दुनिया भर के दिग्गज नेता G-20 में शामिल होने के लिए भारत पहुँच चुके हैं। इस वक्त पूरी दुनिया की नजर भारत पर है। ऐसे समय में भी कॉन्ग्रेस के युवराज राहुल गाँधी भारत को कोसने से बाज नहीं आ रहे हैं। दरअसल राहुल गाँधी यूरोप दौरे पर हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के बाद अब उनकी ‘नफरती पकवान’ वाली ‘मोहब्बत की दुकान’ बेल्जियम पहुँच गई है, जहाँ उन्होंने एक बार फिर भारत विरोधी बयानबाजी शुरू कर दी है।
कॉन्ग्रेसियों के प्रिय युवा नेता 53 वर्षीय राहुल गाँधी ने बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में कहा कि भारत में बड़े पैमाने पर लोकतांत्रिक संस्थानों पर हमला हो रहा है। देश के संविधान को बदलने की कोशिश हो रही है। अल्पसंख्यकों और दलितों पर हमले हो रहे हैं। सरकार दहशत में है और पीएम मुख्य मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश करते हैं।
राहुल गाँधी के इस बयान को देखें तो वह भारत में लोकतंत्र, अल्पसंख्यक व दलित, वंचित वर्ग पर हो रहे हमलों का राग अलाप रहे हैं। सवाल यह है कि ‘मोहब्बत की दुकान’ का शिगूफा छोड़ने वाला कोई व्यक्ति यदि अपने भाषण में सिर्फ हमलों और दहशत की बात करेगा तो क्या उसकी दुकान सच में मोहब्बत की है, या फिर नफरत की?
राहुल गाँधी कहते हैं कि लोकतंत्र पर हमला हो रहा है। संविधान बदला जा रहा है। फिर यह भी कहते हैं कि सरकार दहशत में है। अगर सरकार दहशत में है तो फिर वह किसी भी तरह का हमला कैसे कर सकती है? सवाल यह भी है कि कहीं ये हमले चीन परस्त विपक्ष तो नहीं कर रहा है? क्योंकि, राहुल ने ब्रसेल्स में भी शी जिनपिंग के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की तारीफ कर चीन की ‘बटरिंग’ करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।
राहुल गाँधी आज देश में अल्पसंख्यक और दलितों पर हो रहे हमलों की बात कर रहे हैं, लेकिन शायद उन्हें यह याद नहीं कि उनकी पार्टी ने इस देश में सबसे लंबे समय तक राज किया है। उनके सिपहसालारों की लंबी फौज और ‘गुरु’ सैम पित्रोदा भी उन्हें यह नहीं बताते कि देश में सबसे अधिक दंगे और दलितों पर अत्याचार उनकी पार्टी की सरकार में ही हुए हैं।
देश में अल्पसंख्यकों पर हमले का सबसे बड़ा उदाहरण 1984 के सिख दंगे हैं। इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद हुए ये वही दंगे हैं, जिनमें राजधानी दिल्ली समेत देश भर के कई हिस्सों में कॉन्ग्रेस नेताओं की अगुवाई में सिखों का कत्लेआम हुआ था। इन्हीं दंगों को लेकर राहुल गाँधी के पिता और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने कहा था कि ‘जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है’।
कॉन्ग्रेस सरकार में दलितों के नरसंहार की पूरी लिस्ट है। इस दौरान कॉन्ग्रेस कभी राज्य में तो कभी केंद्र में सत्ता में रही। कई प्रदेश तो ऐसे भी थे, जहाँ केंद्र के साथ-साथ वहाँ भी कॉन्ग्रेस की सरकार थी। तमिलनाडु का कीजवेनमनी, आंध्र प्रदेश का करमचेडु, गुजरात का गोलाना, कर्नाटक का कंबलपल्ली, महाराष्ट्र का खेरलानजी, ओडिशा का लाथोर नरसंहार समेत कॉन्ग्रेस शासन के दौरान देश के अनेक हिस्सों में दलितों के खिलाफ हुई हिंसा के बड़े उदाहरण हैं।
इन तमाम नरसंहार पर न तो कभी राहुल गाँधी की जुबान खुलती है और न ही आज तक किसी कॉन्ग्रेस नेता ने एक शब्द बोला है। राहुल गाँधी दुनिया के सबसे मजबूत लोकतंत्र भारत के खिलाफ लगातार विदेशी धरती पर बदजुबानी करते आ रहे हैं। कॉन्ग्रेस की खोई हुई सियासी जमीन को फिर से पाने के लिए भले ही राहुल गाँधी कोई भी पैंतरा आजमाएँ और पीएम मोदी-भाजपा पर हमला बोलें, लेकिन सच्चाई ये है कि कॉन्ग्रेस की सत्ता में रहते हुए अल्पसंख्यकों और दलितों पर जैसा अत्याचार हुआ, वैसा कभी नहीं हुआ।
बहरहाल, बात यह है कि राहुल गाँधी कॉन्ग्रेस के युवराज हैं। देश के खिलाफ बयानबाजी करना, घोटालों पर घोटाले करना और दूसरे देशों के हित की सोचना कॉन्ग्रेस की पुरानी आदत रही है। राहुल गाँधी यह सब ऐसे समय में बोल रहे हैं जब देश G-20 शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहा है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन भारत की तारीफ कर रहे हैं। विश्व बैंक खुल कर कह रहा है कि भारत ने 50 साल का काम 6 साल में कर दिया है।
सीधे शब्दों में कहें तो पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत वैश्विक शक्ति बनकर उभर रहा है। यही कॉन्ग्रेस के पूर्व राहुल गाँधी की आँख की किरकिरी बन रहा है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या राहुल गाँधी को तेजी से मजबूत होती भारत की अर्थव्यवस्था, देश के विकास और भारत का लोहा मान रही दुनिया से दिक्कत हो रही है या फिर कारण कुछ और ही है…?