सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कश्मीर घाटी में 1990 के दशक में हुए हिंदुओं के नरसंहार की जाँच की CBI/NIA या फिर कोर्ट द्वारा नियुक्त एजेंसी से कराने की माँग वाली क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज कर दिया। ‘रूट्स इन कश्मीर’ नाम की NGO द्वारा दायर याचिका में नए सिरे से प्राथमिकी दर्ज जाँच कराने की माँग की गई थी।
दरअसल, हिंदुओं के नरसंहार के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश को लेकर अक्टूबर 2022 में पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी। 24 जुलाई 2017 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए कहा था कि इतने सालों बाद इस केस में सबूत जुटाना मुश्किल है।
कोर्ट ने यह भी कहा था कि कश्मीरी पंडितों के साथ जो कुछ हुआ वो हृदय विदारक है, लेकिन 27 साल बीत जाने के बाद याचिका पर विचार करने से कोई उपयोगी उद्देश्य सामने नहीं आएगा। इसलिए इसकी जाँच का आदेश नहीं दिया जा सका।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई से इनकार करने के बाद ‘रूट्स इन कश्मीर’ नाम की NGO ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया था कि देरी को आधार बताकर याचिका खारिज करना ठीक नहीं है। सिख विरोधी दंगों की नए सिरे से हो रही जाँच का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया कि इंसानियत के खिलाफ अपराध और नरसंहार जैसे मामलों में समय सीमा का नियम लागू नहीं होता।
याचिका में यह कहा गया कि न्यायालय यह मानने में विफल रहा कि 1989 और 1998 के बीच 700 से अधिक कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी गई। इससे जुड़े 200 से अधिक मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गई, लेकिन एक भी प्राथमिकी में चार्जशीट नहीं दाखिल की गई या मामला दोषसिद्धि तक नहीं पहुँचा।
नए सिरे से प्राथमिकी दर्ज करने, फिर से जाँच करने और लंबित मामलों को तेजी से निपटाने की माँग वाली याचिका को खारिज करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल और एस अब्दुल नज़ीर की पीठ ने कहा कि इसमें कोई मामला नहीं बनता।
पीठ ने कहा, “हमने क्यूरेटिव पिटीशन और इससे जुड़े दस्तावेजों को देखा। हमारी राय में रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा मामले में इस अदालत के फैसले में बताए गए मापदंडों के भीतर कोई मामला नहीं बनता है।”