Sunday, November 17, 2024
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इस्लामिक ‘टेरर’ की दहशत, घुटनों पर रेंगने लगे बड़े मीडिया घराने: मुस्लिमों को ठेस पहुँचाने वाली कंटेंट पर खुद ही चला रहे कैंची, ‘एक्स मुस्लिम’ पर पूरा शो गायब

"नुपुर शर्मा प्रकरण के बाद, शीर्ष मालिकों द्वारा एंकरों और संपादकों पर भारी दबाव डाला जा रहा है कि वे ऐसी सामग्री को हटा दें जिसे इस्लामी समुदाय के लिए आक्रामक के रूप में देखा जा सकता है।"

नूपुर शर्मा की टिप्पणी पर मुस्लिम समुदाय द्वारा व्यक्त आक्रोश, जिसकी अगली कड़ी के रूप में सर काटने और सामूहिक बलात्कार की धमकी ने अब पूरा भानुमती का पिटारा ही खोल दिया है। दरअसल, जब से पीएम मोदी सत्ता में आए, हिंदुओं ने ओवरटन विंडो (नैरेटिव) को अपने हिसाब से काफी हद तक सेट करने में कामयाबी हासिल की है, जिसमें कई वर्जित विषयों के बारे में खुलकर बात की गई – चाहे वह हिंदू नरसंहार हो, इस्लामी आक्रमण, इतिहास की विकृति या सांस्कृतिक विरासतों का सुधार। दूसरे तरीके से देखा जाए तो नसीम तालेब का सिद्धांत एकदम जीवंत हो चुका है कि कैसे “सबसे असहिष्णु जीतता है”, इसी का परिणाम है कि आज इस्लाम की आलोचना मुख्यधारा से पहले ही पब्लिक डिस्कोर्स का हिस्सा बन चुकी है।

तालिबान और अल कायदा सहित इस्लामी समुदाय के एक स्वर में “गुस्ताख-ए-रसूल की एक साजा, सर तन से जुदा” के नारे लगाने के बाद, मीडिया घराने भी डरे हुए हैं। उनको ऐसा लगता है कि उन साक्षात्कारों को न दिखाएँ जो मुस्लिमों और इस्लामवादियों को नाराज कर सकते हैं।

यहाँ तक कि इंडिया टीवी, जो कि खुद को जनता की आवाज़ के रूप में प्रदर्शित करते आए हैं, ने एक वीडियो को डिलीट कर दिया है जिसमें उसने पूर्व-मुस्लिमों का साक्षात्कार लिया था और यह जानना चाहा था कि उन्होंने इस्लाम को क्यों छोड़ा?

बता दें कि Youtube पर जहाँ वीडियो को डिलीट कर दिया गया है, वहीं उनकी वेबसाइट पर, यह लिखा हुआ आ रहा है कि पूर्व मुस्लिमों के वीडियो साक्षात्कार को प्राइवेट कर दिया गया है।

स्क्रीनशॉट ऑफ़ एक्स मुस्लिम शो- इंडिया टीवी की वेबसाइट से

फ़िलहाल, उनके वेबसाइट पेज की एक आर्काइव कॉपी, जहाँ यह वीडियो होना चाहिए था, यहाँ देखी जा सकती है।

इंडिया टीवी के साक्षात्कार की बात करें तो उनकी वेबसाइट पर दिए गए शीर्षक के अनुसार, पूर्व मुस्लिमों और मौलानाओं के बीच एक बहस थी। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि नूपुर शर्मा प्रकरण के बाद, जहाँ इस्लामी राष्ट्र इस्लाम पर की गई टिप्पणियों की निंदा करने के लिए सामने आए, वहीं अल कायदा और तालिबान ने धमकी दी और कई इस्लामी संगठनों ने नुपुर शर्मा के सिर पर एक करोड़ का इनाम भी रखा। संभवतः इसी का परिणाम है कि इस्लामी दहशत में फ़िलहाल इंडिया TV ने अपने इंटरव्यू शो को हटा लिया है।

वहीं कई समाचार चैनलों के सूत्रों ने कहा है कि नुपुर शर्मा प्रकरण के बाद, शीर्ष मालिकों द्वारा एंकरों और संपादकों पर भारी दबाव डाला जा रहा है कि वे ऐसी सामग्री को हटा दें जिसे इस्लामी समुदाय के लिए आक्रामक के रूप में देखा जा सकता है।

ऐसे ही एक टीवी पत्रकार ने कहा कि ये विचारक (फिलर्स) ज्यादातर चैनलों के मालिकों की ओर से आए होते हैं। “हमें थोड़े में सूचनाएँ दे दी जाती हैं, फिलर्स (जो वक्ता होते हैं।) उनसे यह सुनिश्चित करने के लिए कहा जाता है कि मुस्लिमों को नाराज करने वाले शो नहीं करने हैं, क्योंकि नूपुर शर्मा की घटना के बाद अब माहौल सही नहीं है। वहीं कुछ ऐसे शो को हटाने का अप्रत्यक्ष दबाव भी था जिन्हें आपत्तिजनक माना जा सकता है।

“बढ़ते खतरों के बीच, ऐसे संवेदनशील मुद्दों ने चैनल्स के मालिकों को हिला कर रख दिया है। उन्हें लगता है कि जरा सा भी उकसाने से उन्हें धमकियाँ मिल सकती हैं।”

फिर भी, पिछले 10 वर्षों में और विशेष रूप से पिछले 8 सालों में, हिंदुओं ने ओवरटन विंडो (नैरेटिव) को काफी हद तक स्थानांतरित करने में कामयाबी हासिल की है।

ओवरटन विंडो की बात करें, तो दरअसल विचारों और नीतियों का एक समूह है जो एक निश्चित समय में मुख्यधारा की आबादी के लिए स्वीकार्य है। स्वीकार्यता का दायरा समाज को ‘अस्वीकार्य’ मानने से लेकर विचारों का कौन सा समूह अंततः मुख्यधारा की आबादी के लिए स्वीकार्य सरकारी नीति बन जाता है। यह इसी परिप्रेक्ष्य में आता है।

वहीं जोशुआ ट्रेविनो ने माना है कि सार्वजनिक विचारों की स्वीकृति को मोठे तौर पर इन 6 भागों में बाँटा जा सकता है:

  • असंभव
  • रेडिकल
  • स्वीकार्य
  • सेंसिबल
  • लोकप्रिय
  • पॉलिसी आधारित

ओवरटन विंडो, सीधे शब्दों में कहें, तब शिफ्ट हो जाती है जब एक स्वीकार्य विचार लोकप्रिय हो जाता है और फिर नीति में बदल जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जब एक कट्टरपंथी विचार ‘समझदारी से भरे’ विचारों से ‘लोकप्रिय’ माना जाता है और फिर आगे चलकर नीति में तब्दील हो जाता है।

जबकि हिंदुओं ने सत्ता में सरकार की मदद से, पिछले कुछ वर्षों में ओवरटन विंडो को स्थानांतरित करने में बड़े पैमाने पर कामयाबी हासिल की है, वहीं मीडिया घरानों ने इस्लामी दबाव के साथ, हिंदुओं को ओवरटन विंडो के फिर से सिकुड़ने का जोखिम बढ़ गया है।

नुपुर शर्मा के साथ जो कुछ भी हुआ, उसे देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इंडिया टीवी की तरह, कई दूसरे लोग भी होंगे जो यह सोचते हों कि अगर दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता को इस तरह से धमकाया और खतरे में डाला जा सकता है, तो उनके चुप रहने में ही भलाई है। हालाँकि, एक मीडिया हाउस के दबाव में आने, वीडियो डिलीट करने और औसत नागरिकों के बीच एक बड़ा अंतर है, जो मुसीबत में पड़ने पर सबसे पहले उनका समर्थन नहीं कर सकते हैं और साथ ही, दूसरे जो सच बोलने के लिए दबाव में खड़े होने के पेशे में नहीं हैं। हालाँकि, ओवरटन विंडो के सिकुड़ने से उनकी भी राय प्रभावित होती है।

अभी हाल ही में हिंदुओं ने एक ऐसे मजहब के बारे में खुलकर बात करना शुरू किया है, जिसने ऐतिहासिक रूप से हिंदू समुदाय को अपने अधीन रखा, प्रताड़ित, हत्या और बलात्कार किया है। अभी हाल ही में हम खुले तौर पर यह माँग करने लगे थे कि हमारी आस्था और विश्वास को उसी स्तर का सम्मान मिले जो अन्य धर्मों की माँग है और सिर्फ इसलिए कि हम सड़क पर उतरकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं करते हैं, हमारे देवी-देवता का अपमान करने की छूट नहीं हैं। अभी हाल ही में हिंदुओं ने यह महसूस करना शुरू किया कि “सभी धर्म समान हैं” बस कहने की बात है। जबकि हिंदू बहुलता में विश्वास करते हैं, वहीं इस्लामवादियों का सपना दारुल-हर्ब का है, जिसके लिए दार-उल-इस्लाम में परिवर्तित करने की आवश्यकता है और उनके लिए हिंदू काफिर बने रहेंगे, चाहे समुदाय उनके लिए कितनी भी रियायतें क्यों न दे।

देखा जाए तो सदियों से हिंदुओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया है, हालाँकि, इंटरनेट युग में, यह तथ्य है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल एक महिला के सिर की माँग के लिए एक अंतरराष्ट्रीय अभियान आयोजित करने के लिए किया जा सकता है, यह एक वास्तविकता है जिसे हिंदू स्वीकार करने की कोशिश कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में, जनता के लिए फ्री स्पीच के कार्यों को गंभीर आघात लगा है।

जैसा कि एक ओर इंडिया टीवी इस्लामी दबाव के आगे झुक जाता है, वहीं दूसरी ओर, इंडिया न्यूज पर उनके एंकर प्रदीप भंडारी ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था जिसमें पूर्व मुसलमानों ने टेलीविजन पर कट्टरपंथी मुस्लिमों का पर्दाफाश किया था, उसे अभी भी लाइव देखा जा सकता है।

ऐसे में जहाँ आम नागरिकों से अपेक्षा की जाती है कि वे पहले अपनी सुरक्षा के बारे में सोचें, मीडिया घरानों को भी ऐसे बाद के दबावों से निपटने के लिए तैयार होना चाहिए। वहीं इंडिया टीवी जैसे शक्तिशाली मीडिया हाउस से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह उन पर दबाव डालने से पहले ही झुक जाएँगे। वे निश्चित रूप से नूपुर शर्मा को दी जा रही धमकियों से भयभीत हो गए और धमकी देने वाले इस्लामवादियों के सामने खड़े होने और स्टैंड लेने के बजाय, वे रेंगने लगे जबकि इस्लामवादियों ने अभी तक उन्हें झुकने के लिए भी नहीं कहा था।

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