शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने सदियों पुराने अयोध्या मामले पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले में सर्वोच्च न्यायलय ने विवादित जमीन को रामलला के मंदिर निर्माण के लिए सौंपा और केंद्र सरकार को 3 महीने में इसके लिए ट्रस्ट के गठन का आदेश दिया। जिसके बाद कल खबर आई कि केंद्र सरकार के अधिकारियों ने इस विषय पर जानकारी देते हुए बताया है कि ट्रस्ट के गठन की प्रक्रिया शुरु हो गई है और फिलहाल टीम कोर्ट के फैसले का विस्तृत अध्य्यन कर रही है।
यहाँ स्पष्ट कर दें कि यह दिशा-निर्देश अयोध्या अधिनियम 1993 में निश्चित क्षेत्र के अधिग्रहण के खंड 6 और 7 के तहत केंद्र सरकार में निहित शक्तियों के मद्देनजर आया है। अब ये अधिनियम क्या है और इसके लिए तय किए गए खंडों की मंदिर निर्माण में क्या भूमिका है, आइए जानें…
7 जनवरी 1993 को औचित्य में आए इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम कतिपय क्षेत्र अर्जन अधिनियम 1993 है। जिसमें उल्लेखित है कि इसके प्रारंभ होने के साथ ही क्षेत्र के संबंध में अधिकार, हक-हित, इस अधिनियम के आधार पर केंद्रीय सरकार को अंतरिक और उसमें निहित हो जाएगें। इसी अधिनियम की धारा 3 ने केंद्र सरकार को विवादित भूमि और उसके आसपास के क्षेत्र के संबंध में अधिकार, टाइटल और हित स्थानांतरित किया है।
इस अधिनियम की धारा 6 में कहा गया है कि केंद्र सरकार किसी भी प्राधिकरण या अन्य निकाय, या किसी ट्रस्ट के ट्रस्टियों को अधिग्रहित क्षेत्र को अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद स्थापित कर सकती है, यदि निकाय इस तरह के अनुपालन के लिए तैयार है और जिसमें सरकार के नियम और शर्तें लागू हो सकती हैं।
इसके अलावा इसमें यह भी निर्धारित किया गया है कि क्षेत्र के संबंध में केंद्र सरकार के अधिकारों को उस प्राधिकरण या निकाय या उस ट्रस्ट के ट्रस्टी के अधिकार के रूप में माना जाएगा, जैसा कि मामला हो।
अब इसी प्रावधान का इस्तेमाल करके सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक ट्रस्ट को जमीन सौंपने के लिए कहा है, जो सरकार द्वारा बनाई गई योजना के अनुसार क्षेत्र का प्रबंधन और विकास करेगा।
अयोध्या मामले पर फैसला इसलिए था अनूठा-
- 16 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रखने के बाद सभी जजों ने किया था आपस में विचार साझा और एक ही जज से लिखवाया गया पूरा फैसला।
- फैसला लिखने वाले जज के नाम का नहीं किया गया पूरे जजमेंट में खुलासा।
- अयोध्या फैसले के नाम से विशेष तौर पर हुआ सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर पूरा जजमेंट अपलोड।
- 10:30 पर आना था फैसला लेकर 10:20 पर ही खुला था कोर्ट का गेट।
- 3 नवंबर को तैयार हो चुका था जजमेंट का ड्राफ्ट, लेकिन 7 नवंबर को दिया गया इसे अंतिम रूप।
- 8 नवंबर को ही तय हुआ कि 9 नवंबर को सुनाया जाएगा अयोध्या फैसला।
- फैसले के बाद 5 जजों ने ख़िचवाई थी ग्रुप फोटो, जिसे बाद में मीडिया से भी किया गया साझा।
दरअसल, इसी अधिनियम की धारा 7 के आधार पर ही भूमि के प्रबंध अधिकारों को केंद्र सरकार या किसी अन्य प्राधिकरण ट्रस्ट को सौंपा गया है। जिसमें ये बात साफ है कि किसी संविदा या लिखत अथवा किसी न्यायालय, अधिकरण या अन्य प्राधिकारी के आदेश में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी इस अधिनियम के प्रारंभ से ही धारा 3 के अधीन केंद्र सरकार में निहित संपत्ति का प्रबंध, केंद्रीय सरकार द्वारा अथवा उस सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति या किसी निकाय या किसी न्यास के न्यासियों द्वारा किया जाएगा।
वहीं धारा 7 की उपधारा 2 बताती है कि प्रबंध निकाय यथास्थिति को बनाए रखेगा, जिसे आमतौर पर “राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद” के रूप में जाना जाता है, जो देवता के पक्ष में भूमि के टाइटल की घोषणा के साथ है। अब केंद्र सरकार की योजना के अनुसार, भूमि पर मंदिर बनाने के लिए प्रबंध निकाय को अधिकृत किया जाएगा।
यहाँ बता दें कि इस मामले में अयोध्या अधिनियम की वैधता को ‘डॉक्टर एम इस्माइल फारुकी और अन्य’ बनाम ‘भारत संघ व अन्य’ 1994 SCC (6) 360 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरकरार रखा गया था। अगर उस समय ऐसा नहीं होता तो अधिनियम की धारा 4(3) को रद्द कर दिया जाता और जो सुनवाई अयोध्या पर हुई, वो कभी संभव ही नहीं होती। बता दें अधिनियम की ये धारा अधिग्रहित भूमि के अधिकार, उपाधि और हित के संबंध में किसी भी मुकदमे, अपील या अन्य कार्यवाही को रद्द करने की माँग करता था, जो अधिनियम के प्रारंभ के समय किसी भी अदालत या ट्रिब्यूनल प्राधिकरण के समक्ष लंबित था।