Friday, March 29, 2024
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तनवीर हसन को हराने के लिए एकजुट हुए ‘निष्पक्ष वामपंथी’ जावेद, स्वरा और शबाना

किसी पार्टी का खुले तौर पर प्रचार करना और ख़ुद को राजनीतिक रूप से निष्पक्ष बताना यह दिखाता है कि ये सेलेब्स असल में किसी ख़ास पार्टी के समर्थक नहीं हैं बल्कि मोदी के विरोध में मीडिया जो भी चेहरा पेश करता है, उसके समर्थक हैं। कभी राहुल, कभी केजरीवाल, कभी कन्हैया, अभी ये प्रक्रिया चलती रहेगी।

लोकसभा चुनाव 2019 में जिन संसदीय क्षेत्रों को लेकर सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है उनमें से एक है बिहार का बेगूसराय। इस क्षेत्र के बारे में कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि यहाँ पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के ‘पोस्टर बॉय’ कहे जा रहे कन्हैया कुमार और केंद्रीय मंत्री व भाजपा सांसद गिरिराज सिंह के बीच सीधी टक्कर है। लेकिन यदि पिछले चुनाव पर नज़र डालें और वहाँ के जातीय समीकरण को देखें तो दरअसल मुक़ाबला गिरिराज और तनवीर के बीच है। बता दें कि यहाँ से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के उम्मीदवार तनवीर हसन भी चुनावी मैदान में हैं। तनवीर हसन यहाँ काफ़ी दिनों से सक्रिय रहे हैं।

पिछली बार उनके और भाजपा सांसद भोला सिंह के बीच काँटे का मुक़ाबला हुआ था। मगर मोदी लहर और अपनी लोकप्रियता एवं अनुभव की वजह से तनवीर भाजपा उम्मीदवार भोला सिंह तनवीर को 5.41% मतों से हराने में सफल रहे थे। इस चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी भोला सिंह को 4,28,227 वोट मिले थे तो वहीं तनवीर हसन को 3,69,892 वोट हासिल हुआ था। दोनों प्रत्याशियों को मिले मतों के बीच का अंतर मात्र 58,335 था। सीपीआई प्रत्याशी राजेंद्र प्रसाद सिंह को 1,92,639 वोट पड़े थे।

कन्हैया कुमार की लोगों से अपील

अब बात करते हैं कन्हैया कुमार की, जिन्होंने पहली बार सीपीआई प्रत्याशी के तौर पर बेगूसराय सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया है। कन्हैया कुमार आज मंगलवार (अप्रैल 9, 2019) को बेगूसराय लोकसभा सीट से अपना नामांकन का पर्चा भरेंगे। इस लोकसभा सीट पर 29 अप्रैल को मतदान होना है। कन्हैया ने फेसबुक पोस्ट के जरिए लोगों से नामांकन कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अपील की है। उन्होंने फेसबुक पोस्ट में लिखा,

साथियों, कल 9 अप्रैल, 2019 को मुझे बेगूसराय में लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन करना है। यह चुनाव मैं अकेले नहीं लड़ रहा, बल्कि वे सभी मेरे साथ उम्मीदवार के तौर पर खड़े हैं, जो समाज की सबसे पिछली कतार में खड़े लोगों के अधिकारों के साथ संविधान को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ताकत कितनी भी बड़ी हो, एकजुटता के उस जज़्बे के सामने छोटी पड़ ही जाती है जो आपकी हर बात में झलकता है। हमेशा की तरह इस बार भी मुझे पक्का यकीन है कि कल मुझे आपका प्यार और समर्थन ज़रूर मिलेगा। उम्मीद है जो साथी बेगूसराय में हैं वे समय निकालकर इस मौके पर मेरे साथ ज़रूर मौजूद रहेंगे।

बॉलीवुड हस्तियाँ कर रही कन्हैया का समर्थन

बता दें कि कन्हैया की तरफ से चुनाव प्रचार करने के लिए जाने-माने गीतकार जावेद अख्तर, उनकी पत्नी शबाना आजमी, अभिनेत्री स्वरा भास्कर, कॉन्ग्रेस नेता हार्दिक पटेल बेगूसराय पहुँचेंगे। इसके साथ ही चुनाव प्रचार में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत बड़ी नामचीन हस्तियों के भी आने की उम्मीद है। अब यहाँ पर गौर करने वाली बात ये है कि शबाना आजमी या फिर स्वरा भास्कर जैसे लोग क्या सोचकर कन्हैया कुमार का समर्थन करने के लिए बेगूसराय आ रही हैं? क्या इन हवा-हवाई सेलेब्स को शायद बिहार के राजनीतिक समीकरण का कोई अंदाज़ा नहीं है?

बिहार की राजनीति को समझने वाले लोग जानते हैं कि यहाँ लालू यादव जैसा वरिष्ठ और अनुभवी नेता भी संसदीय चुनाव हार सकता है, तो इन हवा-हवाई सेलेब्स की बात पर यहाँ की जनता शायद ही ध्यान दे। शबाना आज़मी और जावेद अख़्तर का न तो यहाँ जनाधार है और न ही उनका ऐसा कोई प्रभाव है कि उन्हें सुनने के लिए भीड़ जुटे।

आपको ऐसा लग रहा होगा कि आप कन्हैया का समर्थन करके भाजपा को हराने की कोशिश कर रहीं है, मगर सोचने वाली बात तो ये है कि ये सेलेब्स कन्हैया को जिताने नहीं बल्कि तनवीर हसन को हराने जा रहे हैं। सम्प्रदाय विशेष के हितों की रक्षा का दावा करने वाले सेलेब्स के इस ब्रिगेड विशेष से पूछा जाना चाहिए कि क्या तनवीर हसन को हराना (इनकी घटिया परिभाषा के हिसाब से) एक अल्पसंख्यक व्यक्ति के हितों पर चोट पहुँचाने वाला कार्य नहीं है? क्या ये सेलेब्स अपनी ही परिभाषा को गलत साबित करने बेगूसराय जा रहे हैं?

बिहार राजनीति में जातिगत समीकरण की महत्त्वपूर्ण भूमिका

दरअसल, बेगूसराय की कुल जनसंख्या में भूमिहार सबसे ज़्यादा (19 प्रतिशत) हैं। उनके बाद मुस्लिम 15 प्रतिशत और यादव 12 प्रतिशत के आसपास हैं। अनुसूचित जाति के लोग भी अच्छी-ख़ासी संख्या में हैं। हाँ, अगर कन्हैया कुमार महागठबंधन के उम्मीदवार होते तो वो लड़ाई में आ भी सकते थे लेकिन अब इसकी संभावना काफी कम दिखाई दे रही है।

वामपंथ के खिलाफ बेगूसराय का क्षेत्रीय इतिहास

इस लोकसभा क्षेत्र में पिछले कुछ सालों से वामपंथी दलों के लिए स्थितियाँ कमजोर होती गई हैं। 2009 में जदयू के उम्मीदवार ने सीपीआई के दिग्गज नेता शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को हरा दिया, तो वहीं, 2014 में भाजपा के भोला सिंह ने सीपीआई प्रत्याशी राजेंद्र प्रसाद सिंह को कड़ी शिकस्त दी थी।

कन्हैया की एक और मुश्किल

इसके अलावा कन्हैया के सामने एक और मुश्किल उनकी छवि है। महागठबंधन का साथ न मिलने और बेगूसराय के क्षेत्रीय इतिहास के अलावा उनकी अपनी छवि भी इस चुनावी मुक़ाबले में उनका खेल बिगाड़ सकती है। बेगूसराय के लोग जेएनयू में लगे नारों से अनजान नहीं हैं और शायद यही कारण है कि उनके अपने ही गाँव में उन्हें समर्थन नहीं मिल रहा। लोग उनकी विचारधारा व सेना के बारे में दिए गए उनके बयानों के बारे में उनसे सवाल पूछ रहे हैं, जिनका कन्हैया के पास कोई उत्तर नहीं है।

वामपंथ की राजनीतिक मौत

गौरतलब है कि हाल के वर्षों में वामपंथी दलों को एक के बाद एक चुनावी हारों का सामना करना पड़ा है। केरल जैसे एकाध राज्य को छोड़ दें तो वामपंथ एक ढहता क़िला है, जिसके पूरी तरह गिरने में अब ज़्यादा समय नहीं है। ऐसे में वामपंथ के एक मज़बूत क़िले जेएनयू से निकले कन्हैया कुमार वाम दलों के लिए भी एक छोटी सी उम्मीद लेकर आए हैं। ऐसे में इन नामचीन हस्तियों का कन्हैया कुमार का समर्थन करना यह दिखाता है कि ख़ुद को राजनीतिक रूप से निष्पक्ष कहने वाले ये सेलेब्स असल में निष्पक्ष नहीं हैं बल्कि खुलेआम नेता, दल या विचारधारा विशेष का समर्थन और प्रचार करते हैं।

अगर ये सेलेब्स कल को सरकार के ख़िलाफ़ कोई बयान देते हैं तो क्यों न इनके बयानों को एक दल विशेष के समर्थक के बयान के रूप में आँका जाए? किसी पार्टी, विचारधारा या नेता का खुलेआम समर्थन करना गलत नहीं है, अपितु यही तो लोकतंत्र है। लेकिन, किसी पार्टी का खुले तौर पर प्रचार करना और ख़ुद को राजनीतिक रूप से निष्पक्ष बताना यह दिखाता है कि ये सेलेब्स असल में किसी ख़ास पार्टी के समर्थक नहीं हैं बल्कि मोदी के विरोध में मीडिया जो भी चेहरा पेश करता है, उसके समर्थक हैं। कभी राहुल, कभी केजरीवाल, कभी कन्हैया, अभी ये प्रक्रिया चलती रहेगी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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