अल्पसंख्यकों की परिभाषा तय करने के लिए बीजेपी नेता अश्विनि उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई आज सुप्रीम कोर्ट में हुई। जिसके बाद कोर्ट ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को यह निर्देश दिया कि वह अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करे।
उपाध्याय ने कोर्ट से परिभाषा तय करने की माँग करते हुए कहा था कि उन्होंने आयोग को इस मामले में ज्ञापन दिया था। याचिका में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 2(सी) को रद्द करने की माँग की गई है। याचिका में कहा गया है कि यह धारा मनमानी, अतार्किक और अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करती है।
1993 की अधिसूचना रद्द करने की माँग
इस धारा में केंद्र सरकार को किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने के असीमित अधिकार दिए गए हैं। याचिका में माँग की गई है कि केंद्र सरकार की 23 अक्टूबर, 1993 की उस अधिसूचना को रद्द किया जाए, जिसमें 5 समुदायों मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, सिख और पारसी को अल्पसंख्यक घोषित किया गया था।
याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करे, ताकि संविधान के अनुच्छेद 29-30 में उन्हें अधिकार और संरक्षण मिले, जो वास्तव में धार्मिक, भाषाई, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से प्रभावशाली न हों।
वास्तविक अल्पसंख्यक लाभ से वंचित
याचिका में कहा गया है कि हिंदू आँकड़ों के अनुसार एक बहुसंख्यक समुदाय है, जबकि पूर्वोत्तर के कई राज्यों और जम्मू-कश्मीर में यही हिंदू अल्पसंख्यक है। याचिका में इस बात का तर्क़ दिया गया है कि हिंदू समुदाय उन लाभों से वंचित है, जो कि इन राज्यों में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए मौजूद है।
याचिका में तर्क देते हुए मुस्लिमों की आबादी का आँकड़ा भी दिया गया है। मुस्लिम आबादी के आँकड़े (याचिकानुसार): लक्षद्वीप में मुस्लिम आबादी 96.20%, जम्मू-कश्मीर में 68.30%, असम 34.20%, पश्चिम बंगाल 27.5%, केरल 26.60%, उत्तर प्रदेश 19.30% और बिहार 18%। याचिकाकर्ता का कहना है कि इन सभी राज्यों में मुस्लिम असल में बहुसंख्यक होने के बावजूद भी अल्पसंख्यक हैं और इन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। जबकि जो वास्तव में अल्पसंख्यक हैं, उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।