बुधवार (अप्रैल 8, 2020) को तथाकथित भारतीय वैज्ञानिकों के एक समूह ने एक बयान दिया। इस बयान में उन्होंने भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण के लिए तबलीगी जमात को जिम्मेदार बताए जाने की आलोचना करते हुए उसे क्लीनचिट दे दी। अगर आप सोच रहे हैं कि इस निष्कर्ष के पीछे उन्होंने कोई अध्ययन किया या रिसर्च किया तो आप ग़लत हैं। ये वो समूह है जो कुछ भी बक देता है और मीडिया इसे ‘वैज्ञानिकों का बयान’ कह कर ऐसे चलाता है, जैसे इन्हें सालों से नोबेल पुरस्कार मिलता आ रहा हो।
ये तथाकथित वैज्ञानिक ध्रुव राठी की तरह हैं। यूट्यूबर ध्रुव राठी ‘फिलीपींस को आज़ादी कैसे मिली’ से लेकर ‘कोरोना वायरस कैसे काम करता है’ तक, हर मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है। तभी उसकी तुलना ‘राजा बाबू’ फिल्म के गोविंदा से होती है। ऐसे ही, इन वैज्ञानिकों ने कहा है कि उनके पास कोई ऐसा डेटा नहीं है, जिससे ये साबित हो कि तबलीगी जमात वालों ने भारत में कोरोना फैलाया है। धूर्तों का ये समूह इस तथ्य से आँख मूँद लेता है कि भारत में कोरोना वायरस के मामलों में एक तिहाई तो जमातियों के कारण ही आए हैं। दिल्ली में तो दो तिहाई मामलों के लिए जमाती ही जिम्मेदार हैं।
धूर्त समूह इसके बाद पंजाब के एक सिख गुरु की कोरोना से हुई मौत की बात करता है। उनसे ये पूछा जाना चाहिए कि सिख गुरु के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद हज़ारों लोगों को क्वारंटाइन किया गया, उनमें से कितनों ने मेडिकल टेस्ट कराने से इनकार किया? उनमें से कितने अल्लाह के नाम पर मेडिकल सलाहों को धता बता रहे थे। कितने गंदे रहन-सहन को फॉलो कर रहे थे। कितनों ने पुलिस पर पत्थरबाजी की? कितनों ने नर्सों के साथ बदसलूकी की? कितनों ने हॉस्पिटल में ही मल-मूत्र त्याग दिया? कितनों ने हॉस्पिटल में ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ को धता बताते हुए अस्पताल में ही नमाज पढ़ा? कितनों ने खाने-पीने को लेकर कर्मचारियों को तबाह किया? कितनों ने इधर-उधर जान-बूझकर थूका? जमातियों ने ये सब किया।
ये धूर्त ऐसी ही तुलना कर के अपनी बात रखते हैं। उदाहरण के लिए- “जमातियों के कारण हज़ारों कोरोना के नए मरीज पैदा हुए लेकिन फलाँ हिन्दू साधु ने 1720 में एक मुस्लिम को थप्पड़ मारा था, उसका क्या?‘ ऐसे ही इन ‘वैज्ञानिकों’ ने मीडिया और नेताओं पर आरोप लगाया है कि वो जमातियों को बदनाम कर रहे हैं। अगर स्वास्थ्य मंत्रालय के ही आँकड़ों की बात करें तो 4 अप्रैल के बाद से आए कुल मामलों में 30% जमात से जुड़े हैं जबकि धूर्त ‘वैज्ञानिकों’ ने बिना कोई आँकड़ा दिए कुछ भी बक दिया। इन वैज्ञानिकों में बायोलॉजी या मेडिकल क्षेत्र का कोई भी विशेषज्ञ शामिल नहीं है। अधिकतर पत्रकार हैं और ‘सोशल साइंटिस्ट’ हैं।
Scientist Aurnab Ghose is signatory on both Kashmir matter and CAA, part of this group. Ditto Gautam Menon of Ashoka University. Rahul Siddharthan. To me with such background and political letters, seem dubious. Nothing on creating anything to fight #Covid_19india
— saket साकेत ಸಾಕೇತ್ 🇮🇳 (@saket71) April 11, 2020
आईएसआरसी (इंडियन साइंटिस्ट्स रिस्पांस टू कोविड-19) नामक ग्रुप रितिका सूद ने बनाया है, जिसमें ‘वैज्ञानिकों’ के नाम पर फालतू लोगों को ठूँस कर एक प्रकार का इम्प्रेशन बनाने की कोशिश की गई है। इनमें से कई ऐसे ‘वैज्ञानिक’ हैं, जिन्होंने सीएए को हटाने की माँग की थी। अब सीएए को ग़लत साबित करने के लिए उन्होंने कौन से केमिकल रिएक्शन का प्रयोग किया था, ये वो ही जानें। उनका कहना था कि ‘मुस्लिमों को नज़रअंदाज़ करना प्लुरलिस्टिक भारत के लिए सही नहीं है।’ सार ये कि इन कथित वैज्ञानिकों को हर चीज में दिलचस्पी है, सिवाए ‘विज्ञान’ के।