सुप्रीम कोर्ट से सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन को राहत मिली है। ईशा फाउंडेशन की जाँच वाले मद्रास हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। जिस मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने यह आदेश दिया था, उसे भी सुप्रीम कोर्ट ने अपने पास स्थानांतरित कर लिया है।
सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने गुरुवार (3 सितम्बर, 2024) को इस मामले में सुनवाई की। यह याचिका ईशा फाउंडेशन की तरफ से दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि अब ईशा फाउंडेशन के कोयम्बटूर आश्रम पर कोई भी पुलिस कार्रवाई ना की जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने इसी के साथ कहा कि मद्रास हाई कोर्ट ने जिस याचिका की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है, वह उसकी सुनवाई अब खुद करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इसी के साथ ही मद्रास हाई कोर्ट के निर्णय पर भी रोक लगा दी है। उसने कहा है कि मद्रास हाई कोर्ट में याचिका दायर करने वाले को सुप्रीम कोर्ट में हाजिर होना होगा।
ईशा फाउंडेशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश उस पर इस सप्ताह दो दिन हुई पुलिस जाँच के बाद आया है। ईशा फाउंडेशन की जाँच का आदेश मद्रास हाई कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए दी थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उसकी दो बेटियों को ईशा फाउंडेशन ने बंधक बना रखा है और उन्हें बाहर नहीं आने देता।
यह आरोप लगाया कि अंदर ऐसा खाना-पीना और दवाइयाँ दी जाती हैं जिनके कारण लोगों की बाकी क्षमताएँ कम हो जाती हैं। याचिका में यह आरोप भी लगाया गया कि उनकी दोनों बेटियों का आश्रम आने से पहले अच्छा करियर था और जीवन था। लेकिन आश्रम में जाने के बाद उनका करियर ठप हो गया और उन्हें संत बनने की तरफ धकेला गया।
याचिकाकर्ता का कहना था कि सद्गुरु जग्गी का आश्रम लोगों को अपना सामान्य जीवन छोड़ कर साधु बनने के लिए ब्रेनवाश करता है। यह भी आरोप लगाया कि इस दौरान लोगों को उनके परिवार से नहीं मिलने दिया जाता और उनका बाहरी दुनिया से सम्पर्क काट दिया जाता है।
मद्रास हाई कोर्ट ने इस दौरान कहा था, ”हम जानना चाहते हैं कि आखिर एक व्यक्ति जिसने अपनी बेटी की शादी कर दी और उसका जीवन अच्छी तरह से स्थापित कर दिया, वह दूसरों की बेटियों को सिर मुंडवाने और एकांत में जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित क्यों कर रहा है?”
मद्रास हाई कोर्ट ने इसके बादआधार पर प्रशासन को आदेश दिया था कि वह ईशा फाउंडेशन के आश्रम के भीतर जाँच करे और इसकी रिपोर्ट कोर्ट के सामने रखे। हाई कोर्ट ने इसी के साथ ईशा फाउंडेशन के विरुद्ध पहले दर्ज किए गए मामलों की जानकारी भी माँगी थी। इसी के बाद आश्रम के भीतर पुलिस पहुँची थी।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में वह दोनों महिलाएँ भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के जरिए पेश हुईं, जिनके पिता ने जबरदस्ती संत बनाए जाने और बंधक बनाए जाने का आरोप लगाया है। महिलाओं से CJI चंद्रचूड़ ने इस दौरान बात भी की। महिलाओं से बात करने के बाद उन्होंने यह आदेश पारित किया।
कोर्ट ने कहा, “न्यायालय ने दोनों महिलाओं से बातचीत की है। बातचीत के दौरान, दोनों ने बताया कि वह 24 और 27 वर्ष की आयु में आश्रम में आईं थी। उन्होंने कहा कि वे स्वेच्छा से रह रही हैं और वे आश्रम से बाहर आने-जाने के लिए स्वतंत्र हैं।”
कोर्ट ने आगे कहा, “पुलिस की मौजूदगी के बारे में दोनों का कहना है कि वह कल रात परिसर से चली गई, वह 2 दिन से वहीं मौजूद थी। दोनों का कहना है कि उनकी माँ ने करीब 8 साल पहले भी ऐसी ही याचिका दायर की थी, जिसमें पिता भी पेश हुए थे।” सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब ईशा फाउंडेशन के विरुद्ध हो रही कार्रवाई रुक गई है।