त्रिपुरा में वकीलों, पत्रकारों और एक्टिविस्टों के ख़िलाफ़ UAPA लगाने का पूरा मामला अब वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण सर्वोच्च न्यायालय में लेकर पहुँचे हैं। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना के सामने माँग की है कि इस केस में जल्द सुनवाई हो, क्योंकि जिन पर केस हुआ है उन पर तात्कालीक कार्रवाई का खतरा है।
बता दें कि त्रिपुरा में हुई हिंसा मामले में पुलिस ने वकीलों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों समेत कई सोशल मीडिया यूजर्स के खिलाफ यूएपीए, आपराधिक साजिश और जालसाजी के आरोपों के तहत मामले दर्ज किए हैं। वहीं यूट्यूब को भी ऐसे अकॉउंट फ्रीज करने को कहा गया है। उन्हें सबकी जानकारी देने के लिए नोटिस भेजा गया है।
Tripura Violence : Supreme Court Agrees To Give Urgent Listing To Petition Challenging UAPA Against Lawyers, Activists @SrishtiOjha11 https://t.co/nRmQnafpQY
— Live Law (@LiveLawIndia) November 11, 2021
ऐसे में सीजेआई एन वी रमना और जस्टिस ए एस बोपन्ना और हिमा कोहली की पीठ को वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सूचित किया कि फैक्ट फाइंडिंग मिशन का हिस्सा रहे दो वकील और एक पत्रकार के खिलाफ उनकी सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर त्रिपुरा पुलिस ने UAPA के तहत कार्यवाही की है और प्राथमिकी दर्ज करके इन्हें दंड प्रक्रिया संहिता के तहत नोटिस जारी किए हैं।
प्रशांत भूषण की याचिका पर पीठ ने शुरुआत में पूछा, “आप हाईकोर्ट क्यों नहीं गए? आप हाईकोर्ट के समक्ष गुहार लगाएँ।” हालाँकि, बाद में पीठ को प्रशांत भूषण ने बताया कि उन्होंने इस मामले में गैरकानूनी गतिविधियाँ (UAPA) कानून को भी चुनौती दी है।
इसके अलावा वह बोले, “कृपया इसे सूचीबद्ध करें क्योंकि इन लोगों पर तात्कालिक कार्रवाई का खतरा है।” भूषण की दलील सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश ने इस केस को जल्द सुनने की माँग को माना और कहा कि वह इसके लिए तारीख देंगे।
बता दें कि प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा के बारे में कथित रूप से सूचना प्रसारित करने के लिए IPC और UAPA प्रावधानों के तहत पश्चिम अगरतला पुलिस स्टेशन में दर्ज FIR में वकील मुकेश और अंसारुल हक और पत्रकार श्याम मीरा सिंह पर आरोप लगाए गए हैं।
उल्लेखनीय है कि त्रिपुरा में सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर उच्चतम न्यायालय के वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं समेत 102 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। फैक्ट फाइंडिंग मिशन का हिस्सा रहे नागरिक समाज के सदस्यों ने भी गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी है कि ‘गैरकानूनी गतिविधियों’ की परिभाषा अस्पष्ट और व्यापक है। इसके अलावा, कानूनन आरोपित को जमानत मिलना बेहद मुश्किल हो जाता है।