केरल के सबरीमाला मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट निर्णायक फैसला नहीं सुना पाया। 5 जजों की पीठ में से 3 जज इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेजे जाने के पक्ष में रहे जबकि 2 जजों ने इससे संबंधित याचिका पर ही सवाल उठा दिए।
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के अवाला जस्टिस खानविलकर और जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने के पक्ष में अपना मत सुनाया। जबकि पीठ में मौजूद जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस नरीमन ने सबरीमाला समीक्षा याचिका पर असंतोष व्यक्त किया।
अंततः पीठ ने सबरीमाला मामले में फैसला सुनाने के लिए बड़ी पीठ (7 जजों की बेंच) को प्रेषित किया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में इस पुनर्विचार याचिका को देखने वाली 5 जजों की बेंच में दो जजों की असहमति के बाद मामला बड़ी बेंच को भेजा गया।
Supreme Court, by a majority of 3:2, has referred the review petitions to a larger constitution bench. Justice Rohinton Fali Nariman and Justice DY Chandrachud gave dissent judgement. #Sabarimala https://t.co/xBcxf6bFeV
— ANI (@ANI) November 14, 2019
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 28 सितंबर को केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को लिंग आधारित भेदभाव ठहराते हुए रद्द किया था। हालाँकि, ये फैसला 4-1 के बहुमत से था। जिसमें जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने बहुमत से असहमति जताई थी। लेकिन फैसला आने के बाद अयप्पा अनुयायी इस फैसले का भारी विरोध करने लगे। नतीजतन इसके ख़िलाफ़ 55 पुनर्विचार याचिकाओं सहित कुल 65 याचिकाएँ कोर्ट में दर्ज हुईं। जिस पर सुनवाई करते हुए बीती 6 फरवरी को CJI गोगोई, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने 45 से अधिक समीक्षा याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इस मामले से जुड़ीं भूमाता ब्रिगेड की प्रमुख तृप्ति देसाई ने कहा कि अब समय आ गया है कि पुराने रिवाज़ों को बदला जाए। महिलाओं पर पाबंदी लगाना असंवैधानिक है, गलत परंपरा को जारी नहीं रख सकते हैं। यह महिलाओं के अधिकार की बात है। 21वीं सदी में हम पितृसत्ता की पद्धति को स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने उम्मीद जताई थी कि महिला को पूजा करने और समानता के अधिकार के तहत सुप्रीम कोर्ट अपने फ़ैसले पर क़ायम रहेगा।
इससे पहले केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की वामपंथी सरकार ने सबरीमाला के मुद्दे पर एक बार फिर से यू-टर्न लेते हुए कहा था कि उनकी सबरीमाला के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को लागू करने के लिए नीति निर्माण करेगी जिसके तहत सभी उम्र की महिलाएँ सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करेंगी और वहाँ की मान्यता के अनुसार घुसकर उसे अपवित्र कर देंगी।
सबरीमाला के भक्तों पर अत्याचार करने के बाद केरल के वामपंथियों ने जून 2019 में केंद्र सरकार से सबरीमाला के रीति-रिवाज़ो की रक्षा करता एक कानून बनाने को कहा था। जबकि यू-टर्न ले लेने के बाद अब वही वामपंथी कह रहे हैं कि हम सुप्रीम कोर्ट 2018 का फैसला मानेंगे। बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले में कहा गया था की सभी महिलाओं को अय्यप्पा भगवान के मंदिर में प्रवेश दिया जाना चाहिए।