Sunday, December 22, 2024
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क्या होता है ‘स्त्रीधन’, जिसे वापस नहीं माँग सकता पिता, जिस पर पति का नहीं होता अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा- महिला ही इसकी मालकिन

इन्हीं में से एक है स्त्रीधन की अवधारणा। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अधिनियम के तहत महिलाओं को 'स्त्रीधन' का पूर्ण मालिक बताया गया है। हिंदू कानून के तहत स्त्रीधन में चल या अचल, किसी तरह की संपत्ति हो सकती है। स्त्रीधन में महिला की शादी से पहले, शादी के दौरान और शादी के बाद मिली संपत्ति को शामिल किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘स्त्रीधन’ महिला की विशिष्ट संपत्ति है और उसके पिता महिला की स्पष्ट अनुमति के बिना उसके ससुराल वालों से स्त्रीधन की वसूली का दावा नहीं कर सकते। जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने एक तलाकशुदा महिला के पिता द्वारा दर्ज कराई गई FIR को खारिज कर दिया। इसमें महिला के पूर्व ससुराल वालों से उसके ‘स्त्रीधन’ (उपहार और आभूषण) को वापस दिलाने की माँग की गई थी।

अदालत ने कहा, “इस न्यायालय द्वारा विकसित न्यायशास्त्र के तहत स्त्री (पत्नी या पूर्व पत्नी) ‘स्त्रीधन’ की एकमात्र स्वामी है। इसमें कहा गया है कि पति का इस पर कोई अधिकार नहीं है और इसी से यह निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए कि जब तक बेटी जीवित, स्वस्थ और अपने ‘स्त्रीधन’ की वसूली के लिए कदम उठाने के फैसले लेने में पूरी तरह सक्षम हो, तब तक इस पर पिता का भी कोई अधिकार नहीं है।”

पीठ ने कहा, “हम पाते हैं कि कानून ऐसी स्थिति के लिए प्रावधान करता है जहाँ एक महिला कानूनी रूप से अपनी पसंद के व्यक्ति को कोई भी ऐसा कार्य करने के लिए अधिकार दे सकती है, जिसे वह स्वयं कर सकती है। पावर ऑफ अटॉर्नी अधिनियम, 1882 की धारा 5 के ‘विवाहित महिलाओं की पावर ऑफ अटॉर्नी’ का प्रावधान है।” कोर्ट ने माना कि पिता-पुत्री के बीच इस तरह का कोई एग्रीमेंट नहीं था।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह नहीं माना जा सकता कि विवाह के समय दिया जाने वाला दहेज और पारंपरिक उपहार दुल्हन के सास-ससुर को सौंप दिया जाता है और इस पर दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 6 के प्रावधान लागू होंगे। इस धारा में प्रावधान है कि विवाह के संदर्भ में किसी महिला के अलावा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्राप्त किया गया कोई भी दहेज एक निश्चित अवधि के भीतर उस महिला को हस्तांतरित किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसा दहेज, जब तक हस्तांतरित नहीं किया जाता, महिला के लाभ के लिए ट्रस्ट के रूप में रखा जाएगा। इसे हस्तांतरित न करने की स्थिति में कारावास और/या जुर्माने का प्रावधान है। न्यायालय ने कहा, “बोब्बिली रामकृष्ण राजा यादाद एवं अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में इस न्यायालय ने माना है कि विवाह के समय दहेज और पारंपरिक उपहार देने से यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि ऐसी वस्तुएँ माता-पिता-ससुर को सौंपी गई हैं, जिससे दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 6 के तत्व आकर्षित होते हैं।”

न्यायालय ने कहा कि महिला के तलाक के पाँच साल से अधिक समय के बाद और उसके दोबारा विवाह करने के तीन साल बाद दर्ज की गई एफआईआर में कोई दम नहीं है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पिता द्वारा दर्ज कराई गई FIR को रद्द कर दिया। दरअसल, शिकायतकर्ता ने अपनी बेटी के पूर्व ससुराल वालों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन पर उसका ‘स्त्रीधन’ रोकने का आरोप लगाया था।

पिता ने आरोप लगाया था कि साल 1999 में उसकी बेटी की शादी के समय उसे 40 कसुला सोना और अन्य सामान शामिल दिया गया था। बेटी ने साल 2016 में अपने पति को तलाक दे दिया था और 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका में दोबारा शादी कर ली थी। पिता ने बेटी के पूर्व ससुराल वालों के खिलाफ जनवरी 2021 में मामला दर्ज करके इस स्त्रीधन को वापस दिलाने की माँग की थी।

स्त्रीधन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी दिया था निर्णय

विवाहित महिलाओं को मिलने वाले ‘स्त्रीधन’ को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि स्त्रीधन किसी दंपत्ति (पति एवं पत्नी) की संयुक्त संपत्ति नहीं बन सकता। यह पत्नी का धन होता है और पति का अपनी पत्नी की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। पति इस धन का इस्तेमाल संकट के समय कर सकता है, लेकिन उसे उसे वापस करना होगा।

स्त्रीधन से संबंधित एक वैवाहिक विवाद का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने कहा कि पूरे स्त्रीधन पर सिर्फ महिला का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि उसके विवाह से पहले, विवाह के दौरान या विवाह के बाद महिला को दिए गए उपहार जैसे कि पैसा, आभूषण, जमीन, बर्तन और माता-पिता, सास-ससुर, रिश्तेदारों और दोस्तों से मिले अन्य उपहार स्त्रीधन हैं।

पीठ ने कहा, “यह एक स्त्री की पूर्ण संपत्ति है, जिसे वह अपनी मर्जी से इस्तेमाल करने का पूरा अधिकार रखती है। पति का उसके स्त्रीधन पर कोई नियंत्रण नहीं है। वह अपने संकट के समय इसका इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन उसका नैतिक दायित्व है कि वह इसे या इसके मूल्य को अपनी पत्नी को लौटाए। यह संयुक्त संपत्ति नहीं है। स्त्रीधन पर पति का मालिक के रूप में कोई अधिकार या स्वतंत्र प्रभुत्व नहीं है।”

अदालत ने कहा कि यदि स्त्रीधन का दुरुपयोग किया जाता है तो किसी व्यक्ति या उसके परिवार के सदस्यों पर IPC की धारा 406 के तहत आपराधिक विश्वासघात का मुकदमा चलाया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में विवाद का निबटारा आपराधिक मामलों की तरह उचित संदेह से परे सबूत के आधार पर नहीं, बल्कि संभावनाओं की अधिकता के आधार पर किया जाना चाहिए।

दरअसल, केरल की रहने वाली एक महिला ने आरोप लगाया था कि जब वह शादी करके ससुराल आई तो पहले ही दिन उसके पति ने उसके सारे गहने छीन लिए। जब दोनों के बीच रिश्ता खराब हो गया और अलग होने का फैसला लिया तो उसने पति से अपने गहने वापस माँगे, लेकिन पति ने वो गहने उसे नहीं दिए। इसके बाद इसे वापस पाने के लिए पारिवारिक न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

इस मामले में साल 2009 में एक पारिवारिक न्यायालय ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाया और उसके पति को उसे 8.9 लाख रुपए देने का आदेश दिया। हालाँकि, इस फैसले के खिलाफ पति केरल उच्च न्यायालय चला गया। हाई कोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि पत्नी यह साबित करने में विफल रही कि उसका स्त्रीधन उसके पति ने छीन लिया था।

महिला ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। साक्ष्यों की जाँच के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक अदालत का फैसला सही था। हाई कोर्ट ने अदालत में देरी से आने के लिए महिला की ईमानदारी पर संदेह करके गलती की। शीर्ष न्यायालय ने निर्देश दिया कि पारिवारिक अदालत के फैसले के 15 साल बीत गए हैं। इसलिए पति अपने पत्नी को अब 25 लाख रुपए का भुगतान करे।

क्या होता है स्त्रीधन?

आधुनिक कानून बनने से पहले देश में महिलाओं को संपत्ति का अधिकार नहीं था। उसकी शादी-विवाह में जो दहेज दी जाती थी, उसे उसका हिस्सा मान लिया जाता था। अब महिलाओं को तमाम तरह के अधिकार दिए गए हैं। हालाँकि, महिलाएँ अपने पिता की संपत्ति में आज भी हिस्सा नहीं माँगती और दहेज के रूप में पिता से मिली रकम और शादी खर्च को ही अपना हिस्सा मान लेती हैं।

हालाँकि, समय के साथ सोच में बदलाव हुआ है। इसके पीछे कानून में बदलाव एक महत्वपूर्ण कारण है। अब बेटियों को अपने पिता की संपत्ति में भाइयों की तरह ही बराबर का अधिकार है। इसके साथ ही ससुराल के धन में भी उसके अधिकार निर्धारित किए गए हैं। इसके अलावा, कानून में उसे अन्य कई तरह के अधिकार दिए गए हैं। हिंदू कानूनों में इनकी विस्तृत चर्चा है।

इन्हीं में से एक है स्त्रीधन की अवधारणा। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अधिनियम के तहत महिलाओं को ‘स्त्रीधन’ का पूर्ण मालिक बताया गया है। हिंदू कानून के तहत स्त्रीधन में चल या अचल, किसी तरह की संपत्ति हो सकती है। स्त्रीधन में महिला की शादी से पहले, शादी के दौरान और शादी के बाद मिली संपत्ति को शामिल किया गया है।

शादी से पहले अगर महिला को माता-पिता या किसी अन्य रिश्तेदार आदि से उपहार में मिली संपत्ति स्त्रीधन है। इसी तरह शादी के दौरान शादी के दौरान मिली संपत्ति एवं उपहार भी स्त्रीधन है। उसके बच्चे के जन्म के दौरान बच्चे को जो उपहार या संपत्ति मिलती है, वह स्त्रीधन मानी गई है। अगर शादी के बाद महिला के पति की मौत हो जाती है तो उसे विधवा के रूप में जो उपहार या संपत्ति मिलती है, वह स्त्रीधन है।

स्त्रीधन, दहेज एवं स्त्री की संपत्ति में अंतर

यहाँ स्त्रीधन और स्त्री की संपत्ति में अंतर है। स्त्रीधन वह संपत्ति है, जिसे महिला अपने अनुसार खर्च कर सकता है या अपनी इच्छा के अनुसार उसके स्वामित्व का हस्तांतरण कर सकती है। इसी तरह, जिस संपत्ति पर महिलाओं की सीमित शक्ति होती है, जिसका उपयोग तो किया जा सकता है, लेकिन उसकी इच्छानुसार उसका हस्तांतरण (अधिकार का बदलाव) नहीं किया जा सकता वह स्त्री संपत्ति है।

स्त्रीधन दहेज से अलग होता है। स्त्रीधन में महिला को उसके परिवार, उसके पति और उसके पति के परिवार द्वारा दिए जाने वाले स्वैच्छिक उपहार शामिल होते हैं। यह जोर-जबरदस्ती या किसी दबाव में नहीं दिया जाता है। यह कानून सम्मत है। दूसरी ओर, दहेज विशेष रूप से विवाह के लिए लेनदेन से जुड़ा हुआ है। दहेज भारत में दहेज निषेध अधिनियम 1961 के तहत निषिद्ध है।

प्रतिभा रानी बनाम सूरज कुमार के ऐतिहासिक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दहेज और स्त्रीधन के बीच अंतर स्पष्ट किया है। इस मामले में याचिकाकर्ता महिला को दहेज के लिए परेशान किया गया और उसे ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया। उसने धारा CrPC की धारा 125 के दायर की। इसे पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को पलट दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि 1. विवाह के दौरान अग्नि के समक्ष फेरे से पहले दिए गए उपहार। 2. बारात के दौरान दुल्हन के रूप में महिला को दिए गए उपहार। 3. ससुर और सास द्वारा प्यार के प्रतीक के रूप में दिए गए उपहार और दुल्हन द्वारा बड़ों के चरणों में प्रणाम करने के समय दिए गए उपहार। 4. दुल्हन के पिता, माता और भाई द्वारा दिए गए उपहार…. ये सभी स्त्रीधन हैं।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि स्त्रीधन का संयुक्त स्वामित्व पति का सह-स्वामित्व नहीं माना जा सकता है। एक महिला हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 14 और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 27 के तहत स्त्रीधन की पाने के लिए अपने पति के खिलाफ मुकदमा दायर कर सकती है।

स्त्री की संपत्ति: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 14 के अनुसार, किसी महिला द्वारा निम्नलिखित स्रोतों से प्राप्त संपत्ति उसकी पूर्ण संपत्ति होती है, जब तक कि इस पर किसी उपहार, डिक्री, आदेश या पुरस्कार की शर्तों में अन्यथा उल्लेख न किया गया हो। ऐसी संपत्ति के अधिग्रहण के स्रोतों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:

विवाह से पहले, उसके दौरान और बाद में प्राप्त उपहार (चल और अचल संपत्ति दोनों)।

पारिवारिक संपत्ति के विभाजन के दौरान उसके हिस्से के रूप में प्राप्त संपत्ति।

किसी समझौते के लिए प्रतिफल के रूप में प्राप्त संपत्ति।

सेवा, पेशे, व्यवसाय आदि के माध्यम से अर्जित और संचित संपत्ति।

भरण-पोषण के बदले में प्राप्त संपत्ति।

अपने स्त्रीधन से खरीदी गई संपत्ति।

महिला को विरासत में मिली संपत्ति।

किसी अन्य तरीके से अर्जित संपत्ति, जैसे डिक्री या पुरस्कार के तहत या प्रतिकूल कब्जे के माध्यम से।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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