Saturday, April 27, 2024
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सिर में गोली मारी, जेल में ठूँसा, टॉर्चर किया… 32 साल मौत से जूझने के बाद चल बसे कारसेवक जयराज यादव: बेटियाँ बोलीं – राम मंदिर पिता को सच्ची श्रद्धांजलि

जयराज की बड़ी बेटी चंचल यादव ने हमें बताया कि सन 1990 में जब उनके पिता को गोली लगी थी तब से जयराज का इलाज लगातार चल रहा था। उन्होंने बताया कि गोली के कुछ छर्रे सिर में फँसे रह गए थे। इसी के चलते खोपड़ी के एक हिस्से में मवाद बन गई थी।

अयोध्या में सोमवार (22 जनवरी, 2024) को निर्माणाधीन राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। रामजन्मभूमि के लिए हुए 5 सदी तक संघर्ष के बाद आए इस अवसर पर देश और दुनिया भर के हिन्दू दीपावली जैसा पर्व मनाने की तैयारी में हैं। ऐसे में हिन्दू समाज उन तमाम बलिदानी रामभक्तों को याद कर रहा है जिन्होंने मुगल काल से मुलायम काल के बीच राम के नाम पर खुद को बलिदान कर दिया। उन तमाम रामभक्तों में से एक थे जयराज यादव।

जयराज यादव को 22 अक्टूबर, 1990 में बस्ती जिले के गाँव सांडपुर में गोली लगी थी। वो कारसेवकों की तलाश में गाँव में घुस कर अत्याचार कर रही पुलिस टीम का विरोध कर रहे थे। तब से जयराज यादव लगातार अस्वस्थ चल रहे थे। आखिरकार मई 2023 में उन्होंने प्राण त्याग दिए। ऑपइंडिया ने जयराज यादव के घर जाकर उनके परिजनों के वर्तमान हालात की जानकारी जुटाई।

तंगहाली में गुजारा कर रहा परिवार

बलिदानी जयराज यादव मूलतः बस्ती जिले के गाँव हेंगापुर के रहने वाले हैं। अभी उनके परिवार में लगभग 50 वर्षीया विधवा राधा यादव के अलावा 2 बेटियों खुशबू और चंचल के साथ 1 बेटा दुर्गेश है। जयराज के सभी संतानों की उम्र 18 से 24 साल के बीच है। जब ऑपइंडिया की टीम उनके घर पहुँची तब राधा और दुर्गेश कहीं बाहर गए थे। घर पर दोनों बेटियाँ मौजूद मिलीं। जयराज का घर बेहद गरीबी की हालत में गुजारा कर रहा है।

घर के कई हिस्सों में प्लास्टर भी नहीं लगा है। फर्श की जगह ईंट के कंकड़ बिछे मिले। रसोई का सामान भी अस्त-व्यस्त था। हालात ये थे कि बाहर से आए आगंतुकों के लिए उनके पास सिर्फ पानी भर था जो एक टूटे ग्लास में दिया गया था।

सिर में मारी गई थी गोली

दिवंगत जयराज की छोटी बेटी खुशबू यादव ने हमें बताया कि उनकी माँ ने बचपन में ही उन्हें रामजन्मभूमि को लेकर उनके पिता द्वारा किए गए कार्यों की सच्ची घटना सुनाई थी। तब गाँव सांडपुर में देश के अलग-अलग हिस्सों से कारसेवक आ कर रुकते थे। यहाँ ग्रामीण उन्हें खाना-पीना देने के बाद नाव से नदी पार करवा कर अयोध्या पहुँचाते थे। इस बीच किसी ने पुलिस को मुखबिरी कर दी। 22 अक्टूबर, 1990 को उनके गाँव में पुलिस ने सुबह-सुबह दबिश मार दी।

जब कारसेवक न मिलने पर महिलाओं और बच्चों को तंग किया जाने लगा तब ग्रामीणों ने पुलिस कार्रवाई का विरोध शुरू कर दिया। इस विरोध में जयराज यादव भी शामिल थे। पुलिस बल को अपना यह विरोध नागवार गुजरा। पैरामिलिट्री के साथ पुलिस बल ने तब गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी।

अपने पापा को याद कर के खुशबू यादव रो पड़ीं। खुद को सँभालते हुए उन्होंने आगे बताया कि पुलिस द्वारा चलाई गई गोली का छर्रा उनके पापा जयराज यादव के सिर में घुस गया। गोली लगते ही जयराज यादव घायल हो कर गिर पड़े। पुलिस टीम उन्हें उठा कर अपने साथ ले जाने के लिए बढ़ी। इस बीच कुछ ग्रामीणों ने घायल जयराज यादव को कंधे पर लादा और गोलीबारी से दूर ले जाने की कोशिश करने लगे। हालाँकि, पुलिस ने दौड़ा कर जयराज यादव को ग्रामीणों से छीन लिया।

घायल अवस्था में ही बिना बेहतर इलाज के जयराज यादव को जेल भेज दिया गया। परिजनों के मुताबिक, यहीं से सिर में घुसा गोली का छर्रा जयराज यादव के मस्तिष्क में मवाद बनाने लगा था। ग्रामीणों का यह भी दावा है कि घायल होने के बावजूद जयराज को थाने में बेरहमी से टॉर्चर किया गया था।

गोली भी मारी और मुल्जिम भी बना दिया

जयराज यादव पर मुलायम सिंह यादव की सरकार उस समय दोहरी मार तब पड़ी जब उन्हें गाँव में पुलिस द्वारा किए गए उपद्रव में मुल्जिम बना दिया गया। यह मुकदमा तत्कालीन थाना प्रभारी दुबौलिया की तहरीर पर 23 अक्टूबर, 1990 को दर्ज हुआ था। लगभग हर जाति और वर्ग के कई अन्य ग्रामीणों के साथ जयराज यादव पर भी IPC की धारा 147, 149, 307, 332, 333, 353 और 336 के साथ 7 क्रिमिनल एक्ट लगाया गया था।

पहले से ही बीमार हालत में पड़े जयराज यादव को जब इसकी जानकारी हुई थी तब उनकी तबीयत और बिगड़ गई थी। हालाँकि, उनके साथ गिरफ्तार हुए अन्य ग्रामीणों द्वारा दी गई हिम्मत के बाद वो कुछ हद तक सामान्य हुए थे।

1990 में जयराज यादव पर दर्ज FIR में उन्हें बताया गया मुल्जिम

घायल अवस्था में ही जयराज यादव को लगभग 1 माह तक जेल में रखा गया था। घर वालों ने ग्रामीणों के सहयोग से जैसे-तैसे उनकी जमानत करवाई। बेटे के ऊपर हुए अत्याचार से दुखी मुन्नीलाल यादव भी कुछ दिनों बाद कई बीमारियों से घिर गए। आखिरकार लगभग 20 साल पहले जयराज यादव के पिता मुन्नीलाल ने दम तोड़ दिया।

32 साल तक हर दिन लड़ी मौत से जंग

जयराज की बड़ी बेटी चंचल यादव ने हमें बताया कि सन 1990 में जब उनके पिता को गोली लगी थी तब से जयराज का इलाज लगातार चल रहा था। उन्होंने बताया कि गोली के कुछ छर्रे सिर में फँसे रह गए थे। इसी के चलते खोपड़ी के एक हिस्से में मवाद बन गई थी। बहुत इलाज के बाद भी जयराज पूरी तरह से कभी नहीं ठीक हो पाए। वो लगभग 32 साल जीवित रहे लेकिन कभी सामान्य रूप में नहीं आ सके।जयराज का इलाज बस्ती से ले कर लखनऊ तक हुआ लेकिन सिर में लगी गोली ने कभी उन्हें सामान्य नहीं होने दिया।

जयराज की छोटी बेटी खुशबू यादव ने हमें बताया, “पापा का लगभग हर दिन सिर जोर से दर्द करने लगता था। वो दर्द से चीखने लगते थे। कई बार तो बेहोश भी हो जाते थे। इसी वजह से उन्हें कहीं अकेले नहीं भेजा जाता था। होश में आने के बाद वो थोड़े समय नॉर्मल रहते थे लेकिन बाद में फिर अचानक दर्द उठने लगता था।” खशबू के मुताबिक, तमाम दवाएँ उनके पिता के इलाज में बेअसर रहती थीं। आखिरकार लम्बे समय तक मौत से लड़ते हुए जयराज यादव का 29 मई, 2023 को देहांत हो गया।

दिवंगत पिता को याद कर के आज भी रोने लगती हैं चंचल और खुशबू यादव

इलाज और मुकदमे में बिक गए गहने और खेत

दिवंगत जयराज यादव की छोटी बेटी खुशबू ने हमें बताया कि इस समय उनके परिवार की माली हालत बद से भी बदतर है। घर में खाने तक के लाले पड़े हैं। लगभग 30 साल तक चले जयराज के इलाज और चल रहे मुकदमे की वजह से परिवार के गहने और खेत भी बिक गए। इसके अलावा लाखों रुपए का कर्ज अलग से सिर पर चढ़ा है। कर्जदार आए दिन घर आते हैं और पैसे माँगते हैं। थोड़े बहुत खेत और एक घर बचा है जयराज यादव के आश्रितों के पास। परिवार का कहना है कि अगर उसे भी बेचने कि नौबत आई तो उन्हें सड़क पर सोना पड़ेगा।

जयराज यादव के घर के अंदर का दृश्य

बनना चाहती थीं डॉक्टर, पर छोड़ दी पढ़ाई

जयराज यादव की तीनों संतानों ने पढ़ाई छोड़ दी है। बेटा दुर्गेश यादव कहीं से छोटे-मोटे काम कर के परिवार की माली हालात सुधारने का प्रयास कर रहा है। वहीं दोनों बेटियों चंचल और खुशबू ने भी पैसों की तंगी से स्कूल जाना छोड़ दिया है। खुशबू यादव ने हमें बताया कि वो बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना पाल कर रखीं थीं लेकिन हालातों ने उन्हें स्कूल से ही दूर कर दिया। खुशबू ने बताया कि अब उनकी पहली प्राथमिकता माँ का हाथ बँटाना है। हालाँकि किसी मदद के मिलने के बाद दिवंगत जयराज यादव की बेटियाँ आज भी पढ़ कर अपने सपनों को पूरा करने के लिए मानसिक तौर पर तैयार हैं।

दिवंगत जयराज यादव का परिवार आज ही भगवान राम का उपासक है। अयोध्या में बन रहे राम मंदिर को ले कर यह परिवार काफी खुश है। खुशबू और चंचल यादव ने कहा कि रामजन्मभूमि के लिए उनके पिता ने बलिदान दिया था। आज मंदिर निर्माण को जयराज यादव की बेटियाँ अपने पिता को सच्ची श्रद्धांजलि मानती हैं।

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राहुल पाण्डेय
राहुल पाण्डेयhttp://www.opindia.com
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।

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