14 फरवरी को CRPF के काफिले पर हुए हमले के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में 16 को एक सर्वदलीय बैठक हुई। बैठक के बाद एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें यह कहा गया कि सभी दल पुलवामा में हुए आतंकी हमले की भर्त्सना करते हैं और आतंकवाद की हर रूप में निंदा करते हैं। पारित हुए प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि सभी दल सीमा पार द्वारा समर्थन प्राप्त आतंकवाद की कड़ी निंदा करते हैं।
लेकिन पूरे प्रस्ताव में कहीं भी पाकिस्तान का नाम तक नहीं लिया गया। हमारे प्रधानमंत्री हर जगह जाकर पाकिस्तान को भिखमंगा देश और न जाने क्या-क्या कह रहे हैं लेकिन सर्वदलीय बैठक में पारित प्रस्ताव में एक बार भी पाकिस्तान का नाम नहीं लिया गया। यह आश्चर्यजनक होने के साथ ही बड़ी विचित्र विडंबना है कि पूरे देश के साथ प्रधानमंत्री भी पाकिस्तान को अपने भाषणों में कोस रहे हैं और चेतावनी भी दे रहे हैं लेकिन जब आतंकी हमले का विरोध करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई जाती है तब उसमें पाकिस्तान का कहीं ज़िक्र तक नहीं किया जाता।
क्या राजनाथ सिंह सर्वदलीय बैठक में पाकिस्तान का नाम लेने से डर रहे थे? अगर नहीं तो ऐसी क्या वजह थी कि सर्वदलीय बैठक में पाकिस्तान को एक ‘आतंकवाद का समर्थक’ देश घोषित नहीं किया गया? सत्तर सालों से जो देश हमें घाव दे रहा है नाम लेने में क्या हर्ज़ है भला?
वैसे यह पहली बार नहीं है जब कई दलों के नेता मिले, आतंकवाद की कड़ी निंदा की और पाकिस्तान का नाम नहीं लिया। संसद में भी जब राजीव चंद्रशेखर ने प्राइवेट मेंबर बिल लाकर पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने की माँग की थी तब भी यह बिल पारित नहीं हुआ था। आखिर संसद और सभी दलों की क्या मजबूरी है कि वे बयानों और भाषणों में तो पाकिस्तान का नाम लेने से नहीं चूकते लेकिन जब आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने की बारी आती है तब मुकर जाते हैं।
हमारे देश में पाकिस्तान प्रेम का एक विचित्र प्रकार का कीड़ा है जिसने सबको काटा है। बहुत कम ही लोग हैं जो इसके दंश से अछूते हैं। सिनेमा जगत और क्रिकेट के अलावा मीडिया का भी पाकिस्तान प्रेम छिपा नहीं है। जब इमरान खान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री चुना गया था तब हमारे मीडिया संस्थान इस पर लहालोट हो रहे थे कि अब पाकिस्तान में जम्हूरियत का सितारा बुलंद होगा।
हद तो तब हो गई थी जब सन 2013 में शीर्षस्थ जाँच एजेंसी सीबीआई ने विदेश मंत्रालय से अनुमति माँगी थी कि सीबीआई के स्थापना दिवस पर क़ुर्बान अली के परिवार को आमंत्रित किया जाए। यह माँग स्वीकार तो नहीं की गई थी लेकिन इसका कारण जानना आवश्यक है। दरअसल क़ुर्बान अली खान वह शख्स था जिसने भारत को हज़ार वर्षों में हज़ार घाव (bleeding India by thousand cuts) देने की रणनीति बनाई थी। चूँकि ब्रिटिश भारत में सीबीआई की पूर्वज एजेंसी का अध्यक्ष क़ुर्बान अली ही था इसलिए सीबीआई के कुछ अफसरों ने स्थापना दिवस पर उसके परिवारवालों को बुलाने का विचार किया था।
ग़ौर करें तो एक तरफ भारतीय सुरक्षा एजेंसियाँ क़ुर्बान अली की रणनीति को विफल करने में लगी थीं तो दूसरी तरफ सीबीआई के कुछ अधिकारी क़ुर्बान अली के परिवार को आमंत्रण देने की बात कर रहे थे। सोचने वाली बात यह है कि भारत को ऐसे विचारों से सर्वाधिक खतरा है। यह वैसा ही जैसे आप भाषणों में पाकिस्तान की भरसक निंदा करें लेकिन अपने देश की संसद में उसे एक आतंकी देश घोषित करने में आनाकानी करें।
इन बातों का सार यह है कि पाकिस्तान को लेकर भारत में राष्ट्रीय स्तर पर विचारों में एकरूपता नहीं है। कोई ऐसा सार्वजनिक पटल नहीं है जहाँ सर्वसम्मति से एक सुर में सभी भारतीय- चाहे वह नेता हों, अभिनेता हों, खिलाड़ी, सरकारी कर्मचारी या फिर पत्रकार- पाकिस्तान के प्रति एक राय, एक विचार रखें। सवाल है कि ऐसे ‘नेशनल कन्सेंसस’ की आवश्यकता क्यों है?
सर्वसम्मति की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि हमारा शत्रु एक है- ‘आतंकवाद’। जो भी देश आतंक का भरण पोषण करता है वह हमारे लिए आतंकी देश होना चाहिए। यह विचार भारत के प्रत्येक संस्थान और व्यक्ति द्वारा बिना किसी रिलिजियस अथवा सामुदायिक भेदभाव के अंगीकार किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि इस प्रकार के कानून अमेरिका ने बनाए हैं लेकिन हमारा रवैया पाकिस्तान के प्रति कभी स्पष्ट नहीं रहा।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन 1373 को स्वीकार किया है लेकिन हमारे यहाँ आतंकवाद को परिभाषित करने वाला कोई कानून नहीं है। विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) आतंकी गतिविधियों को तो परिभाषित करता है लेकिन आतंकवाद को परिभाषित नहीं करता। इस बात की क्या गारंटी है कि भविष्य में आतंकवाद उसी रूप में हमारे सामने आएगा जो UAPA एक्ट में परिभाषित है?
आज हम पाकिस्तान को FATF जैसे अंतर्राष्ट्रीय फोरम पर ब्लैकलिस्ट करवाना चाहते हैं और संयुक्त राष्ट्र से यह मांग करते हैं कि आतंकवाद की परिभाषा गढ़ी जाए लेकिन जब हम स्वयं आधिकारिक रूप से पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित नहीं कर पा रहे हैं तो इसका सीधा अर्थ यही है कि आतंकवाद से लड़ने की हमारी प्रतिबद्धता दृढ़ नहीं है।