सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति की अपनी सौतेली बेटी के साथ बार-बार बलात्कार करने के दोष को बरकरार रखा है। हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने उसकी सजा को आजीवन कारावास से घटाकर 10 साल कर दिया। उस पर लगाए गए 2 लाख रुपए के जुर्माने को बरकरार रखा। आजीवन कारावास की सजा निचली अदालत ने सुनाई थी, जिसे केरल हाई कोर्ट ने बरकरार रखा था।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने कहा कि व्यक्ति की दोषसिद्धि के संबंध में निचली अदालत और उसके बाद केरल हाई कोर्ट के निष्कर्षों में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है। अदालत ने कहा कि सौतेले पिता की आयु 40 वर्ष से अधिक है और वह पहले ही 8 साल से अधिक समय जेल में बीता चुका है। ऐसे में जेल की सजा कम करना उचित है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने 3 सितंबर 2024 के अपने आदेश में कहा, “मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता पर विचार करने के बाद हम सजा को घटाकर 10 वर्ष करते हैं और जुर्माने की राशि को दो लाख रुपए ही बरकरार रखते हैं। अपीलकर्ता (दोषी सौतेला पिता) को आज से एक वर्ष की अवधि के भीतर उक्त जुर्माने की राशि का भुगतान करना होगा।”
सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा, “यदि अपीलकर्ता द्वारा निर्धारित समय के भीतर जुर्माना राशि का भुगतान नहीं किया जाता है तो अपीलकर्ता को एक वर्ष (दो वर्ष के सश्रम कारावास के स्थान पर) की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी।” दरअसल, दोषी व्यक्ति ने तर्क दिया था कि उसके पास 2 लाख रुपए का अतिरिक्त जुर्माना भरने के लिए साधन नहीं है। हालाँकि, कोर्ट ने इसे कम करने से इनकार कर दिया।
दरअसल, दोषी सौतेले पिता ने सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर की थी। उसे अपनी सौतेली बेटी के साथ जंगल में बलात्कार करने के आरोप में दोषी ठहराया गया था और इसके लिए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। सौतेला पिता अपनी बेटी को जलावन की लकड़ी इकट्ठा करने के लिए अपने साथ जंगल लेकर गया था।
पीड़िता ने कोर्ट को बताया था कि उसके सौतेले पिता ने पहले भी उसी जंगल में और उसके घर पर उसके साथ बलात्कार किया था। ट्रायल कोर्ट ने उसे भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 376 (बलात्कार के लिए सजा) के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया था। इसके बाद पिता इस मामले को केरल हाई कोर्ट में चुनौती दी, जिसे हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा। इसके बाद इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।