सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/ जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 (SC/ST Act) को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सिर्फ अभद्र भाषा का प्रयोग किसी व्यक्ति के खिलाफ ST/ST Act लगाने के लिए काफी नहीं है। अदालत ने व्यक्ति के खिलाफ लगाए आरोप को खारिज कर दिया।
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एसआर भट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने शुक्रवार (19 मई 2023) को कहा कि यह जरूरी है कि इस ऐक्ट के तहत आरोपित पर मुकदमा चलाने से पहले उसके द्वारा सार्वजनिक रूप से की गई टिप्पणी को आरोप पत्र में रेखांकित किया जाए। इससे अदालतें अपराध का संज्ञान लेने से पहले यह निर्धारित कर पाएँगी कि एससी/एसटी अधिनियम के तहत एक मामला बनता है या नहीं।
बेंच ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति किसी को सार्वजनिक रूप से ‘बेवकूफ’ या ‘मूर्ख’ या ‘चोर’ कहता है तो यह आरोपित द्वारा अपशब्द कहे जाने का कृत्य माना जाएगा। यदि यह SC/ST व्यक्ति को कहा गया है, तब तक धारा 3(1)(एक्स) के तहत व्यक्ति को आरोपित नहीं किया जा सकता, जब तक कि इस तरह के शब्द जातिसूचक टिप्पणी के साथ नहीं कहे गये हों।
दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय ने यह बात उस मामले की सुनवाई के दौरान कही, जिसमें एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1) (एक्स) के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया था। यह धारा सार्वजनिक तौर पर एससी-एसटी समाज के व्यक्ति के इरादतन अपमान करने से संबंधित है।
अदालत ने मामले की सुनवाई करते हुए व्यक्ति के खिलाफ दर्ज मामले को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि इस संबंध में ना ही प्राथमिकी में और ना ही आरोप पत्र में यह जिक्र किया गया था कि मौखिक विवाद के दौरान शिकायतकर्ता की जाति का कोई संदर्भ नहीं दिया गया था।
अदालत ने यह नोट किया कि जिस समय यह घटना हुई, उस समय शिकायतकर्ता के अलावे उसकी पत्नी और बेटे उपस्थित थे। इसके अलावा कोई और मौजूद नहीं था। कोर्ट ने कहा कि पत्नी-बेटे की उपस्थिति में कही गई बात को सार्वजनिक नहीं कहा जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि मामले में किसी व्यक्ति को अपमानित करने की मंशा स्पष्ट होनी चाहिए। हर अपमान या धमकी SC/ST Act के धारा 3(1) (एक्स) के तहत अपराध नहीं होगा। जब तक कि इस तरह की टिप्पणी में जातिवादी मंशा ना हो, तब तक इस एक्ट में मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता।