अदालत के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में वाराणसी की काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मस्जिद परिसर (Gyanvapi Masjid) की वीडियोग्राफी और सर्वे का काम (6 मई 2022) से शुरू हो गया। वाराणसी सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी सहित अन्य मूर्तियों में दर्शन पूजा और सुरक्षा की माँग वाली याचिका पर सुनवाई करने के बाद यह आदेश दिया था। ऐतिहासिक आधार पर ज्ञानवापी मस्जिद को काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाया गया है और दोनों आपस में सटे हुए हैं।
ताजा जानकारी के मुताबिक, ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में कोर्ट कमिश्नर सहित हिंदू और मुस्लिम पक्ष के वादी और वकीलों ने अंदर प्रवेश किया। इस दौरान सर्वे का विरोध कर रहे मुस्लिम पक्ष के लोग काशी विश्वनाथ मंदिर के गेट नंबर 4 पर जमकर अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगाए। वहीं, दूसरे पक्ष ने भी नारेबाजी के विरोध में हर-हर महादेव के नारे लगाए। इलाके में भारी भीड़ और माहौल के देखते हुए पुलिस भीड़ को हटाने में लगी है। यह वीडियोग्राफी तीन-चार दिन तक चलेगी।
बता दें कि ज्ञानवापी मस्जिद समिति ने कोर्ट के आदेश के बावजूद कहा था कि वह मस्जिद के अंदर वीडियोग्राफी की अनुमति नहीं देगी। इसे देखते हुए वाराणसी में सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतजाम किए गए हैं। अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद प्रबंध समिति के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ने कहा था कि किसी को भी मस्जिद में प्रवेश की इजाजत नहीं होगी। मुस्लिम पक्ष ने कहा है कि सर्वेक्षण और वीडियोग्राफी काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर तक ही सीमित होनी चाहिए और किसी भी ‘गैर-मुस्लिम’ को मस्जिद में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
इस मामले में हिंदू याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कोर्ट कमिश्नर की टीम में 15 लोग कर रहे हैं। इसके अलावा कोर्ट कमिश्नर के 2 सहयोगी और 3 फोटोग्राफर व वीडियोग्राफर भी सर्वे व वीडियोग्राफी के समय मौजूद हैं। वहीं, पाँच वकीलों के साथ अंजुमन इंतेजामिया कमेटी के प्रतिवादी भी मौजूद हैं। मंदिर के अंदर दर्शन के लिए जाने वाले श्रद्धालुओं या किसी को भी सघन चेकिंग के बाद ही अंदर जाने दिया जा रहा है। मस्जिद की सुरक्षा व्यवस्था पहले से ही अर्धसैनिक बलों के हाथ में है।
बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद 1991 से वाराणसी की स्थानीय अदालत में लंबित है। उच्च न्यायालय के आदेश के बाद यह मुकदमा इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया है। हालाँकि, श्रृंगार गौरी मामला महज सात महीने पुराना है।
18 अगस्त 2021 को वाराणसी की पाँच महिलाओं ने श्रृंगार गौरी मंदिर में प्रतिदिन दर्शन करने की माँग समेत अन्य माँगों को लेकर वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में मुकदमा दायर किया था। अदालत ने याचिका को स्वीकार करते हुए न केवल मौके पर स्थिति जानने के लिए वकीलों का एक आयोग गठित करने का आदेश दिया था, बल्कि वकीलों का एक कमीशन भी नियुक्त किया था। इतना ही नहीं विपक्ष को नोटिस जारी किया गया, लेकिन विवादित स्थल का निरीक्षण नहीं हो सका था।
वाराणसी सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक) जस्टिस रवि कुमार दिवाकर ने 18 अगस्त 2021 के अपने पहले के आदेश को दोहराते हुए 8 अप्रैल 2022 को कोर्ट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को नियुक्त कर सर्वेक्षण और वीडियोग्राफी की कार्यवाही फिर से शुरू करने की अनुमति दी थी। इस बीच वाराणसी जिला प्रशासन और पुलिस ने आपत्ति जताई। कार्रवाई को रोकने के लिए उन्होंने तर्क दिया कि बेहतर सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता है और केवल मुस्लिम और सुरक्षाकर्मी ही मस्जिद के अंदर जा सकते हैं। अदालत ने सुनवाई के बाद याचिका को खारिज करते हुए अपने पहले के आदेश को जारी रखा और 10 मई से पहले ईद के बाद सर्वेक्षण और वीडियोग्राफी की कार्रवाई पर रिपोर्ट माँगी और सुनवाई की तारीख 10 मई भी तय की।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार के भीतर देवी श्रृंगार गौरी की मूर्ति स्थापित है। राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद भक्तों के नियमित प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन ही इस देवी की पूजा करने की अनुमति थी।