगठन पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन प्रदर्शनों में किस तरह से शामिल था। हालाँकि, उसने रिहाना और ग्रेटा थनबर्ग के साथ अपना नाम जोड़े जाने को हास्यास्पद बताया। उसने ये भी दावा किया कि टूलकिट उसी की देखरेख में बनाया गया था। बाद में गलती से ग्रेटा थनबर्ग ने उसे शेयर कर दिया और साजिश का भांडाफोड़ हो गया।

धारीवाल ने सरकार पर बातचीत नहीं करने का आऱोप लगाते हुए कहा कि मोदी सरकार की नीतियाँ भारत के लोगों के खिलाफ हैं और इसे ‘संरचनात्मक हिंसा’ कहा जा सकता है। उसने सीएए का जिक्र करते हुए कहा कि सीएए विरोध प्रदर्शनों में शासन विरोधी की चिंगारी देखी गई।

जनवरी 2020 की शुरुआत में अपने भाषण को याद करते हुए धालीवाल ने कहा, “कृषि कानूनों को निरस्त करने से लड़ाई खत्म नहीं होती, बल्कि वहीं से शुरू होती है।” उसने देश में माहौल बिगाड़ने के लिए विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया और कहा, “लड़ाई जारी रखने की जिम्मेदारी हम पर है।”

उल्लेखनीय है कि पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन जैसे संगठनों और राकेश टिकैत और पीटर फ्रेडरिक जैसे लोगों द्वारा फैलाई गई गलत सूचना और फर्जी खबरों के कारण न केवल सरकार को उन कानूनों को निरस्त करने के लिए मजबूर किया जो वास्तव में किसानों के लाभ के लिए थे। बल्कि इससे कृषि सुधारों के मामले में भारत सालों पीछे चला गया। गौरतलब है कि हाल ही में टिकैत ने 26 जनवरी 2021 को फिर से हिंसा की धमकी दी थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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