Thursday, November 30, 2023
Homeदेश-समाज85 वर्षीय COVID+ RSS स्वयंसेवक ने दूसरे के लिए छोड़ा हॉस्पिटल में अपना बेड:...

85 वर्षीय COVID+ RSS स्वयंसेवक ने दूसरे के लिए छोड़ा हॉस्पिटल में अपना बेड: जान देकर भी कायम रखी सेवा की मिसाल

बिना कुछ सोचे-समझे दाभदकर काका ने आराम से मेडिकल टीम को सूचित किया कि उनका बिस्तर उस रोती हुई महिला के पति को दे दिया जाए। उन्होंने कहा, "मैं अब 85 वर्ष का हो चुका हूँ, मैंने अपना जीवन जी लिया है। आपको मेरे बदले इस आदमी को बेड ऑफर करना चाहिए, क्योंकि उसके बच्चों को उसकी जरूरत है।"

पूरा देश कोरोना महामारी के बुरे दौर से गुजर रहा है। देश में कोरोना की दूसरी लहर ने कहर बरपाया है। इस विकट और भयानक समय में दयालुता, निस्वार्थता और बलिदान की कहानियाँ लोगों के जीवन में आशा की किरण लेकर आती है।

ऐसी ही एक घटना में, एक आरएसएस सेविका, शिवानी वाखरे, ने नागपुर के 85 वर्षीय आरएसएस कार्यकर्ता नारायण दाभदकर द्वारा किए गए अनोखे बलिदान की कहानी साझा की। इसके बाद स्वयंसेवक राहुल कौशिक ने भी इस घटना को ओरिजिनल पोस्ट की तस्वीर के साथ ट्विटर पर शेयर किया।

आरएसएस कार्यकर्ता नारायण दाभदकर की यह कहानी फेसबुक पर मूल रूप से मराठी में बताई गई है। इसमें बताया गया है कि नारायण दाभदकर आरएसएस के एक कार्यकर्ता हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज की सेवा करने में बिताया, वो कोरोना महामारी की दूसरी लहर से संक्रमित थे। जैसे ही उनका SPO2 स्तर गिरा, उनकी बेटी ने उन्हें शहर के अस्पताल में ए़डमिट कराने की कोशिश की।

घटना को बयाँ करता फेसबुक पोस्ट

काफी प्रयासों के बाद वह इंदिरा गाँधी अस्पताल में उनके लिए बेड रिजर्व कराने में कामयाब रहीं। वाखरे ने लिखा कि दाभदकर को साँस लेने में तकलीफ होने लगी, जिसके बाद उन्हें उनके पोते अस्पताल लेकर आए। अस्पताल की औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए दोनों इंतजार कर रहे थे कि तभी दाभदकर काका ने 40 की उम्र की एक महिला को अपने बच्चों के साथ रोते हुए देखा और अस्पताल के अधिकारियों से अपने पति को एडमिट के लिए बेड की भीख माँगते हुए देखा, जिसकी स्थिति काफी गंभीर थी।

घटना को बयाँ करता फेसबुक पोस्ट

बिना कुछ सोचे-समझे दाभदकर काका ने आराम से मेडिकल टीम को सूचित किया कि उनका बिस्तर महिला के पति को दे दिया जाए। उन्होंने कहा, “मैं अब 85 वर्ष का हो चुका हूँ, मैंने अपना जीवन जी लिया है। आपको मेरे बदले इस आदमी को बेड ऑफर करना चाहिए, क्योंकि उसके बच्चों को उसकी जरूरत है।”

इसके बाद उन्होंने अपने पोते से फोन करके उनकी बेटी को इस फैसले के बारे में बताने के लिए कहा। उनकी बेटी यह फैसला सुनकर हैरान रह गई, हालाँकि कुछ देर बाद वह भी इस पर सहमत हो गई। दाभदकर काका ने तुरंत सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए कहा कि वह युवक के लिए अपना बिस्तर छोड़ रहे हैं और उसने अपने पोते को वापस घर ले जाने के लिए कहा। अगले तीन दिनों तक बहादुरी से वायरस से लड़ने के बाद उनका स्वर्गवास हो गया।

हमने किसी को बेहतर जीवन देने के लिए समय और आर्थिक बलिदानों को देते हुए देखा है, लेकिन दूसरे के लिए लंबा जीवन सुनिश्चित करने के लिए अपने स्वयं के जीवन का बलिदान करना निश्चित रूप से एक ऐसा कार्य है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। इसके साथ ही हमें अपने फ्रंटलाइन वर्कर्स, मेडिकल स्टाफ और ऐसे व्यक्तियों को धन्यवाद देना चाहिए जो महामारी के इस दौर में समाज की निस्वार्थ और अथक सेवा कर रहे हैं।

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

1 दर्जन से अधिक कंपनियाँ-संस्थाएँ, कैंप करते PMO अधिकारी, विशेष उड़ानें, ऑक्सीजन प्लांट… यूँ ही नहीं हुआ सुरंग से 41 मजदूरों का रेस्क्यू, PM...

PMO, RVNL, ONGC, SJVNL, THDC, DRDO, DST, भारतीय सेना, भारतीय वायुसेना, BRO, NDRF, NDMA, उत्तरकाशी जिला प्रशासन और उत्तराखंड सरकार इसमें समन्वय बना कर काम करती रही।

सुरेंद्र राजपूत: 17 साल पहले जिन्होंने 5 साल के प्रिंस को निकाला था बोरवेल से, उनकी बनाई पुली ट्रॉली के कारण 41 मजदूरों के...

सुरेंद्र राजपूत ने सिलक्यारा सुरंग में रैट माइनर्स टीम के लिए पुली ट्रॉली बनाई। इस ट्रॉली से सुरंग से मलबा बाहर निकालने में मदद मिली।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
419,000SubscribersSubscribe