सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक पीठ ने महाराष्ट्र में ‘मराठा आरक्षण’ पर रोक लगा दी है। देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि आरक्षण की सीमा का 50% पार करना असंवैधानिक है। संवैधानिक पीठ ने एकमत से सुनाए गए फैसले में कहा कि जैसे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ों को आरक्षण दिया गया, उस तरह से मराठाओं के मामले में इसके पीछे कोई असाधारण तर्क नहीं है। जस्टिस अशोक भूषण ने फैसले को पढ़ कर सुनाया।
उन्होंने कहा कि ना तो गायकवाड़ कमीशन और न ही हाई कोर्ट ने ऐसी किसी स्थिति के बारे में बताया है, जहाँ आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक कर मराठाओं को इसमें डाला जाए। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के SEBC एक्ट को रद्द करते हुए कहा कि मराठा समुदाय को सामाजिक एवं आर्थिक पिछड़े समूह में रखना बराबरी के सिद्धांत का उल्लंघन है। शिक्षा और नौकरी में मराठाओं को मिले आरक्षण को शीर्षतम अदालत ने रद्द कर दिया।
हालाँकिइससे 9 सितम्बर 2020 तक मराठा कोटा से PG मेडिकल में एडमिशन लेने वाले छात्रों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। महाराष्ट्र की सरकार ने 2018 में नौकरी और शिक्षा में मराठा आरक्षण को 16% कर दिया गया था। 2019 में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मराठा आरक्षण को बरकरार रखा, लेकिन आरक्षण को घटा कर नौकरी में 13 प्रतिशत और उच्च शिक्षा में 12 प्रतिशत कर दिया। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएँ दायर हुई थीं। 10 दिन की लगातार सुनवाई के बाद 26 मार्च 2021 को 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने फैसले को रिजर्व रख लिया था।
Supreme Court: We do not find reason in revisiting Indira Sawhney judgment
— Bar & Bench (@barandbench) May 5, 2021
Amendment which holds Marathas as socially and educationally backward is STRUCK DOWN#SupremeCourt #MarathaReservation #Reservation pic.twitter.com/CNEILDu5HL
इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय पीठ ने 50% आरक्षण की सीमा निर्धारित की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसकी फिर से समीक्षा करने की कोई ज़रूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसका कई मामलों में अनुसरण किया गया है और ये स्वीकार्य भी है, इसीलिए इसकी समीक्षा की ज़रूरत नहीं। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 102वें संविधान संशोधन के खिलाफ दायर याचिका रद्द कर दी, जिसमें राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग का गठन हुआ था।
दलील दी गई थी कि वह संशोधन असंवैधानिक था। सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान केंद्र सरकार का पक्ष भी जाना। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र मराठा आरक्षण के समर्थन में है। सितम्बर 2020 में एक बड़ी पीठ को इस पर विचार करने को कहा गया था कि राज्यों को सामाजिक/आर्थिक पिछड़ों की पहचान कर के आरक्षण देने का अधिकार है या नहीं। इससे पहले ये मामला बॉम्बे हाईकोर्ट में गया था।