Tuesday, September 10, 2024
Homeदेश-समाजSC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अपना फैसला, केंद्र सरकार के संशोधन को...

SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अपना फैसला, केंद्र सरकार के संशोधन को मंजूरी: मूल रूप में बना रहेगा कानून

तीन जजों वाली बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। बेंच ने इस मामले में 2-1 से अपना फैसला दिया, यानी दो जजों ने निर्णय के पक्ष में जबकि तीसरे जज ने फैसले से अलग राय रखी।

अनुसूचित जाति-जनजाति के उत्पीड़न से जुड़े कानून (एससी-एसटी एक्ट) के प्रावधानों में पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा किए गए संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया है। अर्थात यदि किसी के खिलाफ इस कानून के तहत केस दर्ज किया जाता है, तो बगैर जाँच के उसकी गिरफ्तारी हो सकेगी। इस कानून के तहत एससी/एसटी के खिलाफ अत्याचार के आरोपितों के लिए अग्रिम जमानत के प्रावधान को खत्म कर दिया गया है।

जस्टिस अरुण मिश्र, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस रवींद्र भट्ट की तीन जजों वाली बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। रिपोर्ट्स के अनुसार बेंच ने सोमवार को इस मामले में 2-1 से अपना फैसला दिया, यानी दो जजों ने निर्णय के पक्ष में जबकि तीसरे जज ने फैसले से अलग राय रखी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केस दर्ज करने के लिए प्राथमिक जाँच आवश्यक नहीं है।

कोर्ट ने पहले ही दे दिए थे संकेत

ध्यातव्य है कि पिछले साल अक्टूबर में ही जजों की पीठ ने संकेत दे दिया था कि वह तत्काल गिरफ्तारी और अग्रिम जमानत पर रोक लगाने के लिए एससी/एसटी अधिनियम में केंद्र द्वारा किए गए संशोधनों को बरकरार रखेगा। कोर्ट ने इस दौरान सुनवाई करते हुए कहा था, “हम किसी भी प्रावधान को कम नहीं कर रहे हैं। इन प्रावधानों को कम नहीं किया जाएगा। कानून वैसा ही होना चाहिए, जैसा वह था।”

कोर्ट ने क्या कहा था

कोर्ट ने इस दौरान यह भी स्पष्ट किया था कि एससी/एसटी कानून के तहत किसी भी शिकायत पर कोई कार्रवाई करने से पहले पुलिस प्राथमिक जाँच कर सकती है लेकिन तभी अगर प्रथम दृष्टया में उसे शिकायतें झूठी लगती हैं तो।

दोबारा पुराना कानून लागू

20 मार्च, 2018 को अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने इस कानून के तहत शिकायत पर अग्रिम जमानत का प्रावधान जोड़ने के साथ-साथ स्वत: गिरफ्तारी के प्रावधान पर भी रोक लगा दी थी। इसके बाद पुराने कानून को सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने 30 सितंबर, 2019 को बहाल कर दिया था। केंद्र सरकार द्वारा कानून में संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च 2018 के फैसले को पलटकर दोबारा पुराने कानून को लागू कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने मार्च, 2018 में में एससी-एसटी कानून के दुरुपयोग की शिकायतों के बाद स्वत: संज्ञान लेकर निर्णय दिया था कि एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोपी की सीधे गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी। इस आदेश के अनुसार, मामले में अंतरिम जमानत का प्रावधान किया गया था और गिरफ्तारी से पहले पुलिस को एक प्रारंभिक जाँच करनी थी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद एससी/एसटी समुदाय के लोगों ने देशभर में व्यापक प्रदर्शन किए थे।

व्यापक विरोध प्रदर्शन के बीच केंद्र ने पलटा था कोर्ट का फैसला

व्यापक प्रदर्शन को देखते हुए केंद्र सरकार ने कोर्ट में एक याचिका दायर की थी और बाद में संसद ने अदालत के आदेश को पलटने के लिए कानून में संशोधन किया था। संशोधित कानून के लागू होने पर कोर्ट ने किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई थी। सरकार के इस फैसले के बाद कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई। इसमें आरोप लगाया गया था कि संसद ने मनमाने तरीके से इस कानून को लागू कराया है।

नौकरी या प्रमोशन में आरक्षण कोई मौलिक अधिकार नहीं: SC ने पलटा 2012 में दिया हाई कोर्ट का आदेश

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

राहुल गाँधी ने बताया रिजर्वेशन खत्म करने का प्लान, मायावती-चिराग पासवान ने घेरा: कहा- आरक्षण विरोधी है कॉन्ग्रेस, इनके नाटक से सतर्क रहें

आरक्षण खत्म करने की वकालत को लेकर कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी घिर गए हैं। इस बयान पर चिराग पासवान और बसपा सुप्रीमो मायावती ने हमला बोला है।

फेसबुक चाहता है वामपंथियों का टूल बना रहे विकिपीडिया, भारत विरोधी प्रचार में आता रहे काम: हमने बनाया 186 पन्नों का डोजियर, उन्होंने रिपोर्ट...

सरकार को Wikimedia Foundation पर यह प्रभाव डालना चाहिए कि वे कानूनी रूप से भारत में एक आधिकारिक उपस्थिति स्थापित करे और भारतीय कानूनों के अनुसार वित्तीय जाँच से गुजरें।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -