अनुसूचित जाति-जनजाति के उत्पीड़न से जुड़े कानून (एससी-एसटी एक्ट) के प्रावधानों में पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा किए गए संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया है। अर्थात यदि किसी के खिलाफ इस कानून के तहत केस दर्ज किया जाता है, तो बगैर जाँच के उसकी गिरफ्तारी हो सकेगी। इस कानून के तहत एससी/एसटी के खिलाफ अत्याचार के आरोपितों के लिए अग्रिम जमानत के प्रावधान को खत्म कर दिया गया है।
जस्टिस अरुण मिश्र, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस रवींद्र भट्ट की तीन जजों वाली बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। रिपोर्ट्स के अनुसार बेंच ने सोमवार को इस मामले में 2-1 से अपना फैसला दिया, यानी दो जजों ने निर्णय के पक्ष में जबकि तीसरे जज ने फैसले से अलग राय रखी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केस दर्ज करने के लिए प्राथमिक जाँच आवश्यक नहीं है।
Supreme Court upholds the constitutional validity of SC/ST (Prevention of Atrocities) Amendment Act, 2018 that ruled out any provision for anticipatory bail for a person accused of atrocities against SC/STs. pic.twitter.com/C2LMBwZiO8
— ANI (@ANI) February 10, 2020
कोर्ट ने पहले ही दे दिए थे संकेत
ध्यातव्य है कि पिछले साल अक्टूबर में ही जजों की पीठ ने संकेत दे दिया था कि वह तत्काल गिरफ्तारी और अग्रिम जमानत पर रोक लगाने के लिए एससी/एसटी अधिनियम में केंद्र द्वारा किए गए संशोधनों को बरकरार रखेगा। कोर्ट ने इस दौरान सुनवाई करते हुए कहा था, “हम किसी भी प्रावधान को कम नहीं कर रहे हैं। इन प्रावधानों को कम नहीं किया जाएगा। कानून वैसा ही होना चाहिए, जैसा वह था।”
कोर्ट ने क्या कहा था
कोर्ट ने इस दौरान यह भी स्पष्ट किया था कि एससी/एसटी कानून के तहत किसी भी शिकायत पर कोई कार्रवाई करने से पहले पुलिस प्राथमिक जाँच कर सकती है लेकिन तभी अगर प्रथम दृष्टया में उसे शिकायतें झूठी लगती हैं तो।
दोबारा पुराना कानून लागू
20 मार्च, 2018 को अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने इस कानून के तहत शिकायत पर अग्रिम जमानत का प्रावधान जोड़ने के साथ-साथ स्वत: गिरफ्तारी के प्रावधान पर भी रोक लगा दी थी। इसके बाद पुराने कानून को सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने 30 सितंबर, 2019 को बहाल कर दिया था। केंद्र सरकार द्वारा कानून में संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च 2018 के फैसले को पलटकर दोबारा पुराने कानून को लागू कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने मार्च, 2018 में में एससी-एसटी कानून के दुरुपयोग की शिकायतों के बाद स्वत: संज्ञान लेकर निर्णय दिया था कि एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोपी की सीधे गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी। इस आदेश के अनुसार, मामले में अंतरिम जमानत का प्रावधान किया गया था और गिरफ्तारी से पहले पुलिस को एक प्रारंभिक जाँच करनी थी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद एससी/एसटी समुदाय के लोगों ने देशभर में व्यापक प्रदर्शन किए थे।
व्यापक विरोध प्रदर्शन के बीच केंद्र ने पलटा था कोर्ट का फैसला
व्यापक प्रदर्शन को देखते हुए केंद्र सरकार ने कोर्ट में एक याचिका दायर की थी और बाद में संसद ने अदालत के आदेश को पलटने के लिए कानून में संशोधन किया था। संशोधित कानून के लागू होने पर कोर्ट ने किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई थी। सरकार के इस फैसले के बाद कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई। इसमें आरोप लगाया गया था कि संसद ने मनमाने तरीके से इस कानून को लागू कराया है।
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