शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने ऐलान किया है कि लॉकडाउन के दौरान बोर्ड की किसी भी मस्जिद में जुमे या रोजाना की नमाज जमात में नहीं पढ़ी जाएगी। बोर्ड ने अपने सभी मुतवल्लियों (मस्जिद का केयरटेकर) को निर्देश दिए है कि इस निर्देश की अवहेलना करने पर बोर्ड की ओर से संबंधित मुतवल्ली और मौलाना के खिलाफ FIR दर्ज करा कर जेल भेजा जाएगा।
शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने शुक्रवार (मार्च 27, 2020) को बताया कि शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अपने सभी मुतवल्ली को अवगत करा दिया है कि लॉकडाउन के दौरान किसी भी मस्जिद में जुमे की नमाज या रोजमर्रा की नमाज जमात के साथ नहीं पढ़ी जाएगी। अगर कोई भी मुतवल्ली बोर्ड के इस निर्देशों की अनदेखी करता है या धार्मिक भावनाओं में बहकर कर चोरी-छिपे नमाज जमात से करवा कर भीड़ जमा करता है, तो बोर्ड उस मुतवल्ली और नमाज पढ़ाने वाले मौलाना के खिलाफ FIR दर्ज करा कर जेल भेजा जाएगा।
उन्होंने कहा कि जब तक लॉकडाउन है, तब तक यह नियम लागू रहेगा और सख्ती से पालन किया जाएगा। जनहित से जुड़े इस मामले में नियम तोड़ने वाले को बख्शा नहीं जाएगा। गौरतलब है कि कोरोना लॉकडाउन शुरु होने से वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी लगातार लोगों को मदद देने और वायरस को फैलने से रोकने के लिए सहयोग कर रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने सरकार से पेशकश की थी कि सरकार चाहे तो यूपी में जितनी भी शिया वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी है, उन धार्मिक स्थलों, स्कूलों, मदरसों को अस्पताल में तब्दील कर उनमें आइसोलेशन वॉर्ड बना सकती है।
बोर्ड ने प्रदेश के सभी जिलों में करीब तीन हजार से ज्यादा गरीब परिवारों के मुफ्त राशन की व्यवस्था की है। वसीम रिजवी ने 50 हजार रुपए या इससे अधिक सालाना आमदनी वाली वक्फ संपत्तियों के मुतवल्ली से 25 परिवार, एक लाख रुपए या इससे ज्यादा आमदनी वाले से 50 परिवार और 5 लाख या इससे ज्यादा आमदनी वाली संपत्ति के मुतवल्लियों से 100 गरीब परिवारों में से प्रत्येक को डेढ़ किलो दाल, चार किलो चावल, पाँच किलो आटा, एक किलो नमक और एक किलो तेल मुफ्त बाँटने के लिए कहा है।
उल्लेखनीय है कि कुछ दिनों पहले वसीम रिजवी ने संक्रमण का प्रसार रोकने को लेकर समुदाय को एक बड़ी सलाह देते हुए कहा था कि अगर कोरोना वायरस से समुदाय विशेष किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो उसे कब्रिस्तान में दफनाने की जगह उसे शव को जलाकर उसका अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए। इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया है कि अगर उस शव को दफनाया जाता है तो कोरोना वायरस के फैलने की आशंका बनी रहती है।