सीवान का सांसद रहा मोहम्मद शहाबुद्दीन फ़िलहाल दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद है। दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्देश पर उसे 18 घंटों के लिए अपने परिजनों से मुलाकात के लिए समय दिया गया। कड़ी सुरक्षा में उसे परिजनों से मुलाकात कराया गया। उच्च-न्यायालय ने सशर्त पैरोल के तहत उसे सुविधा दी थी कि वो 6-6 घंटे के लिए दिल्ली में कहीं भी मुलाकात कर सकता है। ये सब चंदेश्वर प्रसाद उर्फ़ चंदा बाबू की मृत्यु के बाद हो रहा है, जिनके 3 बेटों को शहाबुद्दीन ने मार डाला था।
चंदा बाबू ज़िंदगी भर अपने बेटों की हत्या के मामले में न्याय के लिए केस लड़ते रहे। न्यायपालिका, विधायिका या कार्यपालिका – कहीं से उन्हें कुछ नहीं मिला। बिहार में जंगलराज के दौरान जब शासन-प्रशासन के सभी अंग राजद सुप्रीमो के इशारे पर नाचा करते थे और शहाबुद्दीन उनका ही दुलारा हुआ करता था, ऐसे में भला कोई न्याय की उम्मीद करे भी तो कैसे। ये वो जमाना था, जब शहाबुद्दीन के खिलाफ चुनाव लड़ना भी मौत को दावत देने के समान था।
पूर्व सांसद शहाबुद्दीन के 90 वर्षीय अब्बा शेख मोहम्मद हसीबुल्लाह का सितम्बर 19 को निधन हो गया था। अपने अब्बा को सुपुर्द-ए-ख़ाक करने की रस्म में शामिल होने के लिए उसने हाईकोर्ट से अनुमति माँगी थी। निधन के दूसरे और तीसरे दिन अवकाश था, ऊपर से कोरोना काल के कारण इस पर सुनवाई नहीं हो सकी। शहाबुद्दीन सीवान नहीं जा सका, जिसके बाद उसने अपने अब्बा के ‘चालीसवें’ में वहाँ जाने की अनुमति माँगी।
जब उच्च-न्यायालय ने उसे सीवान भेजने के सम्बन्ध में दिल्ली और बिहार की सरकारों से रिपोर्ट माँगी तो दोनों ने ही हाथ खड़े कर दिए। ये बताता है कि बिहार तो दूर, दिल्ली का शासन-प्रशासन आज 90 के दशक के ख़त्म हुए 20 वर्ष बीत जाने के बावजूद शहाबुद्दीन के क्रियाकलापों पर लगाम कसने में खुद को नाकाम पाता है, खासकर जब वो जेल से बाहर हो। उसे तिहाड़ भी इसीलिए शिफ्ट किया गया था, क्योंकि बिहार के जेल से वो बेधड़क अपना साम्राज्य चला रहा था।
दोनों राज्यों ने यहाँ तक कह दिया कि अगर एक बटालियन जवान पूरे के पूरे लगा दिए जाएँ, फिर भी शहाबुद्दीन के बाहर आने के बाद क़ानून-व्यवस्था को संभालना मुश्किल है। शहाबुद्दीन के लोग अभी भी हर जगह हो सकते हैं, ये संभावना भी जताई जा रही है। वो एक बार बाहर निकलने पर किस-किस से किस कार्य के लिए संपर्क करेगा, किसी को नहीं पता। लेकिन, फिर भी वो परिजनों से मिलने के बहाने बाहर आने में कामयाब रहा।
कोर्ट ने दिल्ली सरकार को आदेश दिया था कि वो तय दिशा-निर्देशों के हिसाब से शहाबुद्दीन को उसके परिजनों से मिलवाए। इसी प्रक्रिया के तहत उसे बाहर लाया गया। सोमवार, बुधवार और शनिवार को उसने अपने परिजनों से मुलाकात की, दिल्ली में अपने ही एक करीबी के फ्लैट पर। कहा जा रहा है कि तीन साल दो महीने के बाद उसने अपनी बीवी हेना शहाब, बेटा मोहम्मद ओसामा, अम्मी और दोनों बेटियों से मुलाकात की।
उसकी बीवी हेना शहाब भी RJD की ही नेता है और 2 बार चुनाव लड़ कर हार भी चुकी है। इस दौरान शहाबुद्दीन जेल में ही था। मीडिया के सूत्र कह रहे हैं कि उसकी एक बेटी डॉक्टर है और एक डॉक्टर बनने वाली है। एक बेटी का तो निकाह भी एक डॉक्टर से ही लगभग तय हो गया है। शहाबुद्दीन को कोर्ट ने छूट दी थी कि वो दिल्ली में कहीं भी अपने परिजनों से मुलाकात कर सकता है, अपनी चुनी हुई जगह पर।
शहाबुद्दीन मामूली अपराधी नहीं है। पाकिस्तान और ISI तक से उसके सम्बन्ध सामने आ चुके हैं, ऐसे में वो देश के लिए भी खतरा है। लोगों की नजर में वो किसी आतंकी से कम नहीं। ऐसे में उसे जेल में ही अपने परिजनों से मुलाकात करने को कहा जा सकता था। बिहार और दिल्ली की सरकारों को कम से कम हाईकोर्ट से अनुरोध करना चाहिए था कि जेल में ही परिजनों को ले जाकर उससे मुलाकात करवाई जाए।
मोहम्मद शहाबुद्दीन को बिहार में लाने के बाद उनकी न्यायिक हिरासत और सुरक्षा की गारंटी लेने के लिए न तो बिहार की सरकार और न ही दिल्ली पुलिस तैयार हुई.#HindiNews https://t.co/UdELhp2wKs
— News18 Bihar (@News18Bihar) December 4, 2020
एक तरफ एक व्यक्ति 16 वर्षों से अपने बेटे की हत्या के लिए न्याय माँगते हुए दर-दर भटकता रहा, दूसरी तरफ उसकी मौत के बाद ही हत्यारा गैंगस्टर अपने परिजनों से मजे में मिल रहा है। एक तरफ चंदा बाबू ने रोते हुए ज़िंदगी बिताई, शहाबुद्दीन के खौफ के कारण कोई उनके साथ दिखना तक नहीं चाहता था, वहीं दूसरी तरफ शहाबुद्दीन जब-जब पूर्व काल में जेल से बाहर आया, उसका भव्य स्वागत किया गया।
16 अगस्त 2004 को चंदा बाबू के दो बेटे तेजाब से नहला दिए गए थे। 16 जून 2014 को बड़े बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। अब 16 दिसंबर 2020 को चंदा बाबू खुद दुनिया से विदा हो गए। चंदा बाबू ने उस वक्त शहाबुद्दीन के खिलाफ खड़ा होने का फैसला, किया जिस वक्त उसकी तूती बोलती थी। उसके डर से कोई भी खड़ा होने की हिम्मत नहीं कर पाता था। उस वक्त वे न केवल खड़े हुए, बल्कि अपना सब कुछ गवाँ भी दिया।